Pitru Paksha 2023 Highlights: पूर्णिमा श्राद्ध से आज पितृपक्ष की शुरुआत, जानें तर्पण, पिंडदान व श्राद्ध की विधि और महत्व
Pitru Paksha Highlights: पितृ पक्ष में पितरों के लिए तर्पण, श्राद्ध और पिंडदान कर उनके प्रति आभार व्यक्त किया जाता है. आज 29 सितंबर से पितृ पक्ष की शुरुआत हो चुकी है, जो 14 अक्टूबर को समाप्त होगी.
पितृपक्ष के आखिरी दिन यानी सर्वपितृ अमावस्या पर 14 अक्टूबर 2023 सूर्य ग्रहण लगेगा. ग्रहण 14 अक्टूबर की रात 08:34 से लेकर मध्यरात्रि 02:25 तक रहेगा.
पितृपक्ष में पिंडदान, तर्पण और श्राद्ध करने की विधि में अंतर होता है. इसलिए इसे एक नहीं समझें. पितृपक्ष में मृतक परिजनों को श्रद्धापूर्वक याद करने को श्राद्ध कहते हैं.पिंडदान का अर्थ, भोजन दान करने से है. इसका अर्थ है कि,हम पितरों को पितृपक्ष में भोजन दान दे रहे हैं. वहीं तर्पण का अर्थ जल दान से है. हाथ में जल, कुशा, अक्षत, तिल आदि लेकर पितरों का तर्पण किया जाता है.
एक पीतm या स्टील की परात में शुद्ध जल भर लें. फिर थोड़े काले तिल और थोड़ा दूध उसमें मिला लें. यह परात अपने सामने रखकर एक अन्य खाली पात्र भी पास में रखे. अपने दोनों हाथों के अंगुष्ठ और तर्जनी के मध्य दर्भ यानी कुशा जिसे डाब भी कहते हैं लेकर अंजलि बना लें. अर्थात दोनों हाथों को परस्पर मिलाकर उसमें जल भरें. अब अंजली में भरा हुआ जल दूसरे खाली पात्र में डाल दें. खाली पात्र में जल डालते समय तृप्यताम कहते हुए जल छोड़ें. प्रत्येक पितृ के लिए कम से कम तीन बार अंजलि से तर्पण करें. इस प्रकार घर में ही आप तर्पण कर सकते हैं.
पितृपक्ष में तर्पण या श्राद्ध सही समय पर ही करना चाहिए. तर्पण का समय संवगकाल यानी सुबह 08 से 11 बजे तक का होगा. श्राद्ध कर्म के लिए सुबह 11:30 से दोपहर 12:30 तक का समय होता है. पितृपक्ष के सारे कर्म सूर्यास्त के पहले कर लेने चाहिए
वैसे तो देशभर में पिंडदान के लिए 55 स्थान महत्वपूर्ण माने जाते हैं. लेकिन बिहार का गया सर्वोपरि है. मान्यता है कि गया जी में पिंडदान करने से पितरों की आत्मा को शांति मिलती है और मोक्ष की प्राप्ति होती है.
मान्यता है कि, पितृपक्ष में कौए को भरपेट भोजन कराने से पितृ तृप्त होते हैं. इसलिए बिना कौए को भोजन कराए श्राद्ध कर्म पूरा नहीं माना जाता है. मान्यता है कि, पितृपक्ष में पितर कौए के रूप में धरतीलोक पर आते हैं.
