इस बार मुसलमानों का पवित्र महीना रमजान कोरोना वायरस महामारी के बीच पड़ रहा है. रमजान के पूरे महीने वैसे तो खास आयोजन किए जाते हैं. सामूहिक इबादतों का चलन और रोजा खोलने की परंपरा है. मगर इस साल लॉकडाउन का साया सामूहिक आयोजन पर मंडरा रहा है. सरकार और धार्मिक संस्थाओं ने मुसलमानों से मस्जिदों में भीड़भाड़ से बचने की सलाह दी है.
रमजान की शुरुआत चांद देखे जाने पर निर्भर है. इस बार अगर रमजान का चांद अगर 23 अप्रैल को दिखाई देता है तो 24 अप्रैल को पहला रोजा पड़ेगा. वहीं, 24 अप्रैल को चांद के नजर आने पर पहला रोजा 25 अप्रैल को रखा जाएगा. मुसलमानों के नजदीक इस महीने की फजीलत (खूबी) बहुत ज्यादा है. माना जाता है कि शैतान के बांध दिए जाने से नेकियों का करना आसान हो जाता है. हर नेकी का महत्व कई गुना बढ़ जाता है.
रोजे की शुरुआत सेहरी (तड़के पहर में खाना खाना) से होती है. सुबह के वक्त नींद तोड़कर सेहरी खाना भी इबादत है. सेहरी के लिए कुछ विशेष पकवान नहीं हैं. फिर दिनभर भूख-प्यास की हालत में मुसलमानों को रहना पड़ता है. शाम में सूरज डूबने के वक्त रोजा खोलकर खाने-पीने की मनाही से छुटकारा मिल जाता है. ये सिलसिला पूरे रमजान चलता रहता है.
चांद रात से ही तरावीह (रमजान की खास नमाज) की शुरुआत भी हो जाती है और ईद का चांद दिखने तक नमाज तरावीह पढ़ी जाती है. नमाज तरावीह में कुरआन के हाफिज कुरआन को सुनाते हैं. उनके पीछे लोगों की जमाअत होती है जो पूरी तन्मयता से कुरआन सुनती है. पूरे कुरआन को सूनने की खास नेकी है. क्योंकि कुरआन इसी महीने के लैलतुल-कद्र कद्र की रात) में पैगंबर मोहम्मद साहब पर अवतरित होना शुरू हुआ था. इस महीने के आखिर में ताक (ऑड) रातों की भी विशेष अहमियत है. यानी रमजान की 21, 23, 25, 27 और 29वीं की रात. इस दौरान रात में जागगकर मुसलमान अल्लाह से विशेष प्रार्थना करते हैं. अपने गुनाहों की माफी तलब कर रात के जागने का फल पाने की कोशिश करते हैं. मगर इस बार लॉकडाउन के चलते रमजान पर सामूहिक इबादत का रंग फीका नजर आएगा.
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