Premanand Ji Maharaj: आत्मज्ञान की प्राप्ति कैसे हो, जानें प्रेमानंद जी महाराज से उनके अनमोल वचन
Premanand Ji Maharaj Anmol Vachan: प्रेमानंद जी महाराज के सुविचार आपके जीवन को एक नई दिशा दे सकते हैं. जिंदगी में सफल बनने के लिए यहां पढ़ें उनके अनमोल वचन और जानें आत्मज्ञान की प्राप्ति कैसे करें.

Premanand Ji Maharaj Vachan: प्रेमानंद जी महाराज एक महान संत और विचारक हैं जो जीवन का सच्चा अर्थ समझाते और बताते हैं. प्रेमानंद जी के अनमोल विचार जीवन को सुधारने और संतुलन बनाएं रखने में मार्गदर्शन करते हैं.
प्रेमानंद जी महाराज से जानते हैं कि आत्मज्ञान की प्राप्ति कैसे हो सकती है, जानते हैं इस पर उनके अनमोल विचार. प्रेमानंद जी महाराज का मानना है कि जब हम भजन करते हैं तो हमारे मन में भूत का चिंतन या भविष्य की कल्पना या वर्तमान का व्यर्थ चिंतन रहता है. यह मनुष्य मन में हमेशा चलता रहेगा. जब तक जातक का मन निर्मल नहीं होगा तब तक ऐसे विकार आते रहेंगे.
जब हम गुरु मंत्र जपते, भागवत ध्यान करते हैं तो मन अपने विचार फेंकता रहता है. हमें इन विचारों पर ध्यान ना देकर ना राग करना है और ही द्वेष करना है. निरंतर गुरु मंत्र का जप और ध्यान करेंगे तो मन की वृत्तियां जो काम और क्रोध ला रही हैं वह शांत हो जाएगी. इसके बाद मनुष्य के मन में केवल मंत्र और जप चलेगा. इस काम के लिए हमे किसे के आशीर्वाद की जरुरत नहीं है इसके लिए हमें खुद प्रयत्न करना पड़ेगा. नाम, उपासना या मंत्र ये जो हमे मिला है उसमे हम तन्मय हो और बहुत जल्दी ऐसे विचारों को हम अपने मन से हटा दें.
जब हमारे मन से वृत्तियां नष्ट हो जाएगी तब आनंद आएगा. ना राग करो ना द्वेष करो उदासीन रहो तो वृतियां खुद नष्ट हो जाएगी. फिर अमृतमय आनंद आएगा, फिर संसार के भोग की तरफ आपका मन नहीं भागेगा. आत्माराम पुरुष कभी भी भ्रमित नहीं होता.
नाम, जप और चिंतन के द्वारा इन वृत्तियों को नष्ट कर देना चाहिए. जहां हद्वय निर्मल हुआ तो आगे का रास्ता आपके लिए सरल बन जाएगा. भगवान आपके मन में प्रकाशित हो जाएंगे. इसीलिए जगत संतो को नमस्कार करें. साधना करने वाले का 10 मिनट का मनोरंजन पूरे जीवन की साधना को मिट्टी में मिला सकता है. साधना में तत्पर रहो. काम, क्रोध की भावना सबके हद्वय में उत्पन्न होती है इनको साधना के द्वारा क्षीण किया जाता है, पूर्णता समाप्त नहीं होती. चिंगारी है उसको ज्वाला ना बनाएं, जीवनभर जबतक प्राण हैं शास्त्र विरुद्ध आचरण ना करें.
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