Meditation : नर से नारायण होने का प्रयास यानी अपने सद्गुणों का विकास करने से ईश्वर अवश्य ही प्रसन्न हो सकते हैं. सहज ध्यान विधि से किसी भी परिस्थिति में तनाव रहित, संतुष्ट और आनंदमय जीवन जिया जा सकता है. ध्यान लगाने की यह एक ऐसी सरल-सहज विधि है, जो आम लोगों के लिए वरदान स्वरूप है. यह एक ऐसी पूजा है जिसमें ऊपरी किसी वस्तु यथा अगरबत्ती, दीपक, प्रसाद, माला आदि किसी की भी आवश्यकता नहीं पड़ती है.


सभी जानते हैं कि आत्मा परमात्मा का अंश है जैसे बूंद और समुद्र परंतु अनेक प्रकार के अच्छे-बूरे संस्कार और विचारों की भीड़ उस उज्जवल आत्मा को वैसे ही ढंक लेती है, जैसे राख की परत चिंगारी को ढंक लेती है. नाना प्रकार के सोच–विचार और दूसरों के क्रियाकलाप हमारी आत्मा को परेशान करते रहते हैं और हम दृढ़ संकल्प के अभाव में लाचार प्राणी की तरह जीवन को कोसते रहते है. हम अपने आप को दुखी और बीमार बना लेते हैं. नर से नारायण होने का प्रयास यानी अपने सद्गुणों के विकास करने में ईश्वर अवश्य ही प्रसन्न हो सकता है.


हमारे हृदय में ईश्वरीय प्रकाश है. संस्कारों और विचारों की राख हटाकर उसका ध्यान कीजिए, ऐसा अनुभव होगा जैसे व्यर्थ ही हमने कष्ट झेला. कस्तूरी मृग के समान सत् चित्त आनंद रूपी कस्तूरी हमारी आत्मा में ही विद्यमान है. सहज ध्यान से जीवन जीने की कला आती है. आत्मविश्वास बढ़ता है, एकाग्रता आती है और सबसे बड़ी बात प्रतिकूल परिस्थितियों में भी मनुष्य आनंद की अवस्था में रहता है, उत्साहपूर्वक काम करता है.


नारायण हमारे दायरे में थे और हमने वहां तक पहुंचने की कभी कोशिश ही नहीं. जैसे जल का वेग समस्त प्रकार के कूड़े-करकट को बहाकर स्वच्छ व शून्यता लाता है. उसी प्रकार ध्यान समस्त संस्कार जिनके कारण मनुष्य को आपदा, दुःख और क्लेश झेलना पड़ते है. तनाव पैदा करने वाले विचार, बिना कारण के ही अपमानित और तिरस्कृत होना पड़ता है, इन सबसे मुक्ति दिलाता है.


ध्यान के तीन चरण होते हैं. प्रथम चरण में कहा जाता है कि सहज रूप से हृदय में ईश्वर प्रकार को देखें. दिमाग पर बिल्कुल जोर न दें. अनगिनत विचार बाधा स्वरूप अवश्य आएंगे. भाव रखना है कि यह विचार हैं मेरे नहीं तथा अवांछित मेहमान की तरह क्षणिक सोचकर उपेक्षित कर दें और पुनः ध्यान में लग जाएं. प्रारंभ में प्रकाश के स्थान पर अंधकार नजर आ सकता है, परंतु धीरे-धीरे सफलता प्राप्त होगी. एक अथवा आधा घंटा ध्यान में लगाएं. द्वितीय चरण निर्मलीकरण है. संध्या के समय आधा घंटा बैठकर यह विचार करें कि समस्त विकार, द्वेष, आंतरिक कालिमा आदि धुआं या भाव बनकर शरीर से पीछे की ओर निकल रहे हैं. इन्हीं से ही हमें मुक्ति चाहिए, परंतु उन पर ध्यान न दें, सिर्फ निकाल बाहर करते रहें. 


रात्रि में सोने से पहले ईश्वर का ध्यान करते हुए उनसे प्रार्थना करें कि आप ही मुख्य ध्येय हैं, आप हमारी स्वामी एवं इष्ट हैं, मेरी उन्नति में अवांछित इच्छाएं बाधाक हैं बिना आपकी सहायता के मुझे सफलता नहीं प्राप्त होगी आप अपनी कृपा मुझपर बनाएं रहें। भावपूण प्रार्थना से गहरी और संपूर्ण नींद की प्राप्ति होगी और सुबह जागने पर तरोताजा भी महसूस करेंगे.


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