रामायण हमें सामाजिक सीख ही नहीं देती. ईश्वर आस्था और प्रेम की पूर्णता से परिचय भी कराती है. भीलनी शबरी की कथा इसका सर्वाेत्तम उदाहरण है. शबरी ने गुरु का कहा पूर्ण मनोयोग से निभाया. फलस्वरूप गुरु के कहे अनुसार शबरी के इष्ट श्रीराम सीताजी की खोज में उसी रास्ते से गुजरे जिस पर सारा जीवन शबरी आंखें लगाई रहीं.


शबरी एक भीलनी भक्त थीं. कहा जाता है कि शबरी की जब शादी होने वाली थी उस समय विवाह समारोह में कई बकरियों की बलि होने की सूचना पर वो व्यथित हो गईं. वे इतने जीवों की हत्या का पाप अपने सिर नहीं लेना चाहती थीं. उन्होंने उसी रात अपना घर छोड़ दिया और ऋषिमुनियों के आश्रम के लिए चल पड़ीं.

मातंग ऋषि ने उन्हें अपनाया और गुरुदीक्षा दी. शबरी ने अपनी गुरुभक्ति से गुरु के हृदय में स्थान बना लिया. गुरु ने उन्हें आशीर्वाद दिया और बताया कि उनके ईष्ट भगवान राम इसी मार्ग से गुजरेंगे, तुम प्रतीक्षा करना. शबरी की खुशी का ठिकाना नहीं रहा. वह रोज आश्रम के मार्ग की सफाई करती और कंद मूल रख कर श्रीराम का इंतजार करती थी.

इस तरह अब शबरी बूढी हो गईं थीं लेकिन उन्होंने भगवान श्रीराम से मिलने की आस नहीं छोड़ी थी. उन्हें पूरा विश्वास था कि उनके गुरु ने कहा है तो उनकी वाणी जरूर सत्य होगी. भगवान राम इसी मार्ग से गुजरेंगे और उसकी मुक्ति हो जाएगी. सनातन धर्म में मंत्र सत्यम्, पूजा सत्यम्, सत्यम् देव निरंजनम्, गुरु वाक्यम् सदा सत्यम्, सत्यमेकम् परम पदम् माना जाता है.

शबरी ने पूरी उम्र श्रीराम की प्रतीक्षा की. उनकी प्रतीक्षा पूरी हुई श्रीराम अपने अनुज लक्ष्मण के साथ सीता की खोज करते हुए मातंग ऋषि के आश्रम पहुंचे. शबरी उन्हें पहचान लिया और उनका स्वागत किया. शबरी ने भगवान को सभी कंदमूल फल अर्पण किये लेकिन बेर अर्पण करने में उन्हें संकोच हो रहा था. उन्हें डर था कि उनके भगवान को कहीं खट्टे बेर न मिल जाँए इसलिए उन्होंने उसे चखना शुरू किया और मीठे फल श्रीराम को देने लगीं और खट्टे फल फेंकने लगीं. राम भी शबरी के बेर प्रेम से खाने लगे. लक्षमण यह देख कर अचंभित थे कि शबरी के जूठे बेर श्रीराम प्रेम से खा रहे थे. श्रीराम शबरी की सरलता पर मोहित थे. शबरी की भक्ति आज भी निश्चल प्रेम की कहानी कहती है. कहते हैं माता शबरी को उसी समय मुक्ति मिल गई.