Ram Aayenge: हिंदू धर्म में रामायण और रामचरितमानस को पवित्र ग्रंथ माना गया है. आदिकवि वाल्मीकि ने रामायण और गोस्वामी तुलसीदास ने रामचरितमानस की रचना की. रामचरितमानस में जहां रामजी के राज्यभिषेक तक का वर्णन मिलता है, वहीं रामायण में श्रीराम के महाप्रयाण (परलोक गमन) तक का वर्णन किया गया है.
राम आएंगे के पहले भाग में हमने जाना कि, पुत्र प्राप्ति के लिए राजा दशरथ ने यज्ञ कराया था और यज्ञ के दिव्य प्रसाद खीर (हविष्यान्न) का सेवन कर राजा दशरथ की तीनों रानियां गर्भवती हुईं. बड़ी रानी कौशल्या ने शुभ नक्षत्र, योग और मुहूर्त में चैत्र शुक्ल की नवमी तिथि को रामलला को जन्म दिया. वहीं कैकयी के गर्भ से भरत और रानी सुमित्रा के गर्भ से लक्ष्मण और शत्रुघ्न का जन्म हुआ.
पुत्र के जन्म के बाद राजा दशरथ की प्रसन्नता का ठिकाना नहीं रहा, मानो उनके जन्म-जन्मांतर की अधूरी इच्छाएं रामलला की किलकारी सुनकर पूरी हो गई हो. रामलला के जन्म से न केवल अवधपुरी बल्कि 14 भुवन समेत पूरा ब्रह्मांड भी मंगल और बधाई गान के गूंजने लगा.
गोस्वामी तुलसीदास ने भी बालकांड की चौपाई में रामलला के जन्म के बाद राजा दशरथ की प्रसन्नता और अवध के उल्लास का वर्णन किया है-
सुनि सिसु रुदन परम प्रिय बानी। संभ्रम चलि आईं सब रानी
हरषित जहँ तहँ धाईं दासी। आनँद मगन सकल पुरबासी॥
अर्थ: बच्चे के रोने की प्यारी सी ध्वनि सुनकर सभी रानियां उतावली होकर दौड़ी चली आईं. दासियां हर्षित होकर जहां-तहां दौड़ने लगी. सभी पुरवासी भी आनंद मग्न हो गए.
कैकयसुता सुमित्रा दोऊ। सुंदर सुत जनमत भैं ओऊ॥
वह सुख संपति समय समाजा। कहि न सकइ सारद अहिराजा॥
अर्थ: कैकेयी और सुमित्रा ने भी सुंदर पुत्रों को जन्म दिया. उस सुख, संपत्ति, समय और समाज का वर्णन सरस्वती और सर्पों के राजा शेष भी नहीं कर सकते.
दसरथ पुत्रजन्म सुनि काना। मानहु ब्रह्मानंद समाना॥
परम प्रेम मन पुलक सरीरा। चाहत उठन करत मति धीरा॥
अर्थ: राजा दशरथ ने कानों से जब पुत्र के जन्म की खबर सुनी तो मानो ब्रह्मानंद में समा गए हों. मन में अतिशय प्रेम और शरीर पुलकित हो गया. वे आनंद में अधीर हुई बुद्धि को धीरज देते हुए मानो उठना चाहते हों.
जाकर नाम सुनत सुभ होई। मोरें गृह आवा प्रभु सोई॥
परमानंद पूरि मन राजा। कहा बोलाइ बजावहु बाजा॥
अर्थ: राजा दशरथ का मन यह सोचकर परम आनंद हो गया कि, जिनका नाम सुनने से ही कल्याण हो जाता है, ऐसे प्रभु मेरे घर पधारे हैं. इसके बाद राजा बाजे वालों को बुलाकर ढोल-बाजा बजाने को कहते हैं.
अवधपुरी सोहइ एहि भाँती। प्रभुहि मिलन आई जनु राती॥
देखि भानु जनु मन सकुचानी। तदपि बनी संध्या अनुमानी॥
अर्थ: पुत्रों के जन्म से अवधपुरी इस प्रकार सुशोभित हो रही थी जैसे मानो रात्रि प्रभु से मिलने आई हो और सूर्य को देखकर मानो मन में सकुचा गई हो. लेकिन फिर भी मन में विचार कर वह मानो संध्या बन गई हो.
(अगले भाग में जानेंगे आखिर क्यों रामलला के जन्म का नेग लेने से सभी ने कर दिया था इंकार)
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