Ayodhya Ram Mandir: अयोध्या में राम मंदिर में प्राण प्रतिष्ठा की तैयारी लगभग पूरी हो चकुी है. 22 जनवरी, 2024 को पौष माह के शुक्ल पक्ष की द्वादशी तिथि राम लला की नई मूर्तियों की प्राण प्रतिष्ठा के साथ उनका पूजन भी शुरू होगा.


भगवान राम के बालक स्वरूप की पूजा रामानंदीय परंपरा का पालन करते हुए होगी. कहा जाता है कि राम लला जब से यहा विराजमान है तब से इसी परंपरा का निर्वहन करते हुए पूजन किया जा रहा है. आइए जानते हैं क्या है रामानंदीय परंपरा, इसका महत्व.


क्या है रामानंदीय परंपरा ? (what is Ramanandi Tradition)


अयोध्या की राम जन्मभूमि मंदिर में भगवान राम बालक स्वरूप में विराजमान हैं. यहां सालों से उनके पूजन के लिए रामानंदीय परंपरा के तरह एक खास विधि अपना जाती है, जिसमें एक बालक के समान भगवान राम की दिनचर्या तय होती है. सूर्योदय पर सुबह जगाने से लेकर रात को शयनकाल तक 16 अनुष्ठान किए जाते हैं जिसमें भगवान राम लला के खान-पान, स्नान, वस्त्र पहनाना, उनके पसंदीदा भोजन का ध्यान रखा जाता है.


कहां से आई रामानंदीय परिपाटी ? (Ramanandi Tradition History)


रामानंदीय परिपाटी वैष्णव परंपरा से आई है. इस परिपाटी के आराध्य भगवान राम और माता सीता है. कहा जाता है कि श्रीमद जगद्गुरु रामानंदाचार्य ने इसको शुरू किया था, जिसे रामानंद संप्रदाय के नाम से भी जाना जाता है. मुगलों के राज में जब धर्म पर हमला किया गया तो स्वामी रामानंदाचार्य ने धर्म के प्रचार-प्रसार के लिए एक मुहीम चलाई जिसमें उन्होंने वैष्णव शैली की पूजा परंपरा को अपनाया और समस्त नगरी ने श्रीराम की पूजा को सर्वोपरि रखा.


अयोध्या में रामानंदीय परिपाटी की लोकप्रियता


वैष्णवों की जिस परंपरा में भगवान राम एवं सीता आराध्य बने, उनकी नगरी अयोध्या में यह परंपरा सहज प्रवाह के साथ पूरी राम नगरी में अपनाई गई. आज भी अयोध्या के अधिकतर मंदिरों में रामानंदीय परंपरा से पूजन होता है. ये पद्धति सिर्फ अयोध्या तक नहीं सीमित नहीं है बल्कि पूरे उत्तर भारत में इसे अपनाया जाता है हालांकि अयोध्या के कुछ मंदिर में दक्षिण के वैष्णव संप्रदाय की पूजा पद्धति अपनानई जाती है, जिसके आराध्या लक्ष्मी-नारायण हैं.


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