Last Pradosh Vrat of Ashadh Mass: हिंदू धर्म ग्रंथों में शिव की साधना के लिए कुछ समय, तिथि और वार {दिन} बहुत ही महत्वपूर्ण बताये गए हैं. इसी में हर माह की त्रयोदशी तिथि भगवान शिव की उपासना के लिए बहुत ही उत्तम होती है. इस तिथि में भगवान शिव की विधि पूर्वक उपासना करने से मनोकामनाएं पूरी होने की मान्यता है.


बुध प्रदोष व्रत


जिस तरह से एक माह में दो एकादशी होती है उसी प्रकार एक माह में दो बार त्रयोदशी भी आती है. त्रयोदशी तिथि को ही प्रदोष व्रत रखा जाता है. यह प्रदोष व्रत भगवान शिव की कृपा दिलाने वाला होता है. अलग-अलग दिनों को पड़ने वाले प्रदोष व्रत के नाम भी अलग – अलग हैं. चूंकि आषाढ़ मास का आखिरी प्रदोष व्रत 21 जुलाई दिन बुधवार को पड़ रहा है. इस लिए इसे बुध प्रदोष व्रत कहते हैं.



प्रदोष काल में होती है शिव भगवान की पूजा


प्रदोष व्रत भगवान शिव को समर्पित होता है. प्रदोष व्रत रखते हुए प्रदोष काल में भगवान शिव की पूजा की जाती है. प्रदोष काल शाम के समय सूर्यास्त से लगभग 45 मिनट पहले शुरु हो जाता है और सूर्यास्त के 45 मिनट तक रहता है. यह समय पूजा का लिए शुभ माना जाता है. शास्त्रों के अनुसार मान्यता है कि इस समय भगवान शिव साक्षात शिवलिंग में प्रकट होते हैं. इस दिन भगवान शिव के पूजन से विशेष फल की प्राप्ति होती है और सभी मनोकामनाएं पूर्ण होती हैं.


प्रदोष व्रत का मह्त्व


प्रदोष व्रत करने से कुंडली में चंद्रमा का दोष और उसके प्रभाव से छुटकारा मिलता है, अर्थात शरीर में व्याप्त चंद्र तत्वों में सुधार होता है. चंद्रमा मन का स्वामी होता है, इसलिए चंद्रमा संबंधी दोष दूर होने से मन को शांति मिलती है. मान्यता है कि इस व्रत को करने से जीवन से जुड़ी सभी प्रकार के कष्टों से मुक्ति मिलती है और भगवान शिव और पार्वती की कृपा से सुख-शांति और समृद्धि मिलती है.