Pitru Paksha 2023, Tripindi Shradha: मृत्यु के बाद आत्मा की शांति के लिए श्राद्ध करना अनिवार्य है नहीं तो रूह भटकती रहती है. उसे कभी स्वर्ग या मोक्ष नहीं मिलता.
यही वजह है कि सालभर में 15 दिन पूर्वजों के श्राद्ध के लिए समर्पित है. पितरों की आत्मा की शांति के लिए कई तरह के श्राद्ध किए जाते हैं जिसमें से एक है त्रिपंडी श्राद्ध. आइए जानते हैं त्रिपंडी श्राद्ध कब किया जाता है, क्या है इसका महत्व, नियम.
त्रिपिंडी श्राद्ध क्या है ? (Tripindi Shradh Meaning)
त्रिपिंडी श्राद्ध का अर्थ होता है हमारे द्वारा पिछली तीन पीढ़ियों का पूर्वजों का पिंडदान करना. त्रिपिंडी श्राद्ध में ब्रह्मा, विष्णु और शिव की प्रतिमाओं की प्राण प्रतिष्ठा करके पूजन करने का विधान होता है. परिवार में कोई पूर्वज की आत्मा अंतुष्ट है तो वो अपनी आने वाली पीढ़ियों को परेशान करती है और उन्हें सुख से नहीं रहने देती है. ऐसे में इन आत्माओं को शांत करने के लिए त्रिपिंडी श्राद्ध करके परमधाम भेजा जाता है.
त्रिपिंडी श्राद्ध का महत्व (Tripindi Shradha Sigificance)
जब किसी व्यक्ति का युवा अवस्था में निधन हो जाता है और अगर सभी अनुष्ठान सही तरीके से नहीं होते हैं. तीन पीढ़ी से पहले के पूर्वजों की आत्मा को शांत करने के लिए त्रिपिंडी श्राद्ध करना आवश्यक है. कुंडली में पितृ दोष है और उससे मुक्ति पाने के लिए त्रिपिंडी श्राद्ध सहायक होता है.
किन लोगों का किया जाता है त्रिपिंडी श्राद्ध
अगर किसी के परिवार में तीन पीढ़ियों में बाल्यावस्था, युवावस्था या वृद्धावस्था में किसी की अकाल मृत्यु अथवा दुर्घटना या जलने में या किसी प्रकार की असामयिक मृत्यु हो जाती है तो उनके आत्मा की शांति के लिए त्रिपिंडी श्राद्ध किया जाता है.
पितृ पक्ष में त्रिपिंडी श्राद्ध कब करते हैं ?
गया में सालों है पिंडदान व श्रद्धा किया जाता है, लेकिन त्रिपिंडी श्राद्ध गया में पितृपक्ष के महीने में अमावस्या के दिन करना विशेष फलदायी माना जाता है. गया के पंडित राजा आचार्य जी बताते हैं कि जिस व्यक्ति की कुंडली में इस प्रकार का दोष पाया जाता है उसे त्रिपिंडी श्राद्ध करना चाहिए.
त्रिपंडी श्राद्ध का नियम (Tripindi Shradha Niyam)
त्रिपिंडी श्राद्ध कर्म को करते वक़्त किसी का नाम और पितरों के गोत्र का उच्चारण नहीं किया जाता है. ऐसा इसलिए किया जाता है क्योंकि ऐसा माना जाता है कि श्राद्ध करने वाले व्यक्ति को इस बात का बोध नहीं होता है कि वो किस पूर्वज के श्राप से पीड़ित है एवं उसे किस पूर्वज को मुक्त कराना है. परिवार का कोई भी व्यक्ति त्रिपिंडी श्राद्ध कर सकता है. सिर्फ अविवाहित महिलाएं त्रिपिंडी श्राद्ध नहीं कर सकतीं.
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