Pitru Paksha 2023: पितृ पक्ष 15 दिन के ही क्यों होते हैं ? जानें इसमें तर्पण का महत्व और लाभ
Pitru Paksha 2023 Kab hai: भाद्रपद पूर्णिमा से पितृ पक्ष शुरू हो जाते हैं. इस साल पितृ पक्ष 15 दिन देरी से शुरू हो रहे हैं. आइए जानते हैं पितृ पक्ष की डेट, श्राद्ध की तिथियां, तर्पण नियम और महत्व
Pitru Paksha 2023 Date: पितृ पक्ष पितरों को समर्पित है. इस दौरान पितरों की आत्मा की शांति के लिए श्राद्ध किया जाता है. पंचांग के अनुसार पितृपक्ष की शुरुआत भाद्रपद माह की पूर्णिमा तिथि से होती है और अश्विन माह के कृष्ण पक्ष की अमावस्या तिथि पर इसका समापन होता है.
पितृपक्ष यानी श्राद्ध का हिंदू धर्म में विशेष महत्व होता है. ज्योतिषाचार्य डॉ अनीष व्यास ने बताया कि इस बार पितृ पक्ष 15 दिन देरी से शुरू होंगे. जानें पितृ पक्ष कब से होंगे आरंभ, मांगलिक कार्य पर कब से लगेगी रोक, श्राद्ध की तिथियां.
पितृ पक्ष 2023 कब से शुरू ? (Pitru Paksha 2023 Start and End Date)
ज्योतिषाचार्य ने बताया कि हिंदू पंचांग के अनुसार इस साल 29 सितंबर से पितृपक्ष की शुरुआत हो रही है. वहीं, इसका समापन आश्विन कृष्ण पक्ष की अमावस्या तिथि को होता है। अमावस्या तिथि इस बार 14 अक्टूबर को पड़ रही है.
15 दिन देरी से शुरू होंगे पितृ पक्ष
ज्योतिषाचार्य ने बताया कि पितृ पक्ष अश्विन अमावस्या पर खत्म होत हैं इसे सर्व पितृ अमावस्या कहते हैं. अधिक मास की वजह से इस साल सावन दो महीने का था. इसकी वजह से सभी व्रत-त्योहार 12 से 15 दिन देरी से पड़ेंगे. आमतौर पर पितृ पक्ष सितंबर में समाप्त हो जाते हैं लेकिन इस साल पितृ पक्ष सितंबर के आखिर में शुरू होंगे और अक्टूबर के मध्य तक चलेंगे.
क्यों खास है पितृ पक्ष ? (Pitru Paksha Importance)
ज्योतिषाचार्य डॉ अनीष व्यास ने बताया कि पितृपक्ष के दौरान पूर्वजों को श्रद्धापूर्वक याद करके उनका श्राद्ध कर्म किया जाता है. पितृपक्ष में पितरों को तर्पण देने और श्राद्ध कर्म करने से उनको मोक्ष की प्राप्ति होती है. इस दौरान न केवल पितरों की मुक्ति के लिए श्राद्ध किया जाता है, बल्कि उनके प्रति अपना सम्मान प्रकट करने के लिए भी किया जाता है. पितृपक्ष में श्रद्धा पूर्वक अपने पूर्वजों को जल देने का विधान है.
15 दिन के लिए आत्मा को मुक्ति देते हैं यमराज
ज्योतिषाचार्य ने बताया कि श्राद्ध का अर्थ श्रद्धा पूर्वक अपने पितरों को प्रसन्न करने से है. सनातन मान्यता के अनुसार जो परिजन अपना देह त्यागकर चले गए हैं, उनकी आत्मा की तृप्ति के लिए सच्ची श्रद्धा के साथ जो तर्पण किया जाता है, उसे श्राद्ध कहा जाता है. ऐसी मान्यता है कि मृत्यु के देवता यमराज श्राद्ध पक्ष में जीव को मुक्त कर देते हैं, ताकि वे स्वजनों के यहां जाकर तर्पण ग्रहण कर सकें. जिस किसी के परिजन चाहे वह विवाहित हो या अविवाहित हों, बच्चा हो या बुजुर्ग, स्त्री हो या पुरुष उनकी मृत्यु हो चुकी है उन्हें पितर कहा जाता है. पितृपक्ष में मृत्युलोक से पितर पृथ्वी पर आते है और अपने परिवार के लोगों को आशीर्वाद देते हैं. पितृपक्ष में पितरों की आत्मा की शांति के लिए उनको तर्पण किया जाता है। पितरों के प्रसन्न होने पर घर पर सुख शान्ति आती है.
पितृ पक्ष में श्राद्ध न करने पर क्या होता है ? (Shradha Significance)
ज्योतिषाचार्य ने बताया कि पितृपक्ष में हर साल पितरों के निमित्त पिंडदान, तर्पण और हवन आदि किया जाता है. सभी लोग अपने-अपने पूर्वजों की मृत्यु तिथि के अनुसार उनका श्राद्ध करते हैं. माना जाता है कि जो लोग पितृपक्ष में पितरों का तर्पण नहीं करते उन्हेंक पितृदोष लगता है. श्राद्ध करने से उनकी आत्मा को तृप्ति और शांति मिलती है. वे आप पर प्रसन्न होकर पूरे परिवार को आशीर्वाद देते हैं. हर साल लोग अपने पितरों की आत्मार की शांति के लिए गया जाकर पिंडदान करते हैं.
