(Source: ECI/ABP News/ABP Majha)
Ram Aayenge: रामलला के जन्म के बाद त्रेतायुग में कैसे सजी थी अवधपुरी, जानिए राम आएंगे के चौथे भाग में
Ram Aayenge: रामलला के जन्म के बाद राजा दशरथ का हृदय गर्व से भर उठा था और अवधपुरी में आनंद था. त्रेतायुग में रामजी का जन्म के समय अवधपुरी ऐसी सुशोभित हुई थी मानो रात्रि स्वयं प्रभु से मिलने आई हो.
Ram Aayenge: हिंदू धर्म में रामायण और रामचरित मानस को श्रेष्ठ और पवित्र ग्रंथ की मान्यता प्राप्त है. महर्षि वाल्मीकि ने रामायण और गोस्वामी तुलसीदास जी द्वारा रामचरित मानस की रचना गई है. रामचरित मानस में जहां रामजी के राज्यभिषेक तक का वर्णन मिलता है, तो वहीं रामायण में श्रीराम के महाप्रयाण (परलोक गमन) तक का वर्णन किया गया है.
राम आएंगे के तीसरे भाग में हमने जाना कि, रामलला के जन्म से प्रसन्न और गौरान्वित होकर राजा दरशन ने नेग देने का निश्चय कर लिया था, लेकिन सभी ने नेग लेने से इंकार कर दिया. क्योंकि जनमानस को तो केवल अपने इष्ट रामलला के दर्शन मात्र की लालला थी. ऐसे में किन्रर समाज के लोगों ने राजा के भेंट को स्वीर किया और नवपुल्लवित पुष्प को सकल ब्रह्मांड के आदित्य होने का वरदान दिया. अब राम आएंगे के चौथे भाग में जानेंगे कि त्रेतायुग में रामलला के जन्म के बाद कैसी सजी थी अवधपुरी. इसका वर्णन रामचरितमानस के बालकांड में मिलता है-
त्रेतायुग क्या है, इससे क्या है राम का संबंध
हिंदू धर्म में चार युग बताए गए हैं. त्रेतायुग इन्हीं युगों में दूसरा युग है. सतयुग के समाप्त होने के बाद त्रेतायुग की शुरुआत मानी जाती है. यह युग 12 लाख 96 हजार वर्ष का था. कहा जाता है कि, इस युग में मानव की आयु करीब 10 हजार वर्ष साल होती है. इस युग में भगवान विष्णु ने पांचवे अवतार वानम, छठा अवतार परशुराम और सातवां अवतार श्रीराम के रूप में जन्म लिया.
त्रेतायुग से श्रीराम का संबंध इसलिए भी गहरा है, क्योंकि इस युग के आखिरी और सातवां अवतार श्रीराम थे, जिनका जन्म अयोध्या के महराजा दशरथ के घर हुआ था. त्रेतायुग में भगवान राम के सरयू नदी में जल समाधि लेने के बाद द्वापर युग में आरंभ हुआ.
नौमी तिथि मधु मास पुनीता। सुकल पच्छ अभिजित हरिप्रीता॥
मध्यदिवस अति सीत न घामा। पावन काल लोक बिश्रामा॥1॥
अर्थ है:- पवित्र चैत्र मास था, नवमी तिथि थी. शुक्ल पक्ष और भगवान का प्रिय अभिजीत मुहूर्त था. दोपहर का समय था. न ही बहुत अधिक सर्दी थी, न गरमी थी. वह पवित्र समय सब लोकों को शांति देने वाला था.
ध्वज पताक तोरन पुर छावा। कहि न जाइ जेहि भाँति बनावा॥
सुमनबृष्टि अकास तें होई। ब्रह्मानंद मगन सब लोई॥1॥
अर्थ:- ध्वजा, पताका और तोरणों से नगर छा गया, जिस तरह से वह सजाया गया, उसका तो वर्णन ही नहीं हो सकता. आकाश से फूलों की वर्षा हो रही है और सब लोग ब्रह्मानंद में मग्न हैं.
अवधपुरी सोहइ एहि भाँती। प्रभुहि मिलन आई जनु राती॥
देखि भानु जनु मन सकुचानी। तदपि बनी संध्या अनुमानी॥2॥
अर्थ:- अवधपुरी इस प्रकार सुशोभित हो रही है, मानो रात्रि प्रभु से मिलने आई हो और सूर्य को देखकर मानो मन में सकुचा गई हो, परन्तु फिर भी मन में विचार कर वह मानो संध्या बन गई हो.
(अगले भाग में जानेंगे रामलला का नामकरण संस्कार)
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