पितृपक्ष में ब्राह्मण भोजन या पितरों के पिंडदान के लिए अन्न खरीदने में पैसे का अभाव हो तो ऐसे में आप शाक यानी केवल फल और सब्जियों द्वारा भी श्राद्ध कर सकते हैं. अगर फल व सब्जियां खरीदने के लिए भी पैसे न हो तो त्रण काष्ठ यानी कि लकडियां आदि को बेचकर पैसा एकत्र करें और उन पैसों से शाक खरीद कर श्राद्ध कर्म करें. यदि किसी भी तरह की आर्थिक स्थिति सुदृढ़ न हो तो ऐसी परिस्थिति में शास्त्रों में बताया है कि, घास से भी श्राद्ध हो सकता है. यानी घास काटकर गाय को खिला दें. इससे भी श्राद्ध जैसा पुण्य फल प्राप्त होता है. पितृपक्ष में पितरों को प्रसन्न करने के लिए अगर किसी चीज की जरूरत है तो वह सिर्फ श्रद्धा भावना है. क्योंकि श्रद्धा भाव से किए गए कर्म को श्राद्ध कर्म कहते हैं.
पितृपक्ष की शुरुआत आज 29 सितंबर से हो चुकी है, जो 14 अक्टूबर 2023 को समाप्त होगी. वहीं पंचांग के अनुसार, पितृपक्ष भाद्रपद मास की शुक्लपक्ष पूर्णिमा से आरंभ होकर आश्विन मास की अमावस्या तक होता है.
पितृ पक्ष में तर्पण, पिंडदान करते समय इन 2 मंत्रों का जाप करें. इस मंत्र का जाप करके पितरों का आव्हान किया जाता है. मान्यता है इससे वह परिवार के बीच आकर श्राद्ध ग्रहण कर पाते हैं.
ॐ पितृ देवतायै नम:
‘ओम आगच्छन्तु में पितर एवं ग्रहन्तु जलान्जलिम’
- प्रतिपदा - प्रतिपदा धन-सम्पत्ति के लिए होती है एवं श्राद्ध करने वाले की प्राप्त वस्तु नष्ट नहीं होती.
- सप्तमी - जो सप्तमी को श्राद्ध आदि करता है उसको महान यज्ञों के पुण्य फल प्राप्त होते हैं.
- अष्टमी - अष्टमी को श्राद्ध करने वाला सम्पूर्ण समृद्धयिां प्राप्त करता है.
- नवमी - नवमी को श्राद्ध करने से ऐश्वर्य एवं मन के अनुसार अनुकूल चलने वाली स्त्री को प्राप्त करता है.
- दशमी- दशमी तिथि का श्रद्धा मनुष्य ब्रह्मत्व की लक्ष्मी प्राप्त कराता है.
पितृऋण से छुटकारा पाने के लिए भी बेटों या पोते के जरिए ही पिंडदान, तर्पण किया जाता है लेकिन अगर किसी व्यक्ति के पुत्र नहीं हैं या फिर बेटा असर्मथ है तो ऐसे में परिवार पुत्री, पत्नी और बहू अपने पितर की आत्मा की शांति के लिए श्राद्ध, तर्पण व पिंडदान कर सकती है.
पिंडदान के लिए जौ के आटे, चावल, दूध, शक्कर, शहद और घी को मिलाकर पिंड बनाएं. दक्षिण दिशा की ओर मुख करके फूल, चंदन, मिठाई, फल, अगरबत्ती, तिल, जौ और दही से पिंड का पूजन करें. इस दौरान ॐ पितृ देवतायै नम: मंत्र का जाप करें. इसके बाद पिंड को जल में प्रवाहित कर दें. ब्राह्मण भोजन कराएं. पंचबलि भोग निकालें उसके बाद ही घर परिवार के लोग खाना खाएं. पिंडदान के लिए 11.30 से 12.30 का समय अच्छा माना गया है.
29 सितंबर 2023 से 14 अक्टूबर 2023 तक पितृ पक्ष रहेंगे. श्राद्ध भाद्रपद माह की पूर्णिमा से लेकर अश्विन माह की अमावस्या तिथि तक चलते हैं. श्राद्ध में पितरों को मुख्य रूप से खीर का भोजन सर्वाधिक प्रिय है, इसलिए श्राद्ध के दिन खीर-पुड़ी का भोजन कराया तो श्रेष्ठ रहता है.
