Pradosh Vrat 2020: पंचांग के अनुसार 27 नवंबर को कार्तिक मास की शुक्ल पक्ष की त्रयोदशी तिथि को प्रदोष व्रत है. इस दिन चंद्रमा मेष राशि में गोचर कर रहा है. भगवान शिव का आर्शीवाद प्राप्त करने में इस व्रत को बहुत ही महत्वपूर्ण बताया गया है.


क्योंकि विशष है इसबार का प्रदोष व्रत
इस बार का प्रदोष व्रत विशेष है. चातुर्मास के समापन के बाद ये प्रथम प्रदोष व्रत है. चातुर्मास 25 नवंबर को एकादशी की तिथि को समाप्त हो चुका है. चातुर्मास में पृथ्वी की बागड़ोर भगवान शिव को सौंप भगवान विष्णु पाताल लोक में विश्राम के लिए प्रस्थान कर जाते हैं. चातुर्मास में भगवान शिव और माता पार्वती पृथ्वी का भ्रमण करते हैं और अपने भक्तों को आर्शीवाद प्राप्त करते है.


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प्रदोष व्रत का महत्व
इस व्रत को रखने आरोग्य और सौभाग्य दोनों की प्राप्ति होती है. इसलिए विधि विधान से इस व्रत को करना चाहिए. यह व्रत दुख दरिद्रता का भी नाश करता है. प्रदोष व्रत रखने से सभी प्रकार की मनोकामनाएं पूर्ण होती है.


क्या है प्रदोष
प्रदोष का अर्थ है शाम और रात्रि काल के समय को प्रदोष काल कहा जाता है. इसलिए इस दिन शाम को भी भगवान शिव की पूजा की जाती है.


शुभ मुहूर्त
कार्तिक शुक्ल पक्ष की त्रयोदशी तिथि 27 नवंबर को दिन शुक्रवार को सुबह 7 बजकर 47 मिनट से आरंभ होगी. 28 नवंबर शनिवार को सुबह 10 बजकर 22 मिनट पर यह तिथि समाप्त होगी.


पूजा विधि
इस दिन व्रत का संकल्प लेकर भगवान शिव का अभिषेक करना चाहिए. शिव मंत्र और शिव आरती का जाप करना चाहिए. प्रसाद के रूप में फलों का प्रयोग करें.


राहु और केतु की अशुभता दूर होती है
प्रदोष व्रत के दौरान भगवान शिव की पूजा करने से राहु और केतु की अशुभता को दूर होती है. राहु-केतु से बनने वाले कालसर्प दोष और पितृ दोष में भी शिव पूजा लाभकारी मानी गई है.


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