Rama Ekadashi Katha 2021: कार्तिक मास के कृष्ण पक्ष में पड़ने वाली एकादशी (Kartik Month Ekadashi) को रमा एकादशी (Rama Ekadashi) के नाम से जाना जाता है. इस एकादशी का नाम मां लक्ष्मी के रमा (Maa Lakshmi Rama Swaroop) स्वरूप पर रखा गया है. रमा एकादशी (Rama Ekadashi) में मां लक्ष्मी की अराधना की जाती है. कहते हैं कि इस दिन व्रत रखने और कथा आदि पढ़ने-लिखने से भक्तों के सभी पाप नष्ट हो जाते हैं और घर में धन-वैभव की प्राप्ति होती है. इस दिन मां लक्ष्मी के साथ भगवान विष्णु (Bhagwan Vishnu Puja) की पूजा का भी विधान है. इस दिन मां लक्ष्मी को तुलसी पत्र (Tulsi In Ekadashi Vrat) जरूर अर्पित करें, ये शुभ माना जाता है. इतना ही नहीं, व्रत की कथा जरूर पढे़ं. कहते हैं कि बिना कथा के व्रत पूर्ण नहीं माना जाता और न ही व्रत का पूर्ण फल मिलता है. 


रमा एकादशी व्रत कथा (Rama Ekadashi Vrat Katha)


एक नगर में प्रतापी राजा मुचुकुंद रहते थे. उनकी एक पुत्री थी, जिसका नाम चंद्रभागा था. राजा ने बेटी का विवाह राजा चंद्रसेन के बेटे शोभन के साथ कर दिया. दुर्बल होने के कारण शोभन एक समय भी बिना खाएं नहीं रह सकता था. कार्तिक के महीने में शोभन एक बार पत्नी के साथ ससुराल आया. तभी रमा एकादशी आ गई और चंद्रभागा के गृह राज्य में सभी ने ये व्रत रखा.  और शोभन को भी यह व्रत रखने को कहा गया. ये सुनकर शोभन चिंतित हो गया कि वह तो एक पल भी भूखा नहीं रह सकता. फिर वह रमा एकादशी का व्रत कैसे करेगा.


इस चिंता के साथ वे अपनी पत्नी के पास गया और कुछ उपाय निकालने को कहा. शोभन की बात सुनकर चंद्रभागा ने कहा कि अगर ऐसा है तो आपको राज्य से बाहर जाना होगा. क्योंकि राज्य में सभी लोग ये व्रत रखते हैं यहां तक कि जानवर भी अन्न ग्रहण नहीं करते. लेकिन चंद्रभागा का ये उपाय शोभन ने मानने से इंकार कर दिया. और व्रत करने की ठान ली. अगले दिन सभी के साथ शोभन ने भी एकादशी का व्रत किया. लेकिन भूख-प्यास बर्ताश्त न कर पाने के कारण प्राण त्याग दिए.


चंद्रभागा सती होना चाहती थी. लेकिन उसके पिता ने ऐसा न करने का आदेश दिया. साथ ही, भगवान विष्णु की कृपा पर भरोसा करने को कहा. पिता की आज्ञानुसार चंद्रभागा सती नहीं हुई. और वह अपने पिता के घर रहकर एकादशी के व्रत करने लगी. 
उधर रमा एकादशी के प्रभाव से शोभन को जल से निकाल लिया गया और भगवान विष्णु की कृपा से उसे मंदराचल पर्वत पर धन-धान्य से परिपूर्ण और शत्रु रहित देवपुर नाम का एक उत्तम नगर प्राप्त हुआ. उसे वहां का राजा बना दिया गया. शोभन के  महल में रत्न और स्वर्ण के खंभे लगे थे. राजा सोभन स्वर्ण और मणियों के सिंहासन पर सुंदर वस्त्र तथा आभूषण धारण किए बैठा था. उन्हीं दिनों मुचुकुंद नगर का एक ब्राह्मण सोमशर्मा तीर्थयात्रा के लिए निकला हुआ था. घूमते-घूमते वह शोभन के राज्य में जा पहुंचा. शोभन को वहां देख ब्राह्मण उसे पहचान गया और उसके निकट गया.


राजा शोभन ब्राह्मण को देख आसन से उठ खड़ा हुआ और अपने ससुर तथा पत्‍नी चंद्रभागा की कुशल क्षेम पूछने लगा. सोभन की बात सुन सोमशर्मा ने कहा हे राजन हमारे राजा कुशल से हैं तथा आपकी पत्नी चंद्रभागा भी कुशल है. अब आप अपना वृत्तांत बतलाइए. आपने तो रमा एकादशी के दिन अन्न-जल ग्रहण न करने के कारण प्राण त्याग दिए थे. मुझे बड़ा विस्मय हो रहा है कि ऐसा विचित्र और सुंदर नगर जिसको न तो मैंने कभी सुना और न कभी देखा है, आपको किस प्रकार प्राप्त हुआ.


ब्राह्मण को बताते हुए शोभन ने कहा कि यह सब कार्तिक माह के कृष्ण पक्ष की रमा एकादशी के व्रत का फल है. इसी से मुझे यह  सुंदर नगर प्राप्त हुआ है. लेकिन ये अस्थिर है. ब्राह्मण ने पूछा कि यह अस्थिर क्यों है और स्थिर किस प्रकार हो सकता है. आप मुझे बताएं, इसे स्थिर करने के लिए मैं कुछ कर सका तो वह उपाय अवश्य करूंगा. ब्राह्मण की बात का जवाब देते हुए शोभन ने बताया कि मैंने वह व्रत विवश होकर और श्रद्धारहित किया था. इसलिए मुझे ये अस्थिर नगर प्राप्त हुआ. लेकिन अगर तुम इस वृत्तांत को राजा मुचुकुंद की पुत्री चंद्रभागा से कहोगे तो वह इसको स्थिर बना सकती है.


ये सारी बातें जानने के बाद ब्राह्मण वापस अपने नगर को लौट आया और उसने चंद्रभागा से सारा वाक्या सुनाया. ब्राह्मण की ये बातें सुनकर राजकन्या को यकीन नहीं हुआ और ब्राह्मण से फिर पूछा कि क्या आपने से प्रत्यक्ष देखा है. ब्राह्मण की बात सुन चंद्रभागा बोली ब्राह्मण देव मुझे उस नगर में ले चलिए. मैं अपने पति को देखना चाहती हूं. मैं अपने व्रत के प्रभाव से उस नगर को स्थिर बना दूंगी.


चंद्रभागा की बात सुनकर ब्राह्मण उसे मंदराचल पर्वत के पास वामदेव के आश्रम ले गया. वामदेव ने उसकी कथा को सुनकर चंद्रभागा का मंत्रों से अभिषेक किया. चंद्रभागा मंत्रों तथा व्रत के प्रभाव से दिव्य देह धारण करके पति के पास चली गई. शोभन ने पत्नी चंद्रभागा को देख प्रसन्नतापूर्वक आसन पर अपने पास बैठा लिया.


चंद्रभागा ने राजा शोभन को बताया कि हे स्वामी जब मैं अपने पिता के घर आठ वर्ष की थी तब ही से मैं सविधि एकादशी का व्रत कर रही हूं. उन्हीं व्रतों के प्रभाव से आपका यह नगर स्थिर हो जाएगा और सभी कर्मों से परिपूर्ण होकर प्रलय के अंत तक स्थिर रहेगा. चंद्रभागा दिव्य स्वरूप धारण करके तथा दिव्य वस्त्रालंकारो से सजकर अपने पति के साथ सुखपूर्वक रहने लगी.


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