धर्म शास्त्रों में कहा गया है कि पितरों का पिंड दान करने वाला गृहस्थ दीर्घायु, पुत्र-पौत्रादि, यश, स्वर्ग, पुष्टि, बल, लक्ष्मी, पशु, सुख-साधन तथा धन-धान्य आदि की प्राप्ति करता है.
प्रभु श्री राम ने वनवास के दौरान राजा दशरथ के निधन का समाचार मिलने पर वनवास में रहते हुए भी पिता का श्राद्ध किया था. ऐसा माना जाता है प्रभु श्री राम लंका पर विजय प्राप्त करके लौट रहे थे, तब भगवान श्री राम जब माता सीता और लक्ष्मण के साथ पहला पिंडदान अपने पिता राजा दशरथ का प्रयागराज में किया था. उस दिन के बाद से पिंडदान की प्रथा की शुरु हुई.
पितरों के लिए श्रद्धा से किए गए मुक्ति कर्म को श्राद्ध कहते हैं तथा तृप्त करने की क्रिया और देवताओं, ऋषियों या पितरों को तंडुल या तिल मिश्रित जल अर्पित करने की क्रिया को तर्पण कहते हैं। तर्पण करना ही पिंडदान करना है.
- सर्वपितृ अमावस्या को कुल के उन लोगों का श्राद्ध किया जाता हैं जिन्हें हम नहीं जानते हैं. इसके अलावा, अमावस्या और पूर्णिमा के दिन में पितरों को याद किया जाता है.
- सर्वपितृ अमावस्या के दिन पीपल के पेड़ की पूजा और दीपक जलाने का विशेष महत्व होता है.
- ऐसा माना जाता है मान्यता है सर्वपितृ अमावस्या के दिन पीपल की पूजा करने पर पितृदेव प्रसन्न होते हैं.
- सर्वपितृ अमावस्या के दिन पितरों को प्रसन्न करने के लिए तांबे के लोटे में जल, काला तिल और दूध मिलाकर पीपल के पेड़ पर चढ़ाए.
श्राद्ध यानी श्रद्धा से किया गया कार्य. पितरों के लिए श्रद्धा से किए गए मुक्ति कर्म को श्राद्ध कहते हैं. भाद्रपद माह की पूर्णिमा और आश्विन मास के कृष्ण पक्ष की प्रतिपदा से अमावस्या तक का समय पितृ पक्ष कहलाता है. इस पक्ष में मृत पूर्वजों का श्राद्ध किया जाता है. पितृ पक्ष में पितरों की मरण-तिथि को ही उनका श्राद्ध किया जाता है.
पितृ पक्ष में गाय का दान करना बहुत ही फलदायी माना गया है. गाय का दान सभी दानों में श्रेष्ठ माना जाता है, लेकिन श्राद्ध पक्ष में किया गया गाय का दान हर सुख और धन-संपत्ति देने वाला माना गया है. केवल गाय में ही एक साथ पांच तत्व पाए जाते हैं। इसलिए पितृ पक्ष में गाय की सेवा विशेष फलदाई होती है. श्राद्ध के हर कर्म में तिल का महत्व है. श्राद्ध में काले तिलों का दान संकट से रक्षा करता है. पितरों के आशीर्वाद और संतुष्टि के लिए चांदी का दान भी बहुत प्रभावकारी माना गया है. पितृ पक्ष में गेहूं,चावल का भी दान करना चाहिए.
माना जाता है कि पितृ पक्ष में हमारे पितृ पशु-पक्षियों के रूप में हमारे निकट आते हैं और गाय, कुत्ता, कौवा और चींटी के माध्यम से आहार ग्रहण करते हैं. श्राद्ध करते समय पितरों को अर्पित करने वाले भोजन के पांच अंश निकाले जाते हैं गाय, कुत्ता, चींटी, कौवा और देवताओं के लिए. इसमें कुत्ता जल तत्त्व का, चींटी, कौवा वायु का, गाय पृथ्वी और देवता आकाश तत्व के प्रतीक माने गए हैं. इस प्रकार इन पांचों को आहार देकर पंच तत्वों के प्रति आभार व्यक्त किया जाता है.
