Krishan leela : ब्रज में इंद्र की पूजा बंद कराए जाने से नाराज इंद्र ने जल प्रलय ला दिया था. इससे ब्रजवासियों को बचाने के लिए श्रीकृष्ण ने गोवर्धन पर्वत उठा लिया. मान्यता है कि इस दौरान उन्हें लगातार सात दिन भूखे रहना पड़ा. इसके बाद उन्हें सात दिन और आठ पहर के हिसाब से कुल 56 व्यंजन खिलाए गए थे. माना जाता है तभी से '56 भोग' परम्परा की शुरू हुई थी.


इसके अलावा एक और किवदंती है, जिसके मुताबिक राधारानी की आठ सखियां थीं, जिन्हें अष्टसखी कहा गया. इनमें शामिल चंपकलता व्यंजन तैयार करने और बर्तन बनाने में निपुण थीं. इसी कारण था कि वह श्रीकृष्ण की रसोई सेवा करती थीं. राधा और श्रीकृष्ण की पसंद का व्यंजन और भोग बनाया करती थीं. चंपकलता  के हाथों से बनाए 16 व्यंजन और 56 भोग के स्वाद के कृष्ण दीवाने थे. मान्यता है कि करहला गांव की रहने वाली चंपकलता श्रीकृष्ण से बेहद प्रेम करती थीं. उनका अंगवर्ण बिल्कुल चंपा के फूल की तरह थी, यही वजह थी कि उन्हें चंपकलता कहा जाता था. चंपकलता प्राय: नीली साड़ी या धोती पहनती थीं. अपनी पाक कुशलता के चलते श्रीकृष्ण भी उनके प्रति विशेष अनुराग रखते थे.


छप्पन भोग 
भक्त (भात), सूप (दाल), प्रलेह (चटनी), सदिका (कढ़ी), दधिशाकजा (दही शाक की कढ़ी), सिखरिणी (सिखरन), अवलेह (शरबत), बालका (बाटी), इक्षु खेरिणी (मुरब्बा), त्रिकोण (शर्करा युक्त), बटक (बड़ा), मधु शीर्षक (मठरी), फेणिका (फेनी), परिष्टश्च (पूरी), शतपत्र (खजला),सधिद्रक (घेवर), चक्राम (मालपुआ), चिल्डिका (चोला), सुधाकुंडलिका (जलेबी), धृतपूर (मेसू),वायुपूर (रसगुल्ला), चन्द्रकला (पगी हुई), दधि (महारायता), स्थूली (थूली), कर्पूरनाड़ी (लौंगपूरी), खंड मंडल (खुरमा), गोधूम (दलिया), परिखा, सुफलाढय़ा (सौंफ युक्त), दधिरूप (बिलसारू), मोदक (लड्डू), शाक (साग), सौधान (अधानौ अचार), मंडका (मोठ), पायस (खीर), दधि (दही), गोघृत (गाय का घी), हैयंगपीनम (मक्खन), मंडूरी (मलाई), कूपिका (रबड़ी), पर्पट (पापड़), शक्तिका (सीरा), लसिका (लस्सी), सुवत, संघाय (मोहन), सुफला (सुपारी), सिता (इलायची), फल, तांबूल, मोहन भोग, लवण, कषाय, मधुर, तिक्त, कटु, अम्ल छप्पन भोग में शामिल होते हैं.


 


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