Ramadan 2023 Roza History and Importance: रमजान का महीना 24 मार्च 2023 से शुरू हो चुका है और रोजेदार रोजा रखकर अल्लाह की इबादत कर रहे हैं. रमजान का महीना इस्लामिक कैलेंडर का 9वां महीना होता है. इस्लाम धर्म की बुनियाद इसके अकरानों या फर्ज पर टिकी है. इसमें रोजा भी शामिल है, जिसे चांद के दीदार के बाद रमजान में 29 या 30 दिनों तक रखने का हुक्म है. लेकिन क्या आप जानते हैं कि आखिर रोजा रखने की परंपरा की शुरुआत कब और कैसे हुई और कैसे यह इस्लाम के 5 फर्जों में शामिल हुआ.


इस्लाम के मुख्य 5 फर्ज


इस्लाम धर्म के मुख्य 5 फर्ज है, जिसका पालन करना हर मुसलमान के लिए जरूरी है. इस्लाम के 5 फर्जों में कलमा, नमाज, जकात, रोजा और हज शामिल है. इस्लाम में हर मुसलमान को ये पांच फर्जों को मानना जरूरी माना गया है. इन नियमों के तहत ही रमजान महीने में रोजा रखना भी हर मुसलमान के लिए जरूरी होता है. हालांकि बीमारी, गर्भावस्था, माहवारी, यात्रा या अन्य समस्याओं में रमजान में रोजा न रखने की छूट भी दी गई है.



इस्लाम में कब फर्ज हुआ रोजा


रोजा रखने की परंपरा काफी पुरानी है. कहा जाता है कि मक्का-मदीना में इस्लाम धर्म के प्रचार के पहले से ही रोजा रखे जाते थे. लेकिन उस समय रोजा रखने के नियम आज से अलग हुआ करते थे. उस समय रोजा 30 दिनों का भी नहीं हुआ करता था. लेकिन हजरत मोहम्मद के मक्का-मदीना जाने के बाद साल 624 में इस्लाम धर्म में रमजान के पाक महीने में रोजा रखने को फर्ज यानी अनिवार्य कर दिया गया. इसके बाद दुनियाभर में एक ही नियम के अनुसार मुस्लिम समुदाय के लोग रोजा रखते हैं.


शुरुआत में कैसी थी रोजा रखने की परंपरा


पहले मक्का-मदीना में रहने वाले लोग कुछ विशेष तारीखों में रोज रखते थे. लेकिन यह एक महीने का ना होकर आंशिक हुआ करता था. पहले 30 रोजा रखना फर्ज नहीं था. कोई आशूरा का रोजा रखते थे तो कोई चंद्र मास की 13,14 और 15 तारीख को रोजा रखा करते थे. लेकिन साल 624 में कुरान की आयत के जरिए मुसलमानों में लिए रोजा को अनिवार्य कर दिया गया और इस तरह से रोजा को इस्लाम के 5 फर्जों में शामिल किया गया.


ये भी पढ़ें: Ramadan 2023: इन कामों से नहीं टूटता रोजा, जानें रोजा टूटने और मकरूह होने से जुड़े नियम









Disclaimer: यहां मुहैया सूचना सिर्फ मान्यताओं और जानकारियों पर आधारित है. यहां यह बताना जरूरी है कि ABPLive.com किसी भी तरह की मान्यता, जानकारी की पुष्टि नहीं करता है. किसी भी जानकारी या मान्यता को अमल में लाने से पहले संबंधित विशेषज्ञ से सलाह लें.