महाभारत के अनुशासन पर्व में भीष्म पितामह और युधिष्ठिर के संवाद बताए गए हैं. इन संवादों में भीष्म पितामह ने युधिष्ठिर को बताया था कि श्राद्ध कर्म की शुरुआत कैसे हुई? भीष्म पितामह ने बताया था कि प्राचीन समय में सबसे पहले महर्षि निमि को अत्रि मुनि ने श्राद्ध का ज्ञान दिया था। इसके बाद निमि ऋषि ने श्राद्ध किया और उनके बाद अन्य ऋषियों ने भी श्राद्ध कर्म शुरू कर दिए. इसके बाद श्राद्ध कर्म करने की परंपरा प्रचलित हो गई.
श्राद्ध में सोमवार के दिन व्रत रखकर भूखे और जरूरतमंद लोगों को खाना खिलाना चाहिए. मंगलवार के दिन हनुमान जी के मंदिर जाकर बजरंगबली को चोला चढ़ाएं. श्राद्ध में पिंडदान करने का भी बहुत महत्व है. माना जाता है कि इससे पितरों की आत्मा को जल्द शांति मिलती है. इस समय दान करने से भी पितर प्रसन्न होते हैं. पितृ पक्ष में अपनी क्षमता के अनुसार जरूरतमंद और गरीब लोगों को दान जरूर करें.
पितृ पक्ष में पूर्वजों और पितरों के लिए तर्पण और श्राद्ध करने का विशेष महत्व माना जाता है. मान्यताओं के अनुसार, इस दिन हमारे पूर्वज मृत्यु लोक से धरती लोक पर आते हैं. इसलिए पितृपक्ष के दौरान तर्पण और श्राद्ध करके उन्हें प्रसन्न किया जाता है. पितृ दोष से मुक्ति के लिए भी पितृ पक्ष के समय को बहुत महत्वपूर्ण माना जाता है.
हिंदू धर्म में पितृ पक्ष को लेकर कई नियम बनाए गए हैं. माना जाता है कि इन नियमों का पालन करने से पितर प्रसन्न होते हैं. वहीं इनका पालन ना किए जाने पर उनकी नाराजगी झेलनी पड़ती है. इस समय नई वस्तुओं की खरीदारी करना अशुभ माना जाता है. इसके अलावा पितृ पक्ष नया वाहन या नया घर खरीदने आदि जैसे शुभ कार्य भी वर्जित होते हैं.
पितृ पक्ष के पहले दिन आज कई शुभ योग बन रहे हैं. आज अमृत सिद्धि योग, सर्वार्थ सिद्धि योग और दुर्लभ ध्रुव योग का निर्माण भी हो रहा है. आज राहुकाल 10 बजकर 42 मिनट से लेकर 12 बजकर 11 मिनट तक है. इन शुभ योग के दौरान पितरों की पूजा करने से अक्षय फल की प्राप्ति होगी और उनकी कृपा बनी रहेगी.
पितृ पक्ष के पहले दिन श्राद्ध की पूर्णिमा और प्रतिपदा तिथि होती है. प्रतिपदा तिथि आज दोपहर 3 बजकर 26 मिनट से लेकर 30 सितंबर को दोपहर 12 बजकर 21 मिनट तक रहेगी. आज उन लोगों का श्राद्ध और तर्पण किया जाता है जिनका निधन किसी भी माह की पूर्णिमा या प्रतिपदा तिथि को हुई हो. श्राद्ध कर्म करने के लिए दिन में 11:30 बजे से लेकर दोपहर 02:30 बजे के मध्य का समय उत्तम रहता है.
पितृ पक्ष का समय पितरों को समर्पित होता है. इस दौरान पितरों की आत्मा की शांति के लिए श्राद्ध किया जाता है. इसकी शुरुआत भाद्रपद माह की पूर्णिमा तिथि से होती है और अश्विन माह के कृष्ण पक्ष की अमावस्या तिथि पर इसका समापन होता है. पितृ पक्ष में पूजा करने से पितरों का आशीर्वाद प्राप्त होता है.
