रामायण की कथा : श्रीराम ने इस स्थान पर किया था बाल्यकाल में राक्षसों का वध, ऋषियों को मिला था अभय
राक्षसों के आतंक से पीड़ित ऋषियों के यज्ञ-अनुष्ठान सुचारू रूप से चलते रहें इसके लिए ऋषि विश्वामित्र ने दशरथ पुत्र भगवान श्रीराम की सहायता ली थी. श्रीराम ने दंडकारण्य में विघ्न फैलाने वाले राक्षसों का वध कर ऋषियों को अभय प्रदान किया था.
भगवान श्रीराम ने बालकाल्य में ऋषियों की सहायता के लिए वन में राक्षसों का वध किया था. पुराणों के अनुसार यह युद्ध स्थल छत्तीसगढ़ बस्तर के अंतर्गत आने वाले अबूझमाड़ की पहाड़ियाों का क्षेत्र रक्साहाड़ा है. रामायण के अनुसार भगवान राम को ऋषि विश्वामित्र उनके पिता दशरथ से राक्षसों के संहार कराने के लिए ले जाते हैं. विश्वामित्र अन्य ऋषियों के साथ वन में तप, यज्ञ आदि किया करते थे.
चूंकि उक्त वनस्थल सघन वनक्षेत्र था और यहां राक्षसों का वर्चस्व इसलिए राक्षस गण ऋषियों के यज्ञ औमें बाधा डालते थे. इससे ऋषिगण दुखी थे. विश्वामित्र के साथ आए बालक राम और लक्ष्मण ऋषियों को यज्ञ स्थलों की रक्षा के कार्य में जुट गए.आश्रमों में यज्ञ का धुआँ उठता देखकर कर राक्षस विराध, मारीच, ताड़का राक्षसी यज्ञ में विघ्न डालने के लिए आते हैं. ये सभी राम-लक्ष्मण के द्वारा युद्ध में मारे जाते हैं.
कहा जाता है कि इसी क्षेत्र में कबंध राक्षस का भी स्थान था. जनश्रुतियों के अनुसार छत्तीसगढ़ के दण्डकारण्य (दंडक वन) की अबूझमाड़ की पहाड़ियों में स्थित रक्साहाड़ा ही वह स्थान है जहां राक्षसों का श्रीराम ने वध किया था. इस क्षेत्र में बड़ी मात्रा में राक्षसों को मार कर उनकी हड़्डियों को खाई में फेंक दिया गया था. उन मारे गए राक्षसों की हड़िडयाँ इतनी अधिक मात्र में एकत्र हो गईं थीं कि एक छोटी सी पहाड़ी का रूप ले लीं. इसमें सफेद पत्थर बिखरे पड़े हैं. आप जब उन पत्थरों को आग में जलाते हैं तो उनसे हड़्डी के जलने की तीखी गंध आती है.