Premanand Ji Maharaj Anmol Vachan: प्रेमानंद जी महाराज एक महान संत और विचारक हैं जो जीवन का सच्चा अर्थ समझाते और बताते हैं. प्रेमानंद जी के अनमोल विचार जीवन को सुधारने और संतुलन बनाएं रखने में मार्गदर्शन करते हैं.


कितना विश्वास होता है भक्त को, कैसा वो श्रद्धावान होता है. इस कथन को लेकर जानें प्रेमानंद महाराज से एक अनमोल कथा. राजकुमार की पुत्री और एक जमींदार की पुत्री दोनों की मित्रता थी. एक बार राजा के यहां महात्मा आएं, वह अपने प्रभु की सेवा और सुमिरन में रहते हैं. भगवान का शालिग्राम स्वरुप उनके पास था, उनकी सेवा पूरी निष्ठा से करते रहते थे. दोनों लड़कियां यह देखती रहती थी, उनके मन में आया हम भी ठाकुर जी की ऐसी सेवा करेंगे. 


रोज सेवा, कीर्तन हुआ. दोनों सखियों ने कहां हमे भी ठाकुर सेवा मिले. संत ने विचार किया और बताया कि सेवा में बहुत सावधानी की आवश्यता होती है. लेकिन यह बच्चे हैं कहीं सेवा अपराध ना हो जाएं, कोई गलती ना हो जाएं. संत भगवान ने बच्चियों से कहा कल ठाकुर जी लाएंगे तो आपके दे देंगे. संत गांव के दौरे पर गए और दो पत्थर लेकर आएं. दोनों लड़कियों को पत्थर दे दिए. बोले ये लो तुम्हारे ठाकुर जी, दोनों ने दृढ़ निश्चय किया और गले से लगाया. श्रृद्धा भाव से उन्होंने उस पत्थर को अपना ठाकुर माना और उनका नाम शीलपल्ले ठाकुर नाम रखा. भक्ति भाव बढ़ता गया, लड़कियां निरंतर नाम जप करती रहीं.


दोनों सखियां जब बड़ी हुई उनके विवाह की बात हुई. राजकुमारी का विवाह राजकुमार से तय हुआ, ब्याह हो गया अपने माता-पिता से जब विदाई ली तो अपने ठाकुर जी को गोद में रखा और साथ ले गईं.  अंदर ही अंदर जल रही हैं और विदाई के दौरान प्रभु को कह रही थीं मैने प्रीतम केवल आपको माना है, संसार के व्यवहार में प्रतीम बना हुआ है लेकिन हमारे दो प्रतीम नहीं हो सकते, इस विचार को लेकर राजकुमारी उदास थी.


विदाई के समय जाते समय राजकुमार ने देखा से राजकुमारी उदास है तो उन्होंने उनकी पालकी रुकवाई और बात करनी चाही लेकिन राजकुमारी ने बात नहीं की, और अपने ठाकुर जी को निहारती रहीं. राजकुमार के मन में जलन हुई और समझ नहीं आया की ऐसा क्यों कर रही हैं. राजकुमारी अपने पिटारी खोलती और शीलपल्ले ठाकुर को देखती , नाम, जप और सेवा के प्रभाव से वो शील यानि पत्थर पत्थर नहीं रह गया था उसमें उनको सांवले श्याम सुंदर की झांकी मिलती थी. किसी भी वस्तु में दिव्यता होती है यह हमारी भावना होनी चाहिए, जिस पर निष्ठा हो गई वह सिद्ध हो जाता है.


राजकुमार ने समझ लिया जो इस पिटारी में है वहीं राजकुमारी और उनके बीच में हैं, राजुकमार ने दासी को बोला की राजकुमारी से बात करो और यह पिटारी मुझे दो, दासी ने पेटी राजकुमार को दे दी. राजकुमार के कहां यही पेटी आपके और हमारे बीच आ रही है और उसे तुरंत नदी में फेंक दिया.


राजकुमारी को राजकुमार महल ले गए, राजकुमारी ने अन्न जल त्याग दिया, और कहां अगर ठाकुर जी नहीं तो मैं नहीं कुछ खाऊंगी. राजकुमार भयभीत हो गए. क्या होगा अगर नवीन राजकुमारी ने प्राण त्याग दिए, राजकुमार ने घुटने टेक दिए, और कहा बताओं क्या करें जिससे आप प्रसन्न हो, राजकुमारी ने ठाकुर जी को लाने को कहा, ठाकुर जी को नदी मे फेंक दिया गया था. राजकुमार अपने परिवार के साथ नदी पर गए, लेकिन राजकुमारी से सामने यह शर्त रखी कि तुमसे ठाकुर जी कितना प्रेम करते हैं इसका प्रमाण दो, अगर वो तुमसे प्रेम करते हैं तो मैं आजीवन तुम्हारी आज्ञा में रहूंगा. 


राजकुमारी नदी के समीप गईं और गोविंद को कहां आपके बिना जीवित नहीं रहना, ठाकुर जी जल से सिंघासन सहित शीलपल्ले भगवान बाहर आ गए, जैसे कोई वायु के प्रवाह से आ रहा हो, और राजकुमारी के हद्वय से लग गए. सभी यह देखते रह गए.


हमारी भागवतीक निष्ठा ऐसी होनी चाहिए की जो गुरु जी ने जो मंत्र दिया है या जो सेवा दी है उसमें दृढ़ विश्वास होना चाहिए. किसी प्रकार का फिसलाव नहीं होना चाहिए.  बड़े-बड़ों से चूक हो सकती है, लेकिन जिनका मन प्रभु में समर्पित हो गया है उनसे चूक नहीं हो सकती.


Premanand Ji Maharaj: अपने मन को गंदी आदतों से कैसे बचाएं, जानें प्रेमानंद महाराज के अनमोल वचन


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