29 सितंबर - पूर्णिमा श्राद्ध
30 सितंबर - प्रतिपदा श्राद्ध, द्वितीया श्राद्ध
01 अक्टूबर - तृतीया श्राद्ध
02 अक्टूबर - चतुर्थी श्राद्ध
03 अक्टूबर - पंचमी श्राद्ध
04 अक्टूबर - षष्ठी श्राद्ध
05 अक्टूबर - सप्तमी श्राद्ध
06 अक्टूबर - अष्टमी श्राद्ध
07 अक्टूबर - नवमी श्राद्ध
08 अक्टूबर - दशमी श्राद्ध
09 अक्टूबर - एकादशी श्राद्ध
11 अक्टूबर - द्वादशी श्राद्ध
12 अक्टूबर - त्रयोदशी श्राद्ध
13 अक्टूबर - चतुर्दशी श्राद्ध
14 अक्टूबर - सर्व पितृ अमावस्या
बैकग्राउंड
Pitru Paksha 2023 Highlights: 29 सितंबर यानी आज से पितृ पक्ष की शुरुआत हो रही है और ये 14 अक्टूबर तक चलेगा. हिंदू धर्म में पितृ पक्ष का समय बहुत महत्वपूर्ण माना जाता है. पितृ पक्ष का हिंदू धर्म में विशेष महत्व है. पितृ पक्ष में पितरों के के प्रति आदर-भाव प्रकट किया जाता है. पितृ पक्ष या श्राद्ध करीब 16 दिनों के होते हैं. पितृ पक्ष भाद्रपद मास के शुक्ल पक्ष की पूर्णिमा से शुरू होते हैं और आश्विन मास की अमावस्या को इसका समापन होता है.
पितर होते हैं प्रसन्न
पितृ पक्ष में पितरों के लिए तर्पण, पिंडदान, श्राद्ध आदि होगा. पितरों को खुश करने के लिए दान, पंचबलि कर्म, ब्राह्मण भोज आदि किए जाते हैं. माना जाता है कि इन दिनों पितर किसी ना किसी रूप में पृथ्वी पर आते हैं और जल,अन्न,भोजन ग्रहण करते हैं. अपनी सेवा से प्रसन्न होकर वो आशीर्वाद देते हैं. उनके आशीर्वाद से परिवार की उन्नति होती है, सुख, शांति और समृद्धि बढ़ती है.
श्राद्ध कर्म की परंपरा
महाभारत के अनुशासन पर्व में भीष्म पितामह और युधिष्ठिर के संवाद बताए गए हैं. इन संवादों में भीष्म पितामह ने युधिष्ठिर को बताया था कि श्राद्ध कर्म की शुरुआत कैसे हुई? भीष्म पितामह ने बताया था कि प्राचीन समय में सबसे पहले महर्षि निमि को अत्रि मुनि ने श्राद्ध का ज्ञान दिया था. इसके बाद निमि ऋषि ने श्राद्ध किया और उनके बाद अन्य ऋषियों ने भी श्राद्ध कर्म शुरू कर दिए. इसके बाद श्राद्ध कर्म करने की परंपरा प्रचलित हो गई. ज्योतिषाचार्य ने श्राद्ध, पिंडदान और तर्पण का अर्थ भी बताया है.
पितृ पक्ष में किया जाता है श्राद्ध, पिंडदान और तर्पण
ज्योतिषाचार्य के अनुसार पितृ पक्ष में घर-परिवार के मृत पूर्वजों को श्रद्धा से याद किया जाता है, इसे ही श्राद्ध कहा जाता है. पिंडदान करने का मतलब ये है कि हम पितरों के लिए भोजन दान कर रहे हैं. वहीं तर्पण करने का अर्थ यह है कि हम जल का दान कर रहे हैं. इस तरह पितृ पक्ष में इन तीनों कामों का महत्व है.
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