Prakash Parv 2024: सिख धर्म के 9वें गुरु श्री गुरु तेग बहादुर जी के जन्म दिवस को प्रकाश पर्व (Prakash Parv) के रुप में मनाया जाता है.


अपने आदर्शों और मानवीय मूल्यों के लिए अपने प्राणों की आहुति देने वाले गुरु तेग बहादुर (Guru Tegh Bahadur) जी का जन्म 21 अप्रैल 1621 को अमृतसर (Amritsar) में हुआ था.


गुरु तेग बाहदुर सिंह जी की जयंती के शुभ अवसर पर प्रकाश पर्व मनाया जाता है.  यह दिन महान योद्धा और सिखों के 9वें गुरु के सम्मान और याद में मनाया जाता है.


सिख समाज में प्रकाश पर्व का महत्व (Importance of Prakash Parv in Sikh Religion)


प्रकाश पर्व का सिख धर्म में बहुत महत्व है.


प्रकाश पर्व के दिन सुबह 4-5 बजे से ही सिख समुदाय के लोग वाहे गुरु, वाहे गुरु जपते हुए सुबह-सुबह प्रभात फेरी निकालते हैं.


ये फेरी गुरुद्वारे से शुरु होकर आस-पास की जगहों पर घूमकर गुरुद्वारे तक वापस जाती है. 


श्री गुरु तेग बहादुर जी को हिंद दी चादर (Hind Ki Chadar) के नाम से जाना जाता है. इनका जन्म वैशाख माह (Vaishakh Month) के कृष्ण पक्ष की पंचमी तिथि को हुआ था.


श्री गुरु गोबिंद सिंह दी गुरु हरगोबिंद सिंह (Guru Hargobind Singh) जी के बेटे थे. इनका विवाह माता गुजरी (Mata Gujri) के साथ हुआ.


साल 2024 में गुरु तेग बहादुर जी के जन्म की 402वीं जयन्ती विशेष रुप से मनाई गई.


श्री गुरु तेग बहादुर जी से जुड़ा इतिहास (Shri Guru Tegh Bahadur History)


गुरु तेग बहादुर के समय औरंगजेब (Aurangzeb) का शासन था, सिख इतिहास (Sikh History) की किताब में दावा किया गया है कि औरंगजेब के शासनकाल में जबरन हिंदूओं का धर्म परिवर्तन किया जा रहा था.
इस बात से परेशान होकर कई लोगों ने गुरु तेग बहादुर साहिब की शरण ली. धर्म की रक्षा के लिए गुरु तेग बहादुर मुगलों के सामने डटकर खड़े रहे. उन्होंने अपनी जान की परवाह किए बिना मुगलों के आगे ना झुकने का प्रण लिया.


यह बात जब औरंगजेब को पता चली तो वो बौखला गया. मुगल शासक ने उनके परिवार के सदस्यों को जान से मार दिया. औरंगजेब ने गुरु तेग बहादुर को इस्लाम धर्म स्वीकार करने का हुकुम सुना दिया लेकिन वह मुगलों के आगे नहीं झुके,


तभी 24 नवंबर 1675 को औरंगजेब के आदेश पर नई दिल्ली में सरेआम चौराहे पर गुरु तेग बहादुर का सिर कलम कर दिया गया. वर्तमान शीशगंज गुरुद्वारा (Shishganj Gurudwara Delhi) उसी स्थान पर बना है, जहां गुरु तेगबहादुर का शीश गिरा था.


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