Ram Aayenge: हिंदू धर्म में रामायण और रामचरितमानस को पवित्र ग्रंथ माना गया है. आदिकवि वाल्मीकि ने रामायण और गोस्वामी तुलसीदास ने रामचरितमानस की रचना की. रामचरितमानस में जहां रामजी के राज्यभिषेक तक का वर्णन मिलता है, वहीं रामायण में श्रीराम के महाप्रयाण (परलोक गमन) तक का वर्णन किया गया है.


राजा दशरथ ने पुत्र प्राप्ति के लिए कराया यज्ञ


अयोध्या के राजा दशरथ ने पुत्र प्राप्ति के लिए यज्ञ कराने की ठानी. यज्ञ संपन्न कराने का कार्य उन्होंने समस्त मनस्वी, तपस्वी, विद्वान ऋषि-मुनियों और वेदविज्ञ प्रकांड ब्राह्मणों को सौंपा. यज्ञ के दौरान समस्त अभ्यागतों के साथ ही गुरु वशिष्ठ और ऋंग ऋषि भी पहुंचे. इसके बाद विधि-विधान से यज्ञ का शुभारंभ किया गया.


यज्ञ समाप्त होने के बाद राजा दशरथ ने सभी ऋषियों, पंडितों व ब्राह्मणों को यथोचित धन-धान्य और गौ इत्यादि का भेट देकर विदा किया. इसके बाद राजा दशरथ ने यज्ञ का प्रसाद खीर (चरा) तीनों रानियों को दिया. इस दिव्य प्रसाद को ग्रहण करने के बाद तीनों रानियां गर्भवती हो गईं.


शुभ ग्रह-नक्षत्र और मुहूर्त में हुआ रामलला का जन्म


रामायण के अनुसार, चैत्र माह की शुक्ल पक्ष की नवमी तिथि को पुनर्वसु नक्षत्र में जब सूर्य, मंगल,शनि, बृहस्पति और शुक्र ग्रह अपमे उच्च स्थानों में विराजमान थे, तब कर्क लग्न का उदय होते ही सबसे बड़ी रानी कौशल्या ने के गर्भ से रामलला का जन्म हुआ था. रामलला का जन्म होते ही संपूर्ण अयोध्या राज्य में आनंद व उल्लास का माहौल था. इस उल्लास में गन्धर्व गान करने लगे और अप्सराएं नृत्य करने लगीं. देवताओं द्वारा पुष्प की वर्षा हुई.


मनमोहक और दिव्य रूप में जन्मे रामलला


रामलला का जन्म भगवान विष्णु के 7वें अवतार के रूप में धरती पर हुआ. रामलला का शिशु रूप अत्यंत ही मनमोहक और आकर्षक था. नील वर्ण, चुंबकीय आकर्षण, तेजोमय, कान्तिवान और सुंदर.. शिशु रूप में रामलला को जो कोई भी देखता वह बस देखता ही रह जाता है. रानी कौशल्या के बाद कैकयी के गर्भ से भरत और रानी सुमित्रा के गर्भ से दो तेजस्वी पुत्रों लक्ष्मण और शत्रुघ्न का जन्म हुआ था. चारों पुत्रों का मुख देख राजा दशरथ का हृदय खुशी, गर्व और आनंद से भर गया. गोस्वामी तुलसीदास जी राजा दशरथ की इसी खुशी का वर्णन करते हुए रामचरितमानस में लिखते हैं-


दसरथ पुत्रजन्म सुनि काना। मानहु ब्रह्मानंद समाना॥
परम प्रेम मन पुलक सरीरा। चाहत उठन करत मति धीरा।। 


अर्थ है- पुत्र के जन्म की खबर कानों से सुनकर मानो राजा दशरथ ब्रह्मानंद में समा गए हों. उनके मन में अतिशय प्रेम है, शरीर पुलकित हो गया है. वे बुद्धि को धीरज देकर उठना चाहते हैं.


(अगले भाग में जानेंगे रामलला के जन्म के बाद कैसे आनंद मग्न हो गई थी अयोध्या)


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