Pitru Paksha Dashami Shradh 2022: पितृ पक्ष का आखिरी दिन 25 सितंबर 2022 को है. इस दिन सर्व पितृ अमावस्या है. 16 श्राद्ध पितरों के प्रति सम्मान प्रकट करने का समय होता है. 20 सितंबर 2022 को दशमी तिथि का श्राद्ध किया जाएगा. बिहार के गया जी में पूर्वजों का श्राद्ध करना बहुत उत्तम माना जाता है लेकिन एक ऐसी जगह भी है जो श्राद्ध कर्म के लिए गया जी से भी पवित्र मानी गई है. इस स्थान का नाम है त्रिशूलभेद तीर्थ. मान्यता है कि पितृ पक्ष में यहां पिंडदान और तर्पण करने से 'गया' के मुकाबले 16 गुना ज्यादा पुण्य मिलता है. आइए जानते त्रिशूलभेद तीर्थ की रोचक जानकारी.
पितृ पक्ष दशमी तिथि श्राद्ध 2022 मुहूर्त
अश्विन कृष्ण दशमी तिथि आरंभ- 19 सितंबर 2022, रात 07:01
अश्विन दशमी तिथि समाप्त - 20 सितंबर 2022, रात 09:26
त्रिशूलभेद तीर्थ पर श्राद्ध का महत्व
- देश में पितरों की शांति के लिए कई ऐताहासिक स्थान है जहां तर्पण और पिंडदान करने से पूर्वजों को मोक्ष की प्राप्ति होती है. त्रिशूलवेद तीर्थी उन्हीं में से एक है. कहते हैं राजा इंद्र आज भी पितृ पक्ष में पूर्वजों का श्राद्ध करने यहां अदृश्य रूप से आते हैं.
- मध्यप्रदेश के जबलपुर में नर्मदा नदी के तट पर स्थित त्रिशूलभेद तीर्थ को श्राद्ध कर्म के लिए बहुत प्रसिद्ध स्थान माना जाता है. मान्यता है कि यहां किया गया श्राद्ध गया जी की फल्गू नदी में पिंडदान और तर्पण करने से 16 गुना ज्यादा लाभदायक है.
- स्कंद पुराण के अनुसार राजा मनु ने भी पितरों की मोक्ष प्राप्ति के लिए त्रिशूलवेद तीर्थ पर ही तर्पण किया था. पौराणिक कथा के अनुसार नर्मदा को श्राद्ध की जननी कहा जाता है. रेवाखंड के अनुसार ब्रह्मांड का पहला श्राद्ध नर्मदा का तट पर ही किया गया था.
- रेवा खंड के अनुसार अनादि काल में जब देव, दानव, ऋषि, मुनियों को श्राद्ध कर्म की जानकारी से अनभिग्य थे. ऐसे में पितरों की आत्मा पृथ्वी लोक पर भटकती रहती थी. सतयुग में जब धरती पर नर्मदा नदी प्रकट हुईं तो पितरों ने स्वयं नर्मदा के तट पर श्राद्ध किया और मोक्ष को प्राप्त किया.
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