Rabindranath Tagore Jayanti 2023: भारतीय राष्ट्रगान के रचयिता और संगीत-साहित्यिक सम्राट रवींद्रनाथ टैगोर का का जन्मदविस 7 मई को मनाया जाता है. रवींद्रनाथ टैगोर की उपलब्धियां कम नहीं. रवींद्रनाथ टैगोंर ने अपने जीवन में 2200 से भी ज्यादा गीत लिखें हैं. उनके जीवन से जुड़ी कई ऐसी बातें हैं जो ज्यादातर लोगों को पता नहीं. आइए जानते हैं रवींद्रनाथ टैगोर के जन्मदिन पर उनके जीवन से जुड़ी कुछ महत्वपूर्ण और रोचक बातें.
रवींद्रनाथ टैगोर का जन्म
7 मई 1861 को कोलकाता में देवेंद्रनाथ टैगोर और शारदा देवी के घर एक बालक ने जन्म लिया जिसका नाम था रवींद्रनाथ, बचपन में उन्हें प्यार से सब उन्हें ’रबी‘ बुलाते थे. अपने सभी 13 भाई-बहनों में सबसे छोटे रवीन्द्रनाथ टैगोर को बालपन से परिवार में साहित्यिक माहौल मिला, इसी वजह से उन्हें साहित्य से बहुत लगाव रहा.
बैरिस्टर बनना चाहथे थे टैगोर
रवींद्रनाथ टैगोर बैरिस्टर बनना चाहते थे, 1878 में उन्होंने अपने इस लक्ष्य को पाने के लिए इंग्लैंड के ब्रिजस्टोन पब्लिक स्कूल में एडमिशन लिया. बाद में वह कानून की पढ़ाई के लिए लंदन कॉलेज यूनिवर्सिटी भी गए लेकिन वहां पढ़ाई पूरी किए बिना ही 1880 में वे वापस लौट आए.
8 साल में लिखी पहली कविता
बहुमुखी प्रतिभा के धनी रवींद्रनाथ टैगोर ने आठ वर्ष की उम्र में कविता लिखना शुरू कर दिया था, बल्कि जब वह 16 साल के थे तब उन्होंने छद्म नाम 'भानुसिंह' के तहत कविताओं का अपना पहला संग्रह जारी किया. वो भारत ही नहीं एशिया के पहले ऐसे व्यक्ति थे जिन्हें साहित्य के लिए 1913 में अपनी रचना गीतांजलि के लिए नोबेल पुरस्कार से सम्मानित किया गया था. आज भी रवींद्र संगीत बांगला संस्कृति का अभिन्न अंग माना जाता है.
टैगोर ने लिखे 3 देशों के राष्ट्रगान
रवींद्रनाथ टैगोर एक प्रतिष्ठित कवि, संगीतकार, नाटककार, निबंधकार समेत साहित्य की कई विधाओं में निपुण थे. टैगोर दुनिया के संभवत: एकमात्र ऐसे कवि हैं जिनकी रचनाओं को दो देशों ने अपना राष्ट्रगान बनाया, भारत का राष्ट्रगान ‘जन गण मन’ और बांग्लादेश का राष्ट्रगान ‘आमार सोनार बांग्ला’ टैगोर की ही रचनाएं हैं. कहा जाता है कि श्रीलंका के राष्ट्रगान का एक हिस्सा भी उनकी कविता से प्रेरित है.
रवींद्रनाथ टैगोर के नोबल पुरस्कार की कहानी
टैगोर पहले गैर यूरोपीय थे जिन्हें साहित्य के लिए नोबेल पुरस्कार मिला था. हालांकि टैगोर ने इस नोबेल पुरस्कार को सीधे स्वीकार नहीं किया, बल्कि उनकी जगह पर ब्रिटेन के एक राजदूत ने पुरस्कार लिया था. टैगोर को ब्रिटिश सरकार ने ‘नाइट हुड’ यानी 'सर' की उपाधि से भी नवाजा था लेकिन 1919 में हुए जलियांवाला बाग कांड के बाद टैगोर ने इस उपाधि को लौटा दिया.
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