हमारे शरीर में वास करती हैं तीन पीढ़ियां
ज्योतिषाचार्य ने बताया कि श्राद्ध करने वालों को यह भी जानकारी होनी चाहिए कि तीन पीढ़ियां हमारे शरीर में अप्रत्यक्ष रूप से वास करती हैं. हमारे माता-पिता,दादा-दादी,परदादा-परदादी, वृद्ध परदादा वृद्ध परदादी इन तीन सूक्ष्म प्राणियों का शरीर हमारे शरीर में रहता है और हमारा अधिकार तीन पीढ़ियों तक रहता है. श्राद्ध को हम उसके प्रस्तुति समय में ही करें वह समय दोपहर के बाद का होता है. वह समय पितरों का समय होता है. उस समय के अनुरूप हमारा चलना अनिवार्य रहता है.
नहीं होते हैं मांगलिक कार्य (Manglik work stop in Pitru Paksha)
ज्योतिषाचार्य ने बताया कि पितृों के समर्पित इन दिनों में हर दिन उनके लिए खाना निकाला जाता है. इसके साथ ही उनकी तिथि पर बह्मणों को भोज कराया जाता है. इन 15 दिनों में कोई शुभ कार्य जैसे, गृह प्रवेश, कानछेदन, मुंडन, शादी, विवाह नहीं कराए जाते. इसके साथ ही इन दिनों में न कोई नया कपड़ा खरीदा जाता और न ही पहना जाता है. पितृ पक्ष में लोग अपने पितरों के तर्पण के लिए पिंडदान, हवन भी कराते हैं.
शास्त्रों में श्राद्ध का महत्व
ज्योतिषाचार्य ने बताया कि गरुड़ पुराण के अनुसार पितृ पूजन से संतुष्ट होकर पितर मनुष्यों के लिए आयु, पुत्र, यश, स्वर्ग, कीर्ति, पुष्टि, बल, वैभव, पशु, सुख, धन और धान्य देते हैं. मार्कण्डेय पुराण के अनुसार श्राद्ध से तृप्त होकर पितृगण श्राद्धकर्ता को दीर्घायु, संतति, धन, विद्या सुख, राज्य, स्वर्ग और मोक्ष प्रदान करते हैं. ब्रह्मपुराण के अनुसार जो व्यक्ति शाक के द्वारा भी श्रद्धा-भक्ति से श्राद्ध करता है, उसके कुल में कोई भी दुखी नहीं होता. देवस्मृति के अनुसार श्राद्ध की इच्छा करने वाला प्राणी निरोगी, स्वस्थ, दीर्घायु, योग्य संतति वाला, धनी तथा धनोपार्जक होता है. श्राद्ध करने वाला मनुष्य विविध शुभ लोकों और पूर्ण लक्ष्मी की प्राप्ति करता है.
श्राद्ध का विधान
ज्योतिषाचार्य ने बताया कि हिंदू-शास्त्रों के अनुसार मृत्यु होने पर मनुष्य की जीवात्मा चंद्रलोक की तरफ जाती है और ऊंची उठकर पितृ लोक में पहुंचती है. इन मृतात्माओं को अपने नियत स्थान तक पहुंचने की शक्ति प्रदान करने के लिए पिंडदान और श्राद्ध का विधान है.
कैसे करे श्राद्ध (Shradha Vidhi)
- ज्योतिषाचार्य ने बताया कि पितृपक्ष में हर दिन तर्पण करना चाहिए। पानी में दूध, जौ, चावल और गंगाजल डालकर तर्पण किया जाता है. इस दौरान पिंड दान करना चाहिए.
- श्राद्ध कर्म में पके हुए चावल, दूध और तिल को मिलकर पिंड बनाए जाते हैं. पिंड को शरीर का प्रतीक माना जाता है.
- इस दौरान कोई भी शुभ कार्य, विशेष पूजा-पाठ और अनुष्ठान नहीं करना चाहिए. हालांकि देवताओं की नित्य पूजा को बंद नहीं करना चाहिए.
- श्राद्ध के दौरान पान खाने, तेल लगाने और संभोग की मनाही है. इस दौरान रंगीन फूलों का इस्तेमाल भी वर्जित है.
- पितृ पक्ष में चना, मसूर, बैंगन, हींग, शलजम, मांस, लहसुन, प्याज और काला नमक भी नहीं खाया जाता है.
- इस दौरान कई लोग नए वस्त्र, नया भवन, गहने या अन्य कीमती सामान नहीं खरीदते हैं.
ज्योतिषाचार्य से जानें श्राद्ध की तिथियां (Pitru Paksha 2023 Shradha Tithi)
- 29 सितंबर - पूर्णिमा श्राद्ध
- 30 सितंबर - प्रतिपदा श्राद्ध , द्वितीया श्राद्ध
- 01 अक्टूबर - तृतीया श्राद्ध
- 02 अक्टूबर - चतुर्थी श्राद्ध
- 03 अक्टूबर - पंचमी श्राद्ध
- 04 अक्टूबर - षष्ठी श्राद्ध
- 05 अक्टूबर - सप्तमी श्राद्ध
- 06 अक्टूबर - अष्टमी श्राद्ध
- 07 अक्टूबर - नवमी श्राद्ध
- 08 अक्टूबर - दशमी श्राद्ध
- 09 अक्टूबर - एकादशी श्राद्ध
- 11 अक्टूबर - द्वादशी श्राद्ध
- 12 अक्टूबर - त्रयोदशी श्राद्ध
- 13 अक्टूबर - चतुर्दशी श्राद्ध
- 14 अक्टूबर - सर्व पितृ अमावस्या
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