Premanand Ji Maharaj Vachan: प्रेमानंद जी महाराज एक महान संत और विचारक हैं जो जीवन का सच्चा अर्थ समझाते और बताते हैं. प्रेमानंद जी के अनमोल विचार जीवन को सुधारने और संतुलन बनाएं रखने में मार्गदर्शन करते हैं.
प्रेमानंद जी महाराज से जानें ईश्वर के प्रति हमारा प्रेम कैसा होना चाहिए. महाराज रहते हैं कि आराध्य देव के चरणों की ममता के आगे या उनके चरणों की सेवा ही सबसे बड़ा कर्म है. जैसे हम सांस के बिना जी नहीं सकते वैसे हम भगवान के बिना हमारा आस्तित्व ही नहीं है. अगर मनुष्य अपना चित समेट कर प्रभु के चरणों में पहुंच जाए तो मनुष्य का योग, धर्म, कर्म सब सार्थक हो जाएगा. अपने आराध्य देव में अनन्य ममतामय हो जाना ही ईश्वर को पाना है, यही सबसे बड़ा ईश्वर के प्रति हमारा प्रेम है. समस्त चिंतन रहित होकर अपने स्वरुप में हो जाना ही ईश्वर के प्रति हमारा प्रेम है. साधक को केवल अपने मार्ग को समझना है और अपने मार्ग पर सिद्ध हो जाना है.
अगर हम ईश्वर के प्रति अपनी ममता बटोर लें तो क्षमावान पुरुष किसी से द्वेष नहीं करता, सबसे मैत्री, करुणा का व्यवहार करता है.गुरु कृपा से असाधनों का त्याग हो जाए तो आप परमानंद स्वरुप हैं. अगर मनुष्य कोई कामना नहीं करता, तो वहां भगवान स्वंय प्रकाशित होकर निरंतर के लिए उनके मन में बैठ जाते हैं. भगवान अपने घर की तरह उसके हद्वय में रहते हैं. रात-दिन उसके हद्वय मंदिर में प्रकाशित रहते हैं. स्वरुप बोध हो जाए या भी अनन्य ममता से आप भगवान को पा सकते हैं. अगर थोड़ी भी ममता प्रभु के चरणों में कर लें तो भव सागर को पार कर लेंगे.
हम ईश्वर पर प्रेम करें ऐसा जैसा अज्ञानी पुरुष अपने शरीर से करता है ऐसे ही हम प्रभु के चरणों में ममता समेट दें.
Premanand Ji Maharaj: भक्त कैसे बनता है श्रद्धावान, जानें प्रेमानंद महाराज की इस अनमोल कथा से
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