हिन्दु धर्म में किसी भी अनुष्ठान और पूजा के पश्चात पवित्र मौली बंधन की परम्परा है, बिना रक्षा सूत्र के कोई पूजा पूरी नहीं मानी जाती है. कच्चे धागों से बनी पवित्र मौली को बांधते समय एक मंत्र का वाचन किया जाता है. कलाई पर मौली रक्षाबंधन से धर्मलाभ के साथ स्वास्थ्य लाभ भी मिलता है. कलाई पर मौली वहाँ बांधी जाती है जहाँ पर आयुर्वेद के नाडी बैद्य हाथ से नाड़ी की गति पढ़कर बीमारी का पता लगा लेते हैं. आयुर्वेद के अनुसार उस स्थान पर मौली बांधने से नाड़ी पर दबाव पड़ता है और हम त्रिदोष से बच सकते हैं. इस धागे के दबाव से त्रिदोष याने कफ पित्त और वात के दोषों से बच सकते हैं.


रक्षासूत्र मंत्र-
येनबद्धो बलिराजा, दानवेन्द्रो महाबलः ।
तेनत्वाम् प्रतिबद्धनामि रक्षे माचल माचल।।


इस मंत्र का सामान्यत: यह अर्थ लिया जाता है कि दानवीर महाबली राजा बलि जिससे बांधे गए थे, उसी से तुम्हें बांधता हूं. हे रक्षे!(रक्षासूत्र) तुम चलायमान न हो, चलायमान न हो. धर्मशास्त्र के विद्वानों के अनुसार इसका अर्थ यह है कि रक्षा सूत्र बांधते समय ब्राह्मण या पुरोहत अपने यजमान को कहता है कि जिस रक्षासूत्र से दानवों के महापराक्रमी राजा बलि धर्म के बंधन में बांधे गए थे अर्थात् धर्म में प्रयुक्त किए गये थे, उसी सूत्र से मैं तुम्हें बांधता हूं, यानी धर्म के लिए प्रतिबद्ध करता हूं. इसके बाद पुरोहित रक्षा सूत्र से कहता है कि हे रक्षे तुम स्थिर रहना, स्थिर रहना। इस प्रकार रक्षा सूत्र का उद्देश्य ब्राह्मणों द्वारा अपने यजमानों को धर्म के लिए प्रेरित एवं प्रयुक्त करना है.


मौली का शाब्दिक अर्थ सबसे ऊपर है. इसका एक अर्थ शीश के रूप में लिया जाता है. भगवान शंकर के माथे पर चंद्रमा विराजमान है इसलिए शिव भगवान को चंद्रमौलेश्वर भी कहा जाता है. मौली बांधने की परंपरा राजा बलि के समय से चली आ रही है. दानवीर राजा बलि की अमरता के लिए भगवान वामन ने बलि के कलाई पर रक्षा सूत्र बांधा था.