पुष्य नक्षत्र को लेकर धर्म ग्रंथों में विशेष बाते बताई गई हैं. इस नक्षत्र की क्या विशेषता है और शुभ कार्यों को करने के लिए इस नक्षत्र का चयन क्यों उत्तम है, जानते हैं-


भृगु संहिता अनुसार 27 नक्षत्रों में आठवां नक्षत्र, इसे 'पुष्य' नक्षत्र कहते हैं. पुष्य का अर्थ आप्टे संस्कृत शब्दकोश में "पू + यत् णुगागमः, ह्रस्वः" इसे हम साधारणतः मंगलमय, पोषक, पावित्र और गुणयुक्त भी कह सकते हैं.


वाल्मिकी रामायण युद्ध कांड 126.54 अनुसार, भगवान राम पुष्य नक्षत्र के योग में बिना किसी विध्न बाधा के अयोध्या लौटे थे (तो गङ्गां पुनरासाद्य वसन्तं मुनिसंनिधौ. अविघ्नं पुष्ययोगेन श्वो रामं द्रष्टुमर्हसि ॥ 54 ॥)। वाल्मिकी रामायण अनुसार भरत जी भी पुष्य नक्षत्र में पैदा हुए थे.


मत्स्य पुराण 263.7 अनुसार, पुष्य नक्षत्र प्रतिष्ठा में प्रशस्त माना गया हैं. (पुष्यो मृगशिरास्तथा। अनुराधा तथा स्वाती प्रतिष्ठादिषु शस्यते ॥ 7)


नारद पुराण (पूर्वभाग द्वितीय पाद) 56.175 अनुसार, पुष्य नक्षत्र को राज्याभिषेक (राजनीति), मंगल-कार्य, ध्वजारोपण, मन्दिर-निर्माण, आदि कार्य करना शुभ माना जाता हैं.


नारद पुराण (पूर्वभाग द्वितीय पाद) 56.174 अनुसार, पुष्य नक्षत्र विजयश्री दिलाने में अहम भूमिका निभाता हैं. मोदी सिर्फ अपनी ही नहीं बल्की अपनी पार्टी की भी विजयश्री के बारे मे भी सोच रहे होंगे.


नारद पुराण (पूर्वभाग द्वितीय पाद) 56.200 अनुसार, पुष्य नक्षत्र शुभ कर्मों में अभीष्ट फल दिलाता हैं.


स्कंद पुराण नागरखण्ड-उत्तरार्थ अध्याय क्रमांक 168-173 अनुसार, ऋषि जमदग्नि का जन्म भी पुष्य नक्षत्र को हुआ था.


मत्स्य पुराण 121.31-32 अनुसार भगवान शिव ने त्रिपुर का विनाश पुष्य नक्षत्र में ही किया था. (पुष्ययोगेण निर्माणं पुराणां च भविष्यति ॥ 31 पुष्ययोगेण च दिवि समेष्यन्ति परस्परम् । पुष्ययोगेण युक्तानि यस्तान्यासादयिष्यति ॥ 32 पुराण्येकप्रहारेण स तानि निहनिष्यति ।)।


पूज्य स्वामी श्री अंजनीनंदन दास अनुसार, हमारे यहां सदियों से पुष्य नक्षत्र को शुभता का द्योतक माना गया हैं. वैसे तो पुष्य नक्षत्र का स्वामी शनि हैं. शनि एक शक्तिशाली ग्रह हैं. इसके देवता हैं बृहस्पति. इसलिए यह शुभ नक्षत्र माना गया हैं.


यह मंगलकारी और प्रभावशाली होने के कारण विजयश्री दिलाता हैं. मंगलवार को सर्वार्थ योग भी पुष्य नक्षत्र के साथ है तब वो मेष राशि, वृश्चिक राशि, मिथुन राशि को लाभ पहुंचाएगा अगर वे कुछ ख़रीदे या कोई शुभ काम करें.


बृहस्पति इसका स्वामी है तो वह स्वर्ण का कारक हैं. शनि लोहे का कारक हैं. इसमें विजय की सम्भावना प्रबल होती हैं. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के पुरोहितों ने इसीलिए उनके नामांकन के लिए इसी विशिष्ट दिवस और नक्षत्र को चुना.


काशी तो शिवजी की नगरी है बृहस्पति देवता और शनि उनके शिष्य हैं. इससे काशी की महत्ता दुगुनी हो जाती हैं. साथ ही काशी की विशिष्टता अन्य जिलों को भी प्रभावित करती हैं.


ऋग्वेद 1.111.12 में भी इस नक्षत्र को मंगलकारी मानता हैं. इस योग का प्रभाव समस्त उत्तर प्रदेश में भी पड़ेगा. यह एक दैदीपयमान नक्षत्र है इसीलिए इसको तारा भी माना गया हैं.


गुरुवार के दिन गुरु पुष्य नक्षत्र और रविवार को रवि पुष्य नक्षत्र कहलाता हैं. शेष दिवस यह सर्वार्थ नक्षत्र के रूप में शुभता प्रदान करता हैं. आशा रखतें हैं की पुष्य नक्षत्र देश और विश्व के लिए भी शुभ हो.


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