Pradosh Vrat: चातुर्मास का हिंदू धर्म में विशेष महत्व बताया गया है. 1 जुलाई 2020 को देवशयनी एकादशी की तिथि से चातुर्मास का आरंभ हो चुका है. चातुर्मास में भगवान शिव पृथ्वी का भ्रमण करते हैं और सभी कार्यों को देखते हैं. इस दौरान भगवान विष्णु विश्राम करने के लिए पाताल लोक में चले जाते हैं और पृथ्वी की बागडोर भोलेनाथ को सौंप जाते हैं. इसलिए आज का प्रदोष व्रत और पूजा महत्वपूर्ण है.
प्रदोष व्रत का महत्व
आज का प्रदोष कई मायनों में श्रेष्ठ है. चातुर्मास का प्रथम प्रदोष व्रत इसलिए विशेष माना जाता है कि इस दौरान भगवान शिव पृथ्वी के कर्ताधर्ता होते हैं और पृथ्वी का भ्रमण करते हैं. इसलिए चातुर्मास में भगवान शिव की सभी पूजा का विशेष फल प्राप्त होता है. सवान के सोमवार के महत्व के पीछे भी यही धारणा है.
प्रदोष व्रत का फल
प्रदोष व्रत का पौराणिक कथाओं में विशेष महत्व बताया गया है. इस व्रत की पूजा सुबह और शाम दोनों समय में की जाती है. इस दिन भगवान शिव का अभिषेक किया जाता है. मान्यता है कि इस व्रत को रखने से आर्थिक संकट दूर होते हैं. वैवाहिक जीवन अच्छा होता है. घर से कलह का नाश होता है. घर में हर प्रकार की सुख समृद्धि रहती है.
प्रदोष व्रत की विधि
पंचांग के अनुसार आषाढ़ मास की शुक्ल पक्ष की त्रियोदशी को प्रदोष व्रत पड़ रहा है. यह महत्वपूर्ण व्रत है. विधि विधान से इस व्रत को पूर्ण करने से सभी मनोकामनाएं पूर्ण होती हैं. इस दिन सुबह स्नान करने के बाद भगवान शिव का अभिषेक करें. पंचामृत का पूजा में प्रयोग करें. धूप दिखाएं और भगवान शिव को भोग लगाएं. इसके बाद व्रत का संकल्प लें. मान्यता है कि इस दिन भगवान शिव त्रयोदशी तिथि में शाम के समय कैलाश पर्वत पर स्थित अपने रजत भवन में नृत्य करते हैं. इस दिन भगवान शिव प्रसन्न होते हैं.
प्रदोष काल पूजा का समय
इस दिन शाम की पूजा का मुहूर्त शाम 7 बजकर 19 मिनट से 9 बजकर 21 मिनट तक रहेगा.