Ram Aayenge: रामायण और रामचरित मानस हिंदू धर्म का पवित्र ग्रंथ हैं. महर्षि वाल्मीकि ने रामायण और गोस्वामी तुलसीदास जी द्वारा रामचरित मानस की रचना गई है. रामचरित मानस में जहां रामजी के राज्यभिषेक तक का वर्णन मिलता है, तो वहीं रामायण में श्रीराम के महाप्रयाण (परलोक गमन) तक का वर्णन किया गया है.
यानी राम का जीवन अपरम्पार है, जिसे समझना कठिन है. राम को यदि जाना जा सकता है तो केवल प्रेम से. आइए अंतःकरण के प्रेम से भगवान राम का स्मरण करें.
राजा दशरथ के चारों पुत्र राम, भरत, शत्रुघ्न और लक्ष्मण की शिक्षा पूरी हो जाने पर सभी गुरु वशिष्ठ के आश्रम से वापस महल को लौट आएं. राम आएंगे के नौवें भाग में हमने जाना कि, एक दिन अचानक महर्षि विश्वामित्र राजा दशरथ के महल आते हैं. विश्वामित्र राजा से राजा और लक्ष्मण को मांगते हैं.
राजा दशरथ अपने प्राण और देह से प्यारे पुत्रों को विश्वामित्र को सौंपने से बड़ा कष्ट पाते हैं. लेकिन इसके बाद वे राम और लक्ष्मण को विश्वामित्र के साथ उनके आश्रम भेज देते हैं. इस संबंध में तुलसीदास जी कहते हैं- सुनि राजा अति अप्रिय बानी। हृदय कंप मुख दुति कुमुलानी॥ चौथेंपन पायउँ सुत चारी। बिप्र बचन नहिं कहेहु बिचारी॥ राम आएंगे के दसवें भाग में आज जानेंगे आखिर क्यों महर्षि विश्वामित्र को राम और लक्ष्मण को अपने साथ ले जाना पड़ा.
आश्रम पहुंचकर विश्वामित्र ने राम को बताई सारी बात
महर्षि विश्वामित्र राम और लक्ष्मण को राज महल से आश्रम ले आते हैं और इसके बाद उन्हें राक्षसी ताड़का के बारे में बताते हैं कि, कि वह उसके यज्ञ में बाधा डालती है. इसलिए उसका विनाश करना जरूरी है.
कौन है ताड़का
सुकेतु नाम के यक्ष राजा थे लेकिन उन्हें कोई संतान नहीं थी. इसके लिए उन्होंने ब्रह्मा जी की कठोर तपस्या की और उसकी तपस्या से प्रसन्न होकर ब्रह्म देव ने दर्शन दिए. सुकेतु ने ब्रह्मा जी से अत्यंत बलवान संतान प्राप्ति का वरदान मांगा. इसके बाद ब्रह्मा जी के इच्छास्वरूप सुकेतु को अत्यंत बलशाली पुत्री की प्राप्ति हुई, जिसका नाम सुकेतु ने ताड़का रखा. कहा जाता है कि ताड़का में हजार हाथियों से समान बल था. बलशाली होने के साथ ही ताड़का बेहद सुंदर भी थी. ताड़का का विवाह सुंद नाम के एक राक्षस के साथ हुआ. विवाह के बाद ताड़का ने दो पुत्रों को जन्म दिया जिसका नाम सुबाहु और मारीच था.
ऋषि के श्राप से सुंदर ताड़का बनगई कुरूप स्त्री
ताड़का का पति सुंद राक्षस प्रवृत्ति का था, इसलिए वह हमेशा ऋषियों के धार्मिक कार्यों में बाधा उत्पन्न करता था. वह हमेशा यज्ञ ध्वस्त करता और तपस्या में विघ्न डालता था. एक दिन तो उसने ऋषि अगस्त्य के आश्रम पर ही आक्रमण कर दिया, जिससे क्रोधित होकर ऋषि ने सुंद को श्राप दे दिया और वह वहीं जलकर भस्म हो गया.
पति सुंद के मृत्यु की खबर सुनकर ताड़का ऋषि पर क्रोधित हो गई और अपने दोनों पुत्रों सुबाहु और मारीच को लेकर ऋषि अगस्त्य के आश्रम पर हमला कर दिया. ताड़का के स्त्री होने के कारण ऋषि ने उसका वध नहीं किया, लेकिन उन्होंने ताड़का को श्राप दे दिया कि वह सुंदर स्त्री से कुरूप महिला बन जाए. इसके बाद से अत्यंत सुंदर ताड़का नरभक्षी और कुरूप स्त्री बन गई. ताड़का के साथ उसके दोनों पुत्रों की भी दुर्दशा कुछ ऐसी ही हो गई.
