Pradosh Vrat: प्रदोष व्रत कई कष्टों को दूर करने वाला व्रत बताया गया है. पौराणिक कथाओं में इस व्रत के बारे में बहुत चर्चा की गई है. भगवान शंकर को समर्पित ये व्रत जीवन में सुख समृद्धि प्रदान करता है. इस व्रत से जुडी एक कथा है जिसे व्रत में सुनने का विधान है. आइए जानते हैं प्रदोष व्रत की कथा.


रवि प्रदोष व्रत कथा


एक कथा के अनुसार भागीरथी के तट पर ऋषियों ने विशाल गोष्ठी का आयोजन किया. इस सभा में व्यासजी के शिष्य पुराणवेत्ता सूतजी महाराज भी पधारे. सूतजी को आते हुए देखकर सभी ऋषि-मुनियों ने उनका आदर सम्मान किया. इसके बाद उन्होंने इस व्रत की कथा सुनाई.


एक गांव में गरीब ब्राह्मण रहता था.उसकी पत्नी प्रदोष व्रत किया करती थी. उसे एक ही पुत्ररत्न था. एक समय की बात है. वह पुत्र गंगा स्नान करने के लिए गया. लेकिन रास्ते में ही चोरों ने उसे घेर लिया. चोरों ने पुत्र से कहा कि हम तुम्हें मारेंगे नहीं अगर तुम अपने पिता के गुप्त धन के बारे में बता दो. बालक चोरों से कहा कि हम लोग बहुत गरीब हैं. हमारे पास धन कहां है से आया. चोरों को उसकी बात पर विश्वास नहीं हुआ तो उन्होंने पुत्र की पोटली छीन ली और पूछा इसमे क्या है. बालक ने कहा कि मेरी मां ने मेरे लिए रोटियां दी हैं. यह सुनकर चोरों ने अपने साथियों से कहा कि साथियों यह सच कह रहा है ये बहुत गरीब है. चोरों ने उस बालक को छोड़ दिया, बालक घुमते घुमते एक नगर में पहुंच गया है.


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नगर के पास एक बरगद का पेड़ था. घनी छाया देखकर बालक वहीं सो गया. उसी समय उस नगर के सिपाही चोरों को खोजते हुए उस बरगद के पेड के पास पहुंचे और बालक को चोर समझकर बंदी बना राजा के पास ले गए. राजा ने उसे कारावास में बंद करने का आदेश दिया. काफी समय बीत जाने के बाद जब बालक घर नहीं लौटा, तो उसकी मां को चिंता सताने लगी.


अगले दिन प्रदोष व्रत था. बालक की मां ने विधि पूर्वक प्रदोष व्रत किया और भगवान शिव से अपने पुत्र की रक्षा की. भगवान शिव ने मां की प्रार्थना स्वीकार कर ली. उसी रात भगवान शिव ने उस राजा को स्वप्न में आदेश दिया कि वह बालक चोर नहीं है. उसे प्रात:काल छोड़ दें अन्यथा उसका सारा राज्य नष्ट हो जाएगा.


सुबह होते ही राजा ने शिवजी की आज्ञानुसार उस बालक को कारावास से मुक्त कर दिया. बालक ने अपनी सारी कहानी राजा को सुनाई. इसके बाद राजा ने अपने सिपाहियों को आदेश देकर उस बालक के घर भेजा और उसके माता-पिता को राजदरबार में बुलाया. दरबार में पहुंचते ही  बालक के माता पिता डर गए. राजा ने कहा कि आप भयभीत न हो आपका बालक निर्दोष है. राजा ने ब्राह्मण को 5 गांव दान में दिए. इसके बाद भगवान शिव की कृपा से ब्राह्मण परिवार आनंद से रहने लगा.


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