Raksha Bandhan Bhadra Time 2024: सावन माह की शुरुआत 22 जुलाई से हो चुकी है, जो कि 19 अगस्त तक चलेगा. जिस दिन सावन महीना खत्म होगा. उसी दिन रक्षाबंधन (Rakhi) का पर्व मनाया जाएगा.


इस बार रक्षाबंधन और सावन का आखिरी सोमवार (Sawan Somwar) एक ही दिन पड़ रहा है. ऐसे भाई-बहनों को शिव जी (Shiv ji) का विशेष आशीर्वाद भी प्राप्त होगा, हालांकि रक्षाबंधन पर भद्रा का साया भी रहेगा. ऐसे में अभी से जान लें रक्षाबंधन पर राखी बांधने का शुभ मुहूर्त, भद्रा का समय.


सावन पूर्णिमा 2024 तिथि (Sawan Purnima 2024 Tithi)


इस साल सावन के शुक्ल पक्ष की पूर्णिमा तिथि 19 अगस्त सोमवार को रात 3:04 से शुरू हो रही है. यह 19 अगस्त को ही रात 11:55 पर समाप्त हो रही हैं.


रक्षाबंधन पर कई दुर्लभ संयोग (Raksha Bandha 2024 Shubh yoga)


इस बार राखी पर सर्वार्थ सिद्धि योग रहेगा. रक्षाबंधन पर तीन शुभ योग भी बन रहे हैं. शोभन योग पूरे दिन रहेगा. वहीं सर्वार्थ सिद्धि योग सुबह 5:53 से 8:10 तक रहेगा और रवि योग भी सुबह 5:53 से 8:10 तक रहेगा. सोमवार के दिन श्रवण नक्षत्र की साक्षी भी इस शुभ दिन को खास बना रही है.


रक्षाबंधन पर भद्रा का साया (Raksha Bandhan 2024 Bhadra kaal Time)


राखी बांधने का शुभ मुहूर्त (Raksha bandhan 2024 Shubh muhurat)


रक्षाबन्धन पर्व श्रावण शुक्ल पूर्णिमा को भद्रा रहित तीन मुहूर्त या उससे अधिक व्यापिनी पूर्णिमा को अपराह्न काल व प्रदोष काल में मनाया जाता है.


यथा पूर्णिमायां भद्रारहितायां त्रिमुहूत्र्ताधिकोदय व्यापिन्यामपराले प्रदोषे वा कार्यम्



  • चर-लाभ-अमृत-चर - दोपहर 02:07 से रात्रि 08:20 तक रहेगा.

  • दोपहर 01:48 से अपराह्न 04:22 तक राखी बांधने का विशेष मुहूर्त रहेगा.

  • प्रदोष काल - सायं 06:57 से रात्रि 09:10 के बीच भी राखी बांधने का शुभ मुहूर्त बन रहा है.


सावन पूर्णिमा होगी खास (Sawan Purnima Auspicious yoga)


भारतीय ज्योतिष शास्त्र में वार, तिथि, योग, नक्षत्र व करण का अपना विशेष प्रभाव होता है. पंचांग के इन्हीं पांच अंगों से किसी भी त्यौहार की श्रेष्ठ स्थित तथा पर्व को खास बनाने वाले योगों का निर्धारण होता है.  


इस बार श्रावणी पूर्णिमा 19 अगस्त को सोमवार के दिन श्रवण उपरांत धनिष्ठा नक्षत्र तथा शोभन योग की साक्षी में आ रही है. सोमवार के दिन श्रवण नक्षत्र के होने से सर्वार्थ सिद्धि योग बन रहा है. इस साल भी रक्षाबंधन पर भद्रा का साया रहेगा.


रक्षाबंधन का महत्व (Raksha Bandhan Significance)


हिंदू पंचांग के मुताबिक रक्षाबंधन सावन महीने की पूर्णिमा का हर साल मनाया जाता है.भाई-बहन के पवित्र रिश्ते का यह त्योहार पूरे भारत वर्ष में उत्साह के साथ मनाया जाता है और बहनें अपने भाई की कलाई पर रक्षा सूत्र बांधकर भाई की लंबी उम्र की कामना करती है, वहीं भाई भी बहन की रक्षा करने का संकल्प लेता है.


धार्मिक ग्रंथों के मुताबिक रक्षाबंधन का पर्व भद्रा काल में नहीं मनाना चाहिए. धार्मिक मान्यता है कि भद्रा काल के दौरान राखी बांधना शुभ नहीं होता है. पौराणिक कथा के अनुसार लंकापति रावण को उसकी बहन ने भद्रा काल में राखी बांधी थी और उसी साल प्रभु राम के हाथों रावण का वध हुआ था. इस कारण से भद्रा काल में कभी भी राखी नहीं बांधी जाती है.


पूजा विधि (Raksha Bandhan Puja vidhi)



  • रक्षाबंधन पर सबसे पहले राखी की थाली सजाएं.

  • इस थाली में रोली कुमकुम अक्षत पीली सरसों के बीज दीपक और राखी रखें.

  • भाई को तिलक लगाकर उसके दाहिने हाथ में रक्षा सूत्र यानी कि राखी बांधें.

  • राखी बांधने के बाद भाई की आरती उतारें, फिर भाई को मिठाई खिलाएं.

  • अगर भाई आपसे बड़ा है तो चरण स्पर्श कर उसका आशीर्वाद लें.

  • अगर बहन बड़ी हो तो भाई को चरण स्पर्श करना चाहिए.

  • राखी बांधने के बाद भाइयों को इच्छा और सामर्थ्य के अनुसार बहनों को भेंट देनी चाहिए.

  • ब्राह्मण या पंडित जी भी अपने यजमान की कलाई पर रक्षा सूत्र बांधते हैं.

  • ऐसा करते वक्त इस मंत्र का उच्चारण करना चाहिए


ॐ येन बद्धो बली राजा दानवेन्द्रो महाबलः।


तेन त्वामपि बध्नामि रक्षे मा चल मा चल।।


भद्रा में नहीं बांधनी चाहिए राखी


भद्रा को शनि देव की बहन और क्रूर स्वभाव वाली है. ज्योतिष में भद्रा को एक विशेष काल कहते हैं. भद्रा काल में शुभ कर्म शुरू न करने की सलाह सभी ज्योतिषी देते हैं. शुभ कर्म जैसे विवाह, मुंडन, गृह प्रवेश, रक्षा बंधन पर रक्षासूत्र बांधना आदि. सरल शब्दों में भद्रा काल को अशुभ माना जाता है.


मान्यता है कि सूर्य देव और छाया की पुत्री भद्रा का स्वरूप बहुत डरावना है. इस कारण सूर्य देव भद्रा के विवाह के लिए बहुत चिंतित रहते थे. भद्रा शुभ कर्मों में बाधा डालती थीं, यज्ञों को नहीं होने देती थी. भद्रा के ऐसे स्वभाव से चिंतित होकर सूर्य देव ने ब्रह्मा जी से मार्गदर्शन मांगा था.


उस समय ब्रह्मा जी ने भद्रा से कहा था कि अगर कोई व्यक्ति तुम्हारे काल यानी समय में कोई शुभ काम करता है तो तुम उसमें बाधा डाल सकती हो, लेकिन जो लोग तुम्हारा काल छोड़कर शुभ काम करते हैं, तुम्हारा सम्मान करते हैं.  तुम उनके कामों में बाधा नहीं डालोगी. इसी कथा की वजह से भद्रा काल में शुभ कर्म वर्जित माने गए हैं. भद्रा काल में पूजा-पाठ, जप, ध्यान आदि किए जा सकते हैं.


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