Ram Aayenge: ठुमुकु ठुमुकु प्रभु चलहिं पराई...जानिए रामलला की बाल लीलाएं
Ram Aayenge: दशरथ के चारों पुत्र राम, भरत, शत्रुघ्न और लक्ष्मण का नामकरण महर्षि वशिष्ठ ने किया. राम अपने बाल स्वरूप से सबको आकर्षित करने लगे.रामलला ने अपनी बाल क्रीडा से सभी नगर वासियों को सुख दिया.
Ram Aayenge: रामायण और रामचरित मानस हिंदू धर्म के पवित्र ग्रंथ हैं. महर्षि वाल्मीकि ने रामायण और गोस्वामी तुलसीदास जी द्वारा रामचरित मानस की रचना गई है. रामचरित मानस में जहां रामजी के राज्यभिषेक तक का वर्णन मिलता है, तो वहीं रामायण में श्रीराम के महाप्रयाण (परलोक गमन) तक का वर्णन किया गया है.
राम आएंगे के पांचवे भाग में हमने जाना कि, राजा दशरथ के चारों पुत्रों रामचंद्र, भरत, शत्रुघ्न और लक्ष्मण का नामकरण महर्षि वशिष्ठ द्वारा किया गया. साथ ही वशिष्ठ जी ने राम नाम के अर्थ और महत्व के बारे में भी बताया. जन्म के बाद रामलला का नाम दशरथ राघव रखा गया था, लेकिन नामकरण संस्कार के दौरान महर्षि वशिष्ठ ने उनका नाम ‘राम’ रखा.
अब राम आएंगे के छठे भाग में जानेंगे रामलला की बाल क्रीड़ा और लीलाएं. प्रभु की बाल लीलाओं से न केवल पिता दशरथ और माता कौशल्या का मन पुल्कित होता, बल्कि प्रभु ने अपने मनोहर बाल रूप और बाल क्रीड़ा से समस्त नगरवासियों को भी सुख दिया. माता कौशल्या तो कभी अपने लाल को हिलाती-डुलाती तो कभी पालने में झुलाती.
तुलसीदास श्रीराम के बालक रूप और लीलाओं का सुंदर वर्णन करते हैं-
बालचरित अति सरल सुहाए। सारद सेष संभु श्रुति गाए॥
जिन्ह कर मन इन्ह सन नहिं राता। ते जन बंचित किए बिधाता॥1॥
अर्थ:- रामचन्द्र की बहुत ही भोली और मनभावनी बाल लीलाओं का सरस्वती, शेषजी, शिवजी और वेदों ने गान किया है. जिनका मन इन लीलाओं में अनुरक्त नहीं हुआ, विधाता ने उन मनुष्यों को वंचित कर दिया.
बालचरित हरि बहुबिधि कीन्हा। अति अनंद दासन्ह कहँ दीन्हा॥
कछुक काल बीतें सब भाई। बड़े भए परिजन सुखदाई॥1॥
अर्थ:- भगवान ने बहुत प्रकार से बाललीलाएं कीं और अपने सेवकों को अत्यन्त आनंद दिया. कुछ समय बीतने पर चारों भाई बड़े होकर कुटुम्बियों को सुख देने वाले हुए.
चूड़ाकरन कीन्ह गुरु जाई। बिप्रन्ह पुनि दछिना बहु पाई॥
परम मनोहर चरित अपारा। करत फिरत चारिउ सुकुमारा॥2॥
अर्थ:-तब गुरुजी ने जाकर चूड़ाकर्म-संस्कार (मुंडन) किया. ब्राह्मणों ने फिर बहुत सी दक्षिणा पाई. चारों सुंदर राजकुमार बड़े ही मनोहर अपार चरित्र करते फिरते हैं.
मन क्रम बचन अगोचर जोई। दसरथ अजिर बिचर प्रभु सोई॥
भोजन करत बोल जब राजा। नहिं आवत तजि बाल समाजा॥3॥
अर्थ:-जो मन, वचन और कर्म से अगोचर हैं, वही प्रभु दशरथजी के आंगन में विचर रहे हैं. भोजन करने के समय जब राजा बुलाते हैं, तब वे अपने बाल सखाओं के समाज को छोड़कर नहीं आते.
सुंदर श्रवन सुचारु कपोला। अति प्रिय मधुर तोतरे बोला॥
चिक्कन कच कुंचित गभुआरे। बहु प्रकार रचि मातु सँवारे॥
अर्थ: सुंदर कान और बहुत ही सुंदर गाल हैं. मधुर तोतले शब्द बहुत ही प्यारे लगते हैं. जन्म के समय से रखे हुए चिकने और घुंघराले बाल, जिन्हें माता ने बहुत प्रकार से बनाकर संवार दिया है.
कौसल्या जब बोलन जाई। ठुमुकु ठुमुकु प्रभु चलहिं पराई॥
निगम नेति सिव अंत न पावा। ताहि धरै जननी हठि धावा॥
अर्थ: माता कौशल्या जब बुलाने जातीं, तब प्रभु ठुमुक-ठुमुक भाग चलते हैं. जिनका वेद 'नेति' कहकर निरूपण करते हैं और शिव ने जिनका अंत नहीं पाया, माता उन्हें हठपूर्वक पकड़ने को दौड़ती हैं.
धूसर धूरि भरें तनु आए। भूपति बिहसि गोद बैठाए॥
अर्थ: वे (राम) शरीर में धूल लपेटे हुए आएं और राजा ने हंसकर उन्हें गोद में बिठा लिया.
भोजन करत चपल चित इत उत अवसरु पाइ।
भाजि चले किलकत मुख दधि ओदन लपटाइ॥
अर्थ: भोजन करते हैं, पर चित्त चंचल है. अवसर पाकर मुंह में दही-भात लपटाए किलकारी मारते हुए इधर-उधर भाग चले.
(राम आएंगे के अगले भाग में जानेंगे रामलला की कुछ अद्भुत बाल लीलाओं के बारे में)
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