इसके बाद ताड़का अपने दोनों पुत्रों के साथ अयोध्या के सरयू नदी के किनारे वन में रहने लगी. लेकिन पति की मृत्यु और स्वयं के अपमान का बदला लेने की ज्वाला उसके भीतर धधक रही थी. इसलिए उसने वन में रहने वाले ऋषियों को सताना शुरू कर दिया. ताड़का और उसके पुत्र ऋषियों के यज्ञ में बाधा डालते थे और अपनी शक्ति से ऋषि-मुनियों की हत्या कर उनका भक्षण करते थे. इस तरह के ताड़का का प्रकोप दिन प्रतिदिन बढ़ने लगा.
अयोध्या के सरयू नदी के किनारे वन में ही महान ऋषि विश्वामित्र का भी आश्रम था. विश्वामित्र नियमित यज्ञ करते और दैवीय अस्त्र आदि का निर्माण करते. लेकिन ताड़का अपने पुत्रों के साथ विश्वामित्र के यज्ञ में भी बाधा उत्पन्न करने लगी. ऐसे में यज्ञ पूरा न होने से अस्त्रों का निर्माण काम भी पूरा नहीं हो पाता था. एक दिन जब विश्वामित्र महत्वपूर्ण यज्ञ कर रहे थे, तब ताड़का के पुत्रों ने यज्ञ को विध्वंस कर दिया.
राजा दशरथ से विश्वामित्र ने राम-लक्ष्मण को मांगा
यज्ञ में लागतार बाधा उत्पन्न होने के कारण विश्वामित्र ताड़का और उसके पुत्रों से अत्यंत क्रोधित थे. उनके पास ताड़का और उसके पुत्रों का नाश करने के लिए उचित पराक्रम और अस्त्र-शस्त्र भी थे, लेकिन अपनी प्रतिज्ञा के कारण वे ऐसा करने में असमर्थ थे. इसलिए विश्वामित्र अयोध्या नरेश दशरथ के पास गए और उनसे सहायता मांगी. विश्वामित्र ने राजा दशरथ से राम और लक्ष्मण को मांगा.
सुर समूह सतावहिं मोही। मैं जाचन आयउँ नृप तोही॥
अनुज समेत देहु रघुनाथा। निसिचर बध मैं होब सनाथा॥
महर्षि विश्वामित्र ने राजा दशरथ से कहा- हे राजन्! असुरों के समूह मुझे बहुत सताते हैं इसीलिए मैं तुमसे कुछ मांगने आया हूं. तुम मुझे छोटे पुत्र सहित श्री रघुनाथजी को दे दो. असुरों के मारे जाने के बाद मैं सुरक्षित हो जाऊंगा.
ताड़का वध
अयोध्या के राजकुमार राम और लक्ष्मण दोनों विश्वामित्र के आश्रम की सुरक्षा करते हैं. एक दिन ताड़का के पुत्र सुबाहु और मारीच ऋषियों पर आक्रमण करने और यज्ञ में बाधा डालने के लिए आते हैं, तभी राम और लक्ष्मण अपने धनुष बाण से उनपर आक्रमण करते हैं. श्रीराम के धनुष बाणों से सुबाहु की मृत्यु हो जाती है और मारीच घायल हो जाता है.
पुत्रों की दुर्दशा देख ताड़का भी अत्यंत क्रोधित हो जाती है. तब विश्वामित्र राम को ताड़का का वध करने के लिए कहते हैं. पहले तो श्रीराम स्त्री हत्या करने के लिए हिचकिचाते हैं, क्योंकि धर्म उन्हें ऐसा करने की अनुमति नहीं देता. लेकिन महर्षि विश्वामित्र का आदेश पाकर वो ऐसा करने के लिए मान जाते हैं. क्योंकि वो ब्राह्मण की आज्ञा का उल्लघंन नहीं कर सकते थे. इसके बाद भगवान राम एक ही बाण से ताड़का का वध कर देते हैं.
चले जात मुनि दीन्हि देखाई। सुनि ताड़का क्रोध करि धाई॥
एकहिं बान प्रान हरि लीन्हा। दीन जानि तेहि निज पद दीन्हा।।
इस तरह से भगवान राम द्वारा वध किए जाने पर ताड़का को अगस्त्य मुनि के श्राप से मुक्ति मिल जाती है. इसके साथ ही वह कुरूप स्त्री और नरभक्षी रूप से भी मुक्त हो जाती है. वहीं भगवान के रूप में श्रीहरि द्वारा वध किए जाने के कारण ताड़का को मोक्ष की भी प्राप्ति होती है.
(राम आएंगे के अगले भाग में जानेंगे गरुड़ का काकभुशुण्डि से रामकथा और राम महिमा सुनना)
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