Puja Aarti Niyam: हिंदू धर्म में पूजा-पाठ के आखिर में आरती करने का महत्व है. नियमित पूजा, मंदिर में पूजा, विशेष अनुष्ठान या हवन आदि सभी पूजा-पाठ में आरती करना महत्वपूर्ण होता है. आरती के बाद ही पूजा संपन्न मानी जाती है और पूजा का पर्याप्त फल प्राप्त होता है. आरती हमेशा पूजा के आखिर में की जाती है, इसका कारण यह है कि पूजा के दौरान हुई त्रुटि की क्षमा याचना या त्रुटि की पूर्ति हेतु भी आरती की जाती है. लेकिन सही विधि और नियम से की गई आरती से ही पूजा पूर्ण होती है. ग्रंथ, पुराण और शास्त्रों में आरती से जुड़े नियम और इसके महत्व के बारे में बताया गया है, जानते हैं इसके बारे में.


 ग्रंथ, पुराण और शास्त्रों के अनुसार जानें आरती का महत्व


दोहा: जिस घर में हो आरती चरण कमल चित्त लाय।
कहां हरि बासा करें
, जोत अनंत जगाय।।


अर्थ: जिस घर में प्रभु के चरण कमलों को ध्यान में रखते हुए पूर्ण आस्था और श्रद्धाभाव से आरती की जाती है, वहां प्रभु का वास होता है.


स्कंद पुराण- स्कंद पुराण में आरती के संबंध में कहा गया है कि, यदि कोई व्यक्ति मंत्र नहीं जानता ,पूजा की संपूर्ण विधि नहीं जानता. लेकिन भगवान की हो रही आरती और पूजा में श्रद्धापूर्वक शामिल होकर आरती करता है तो उसकी पूजा स्वीकार होती है.


शास्त्रों के अनुसार - भगवान विष्णु द्वारा कहा गया है कि, जो व्यक्ति घी के दीपक से आरती करता है, उसे कोटि कल्पों तक स्वर्गलोक में स्थान प्राप्त होत है. कपूर से आरती करने पर व्यक्ति को अनंत में प्रवेश मिलता है. जो व्यक्ति पूजा में होने वाली आरती के दर्शन करता है, उसे परमपद की प्राप्ति होती है .


पूजा में कितनी बार घुमाएं आरती


भगवान की आरती हमेशा एक ही स्थान पर खड़े होकर करनी चाहिए. आरती करते समय हमेशा थोड़ा झुककर आरती करें. आरती को चार बार भगवान के चरणों में, दो बार नाभि पर, एक बार मुखमण्डल पर और सात बार सभी अंगों पर उतारें. इस तरह के 14 बार आरती घुमाने से  चौदह भुवन जो भगवान में समाए हैं उन तक आपका प्रणाम पहुंचता है.


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