Pradosh Vrat 2020: प्रदोष व्रत से भगवान शिव होते हैं प्रसन्न, ये है शुभ मुहूर्त, पूजन विधि और व्रत कथा
Pradosh Vrat: प्रदोष व्रत भगवान शिव का आर्शीवाद प्राप्त करने के लिए रखा जाता है. सोमवार के दिन पड़ने वाले प्रदोष व्रत को सोम प्रदोष व्रत भी कहा जाता है. आइए जानते हैं इस व्रत के बारे में.
Som Pradosh Vrat 2020: शिव पूजा में प्रदोष व्रत का बहुत महत्व है. शिव भक्त इस व्रत को पूरी श्रद्धा और भक्तिभाव से रखते हैं. मान्यता है कि इस व्रत को रखने से भगवान शिव प्रसन्न होते हैं और मनोकामनाएं को पूर्ण करते हैं. इस व्रत को रखने से सकारात्मक ऊर्जा भी प्राप्त होती है. प्रदोष व्रत चन्द्र मास की दोनों त्रयोदशी के दिन किया जाता है जिसमे से एक शुक्ल पक्ष के समय और दूसरा कृष्ण पक्ष के समय होता है.
प्रदोष व्रत में भगवान शिव और माता पार्वती की एक साथ पूजा होती है. तभी इसका पूर्ण फल प्राप्त होता है. पूरी श्रद्धा और सच्चे मन से इस व्रत को रखने से जीवन में की कठिनाइयां दूर होती हैं.
प्रदोष व्रत शुभ मुहूर्त
सोम प्रदोष व्रत तिथि: 20 अप्रैल 2020 त्रयोदशी तिथि प्रारंभ: 20 अप्रैल को सुबह 12 बजकर 42 मिनट त्रयोदशी तिथि समाप्त: 21 अप्रैल को सुबह 3 बजकर 11 मिनट
पूजा विधिइस दिन स्नान करने के बाद पूजा आरंभ करें. आसन को शुद्ध करें और भगवान शिव और माता पार्वती का आव्हान करें. इसके बाद भगवान शिव का जलाभिषेक करें और शिव मंत्रों को जाप करें. भगवान शिव को प्रिय चीजों का भोग लगाएं. इस दिन निराहार रहने का विधान है.
सोम प्रदोष व्रत कथा
पौराणिक कथा के अनुसार एक नगर में एक ब्राह्मणी रहती थी. जिसके पति का स्वर्गवास हो चुका था. उसका कोई सहारा नहीं था. इस महिला का एक पुत्र भी था. जीवित रहने के लिए ये दोनों भीख मांगते थे. एक दिन महिला घर वापिस जा रही थी तो उसे रास्ते में एक किशोर घायल हालत में मिला. महिला इस किशोर को अपने घर ले आई. यह किशोर एक राजकुमार था. शत्रु सेना ने उसके महल पर आक्रमण करके उसके पिता को बंदी बना लिया था. किशोर जान बचाकर किसी तरह वहां से निकल जाने में सफल हो गया. किशोर उस महिला और उसके पुत्र के साथ उसके घर में रहने लगा.
एक दिन अंशुमति नामक एक गंधर्व कन्या ने उस राजकुमार को देखा और उस पर मोहित हो गई. अगले दिन अंशुमति अपने माता-पिता को राजकुमार से मिलाने लाई. उन्हें भी राजकुमार भा गया. कुछ दिनों बाद अंशुमति के माता-पिता को शंकर भगवान ने स्वप्न में आदेश दिया कि राजकुमार और अंशुमति का विवाह कर दिया जाए. उन्होंने वैसा ही किया.
विधवा महिला प्रदोष व्रत रखती थी. उसके व्रत के प्रभाव और गंधर्वराज की सेना की सहायता से राजकुमार ने विदर्भ से शत्रुओं से युद्ध कर पिता के राज्य को पुन: वापिस ले लिया. राज्य मिलने के बाद राजकुमान ने महिला के पुत्र को प्रधानमंत्री बनाया. प्रदोष व्रत रखने के कारण महिला के अच्छे दिन आ गए और मां और पुत्र सुख शांति से जीवन गुजारने लगे.
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