Ramayan: प्रभु श्रीराम जब लंका पहुंच जाते हैं रावण के पास दूत भेजने की बात आती है. किसे दूत बनाकर भेजा जाए इस मंत्रणा होती है. सभी एक स्वर में हनुमान जी का नाम लेते हैं. वे बलशाली भी थे और राम के प्रिय भी. लेकिन तभी श्रीजामवंत ने प्रभु राम से कहा कि ‘सुनु सर्बग्य सकल उर बासी। बुधि बल तेज धर्म गुन रासी, मंत्र कहउॅ निज मति अनुसारा. दूत पठाइअ बालि कुमारा.’


यानि प्रभु इस कार्य के लिए बालिपुत्र को भेजा जाना चाहिए. उनका कहने का अर्थ ये था कि प्रभु राम की सेना में हनुमान ही अकेले बलशाली नहीं है सभी में एक से बढ़कर एक गुण हैं अन्य को भी अवसर दिए जाएं.


श्रीजामवंत ने दी ये सलाह


श्रीजामवंत की यह सलाह सभी को अच्छी लगी. प्रभु राम ने सभी की राय पर अंगद को रावण के पास दूत बनाकर भेजा. लंका पहुंचते ही अंगद की मुलाकात प्रवेश द्वार पर रावण के पुत्र से हो गई. किसी बात को लेकर दोनों में विवाद होने लगा. इस पर क्रोध में आकर रावण के पुत्र ने अंगद को मारने के लिए अपना पैर उठाया तो अंगद ने उसके पैर पकड़कर जमीन पर पटक दिया.
अंगद के ऐसा करने से रावण के पुत्र की वहीं मौत हो गई. इस कृत्य को देखकर लंका के सैनिक भयभीत हो जाते हैं और अंगद के बिना पूछे ही रावण के महल का रास्ता बता देते हैं.


रावण ने अंगद मज़ाक उड़ाया


महल पहुंचते ही अंगद अपना संदेश भिजवाते हैं कि उन्हें प्रभु राम ने भेजा है वो रावण से मिलने आए हैं. इस पर रावण तेजी से हंसता है और दरवार में अंगद का मजाक उड़ाता है. रावण अंगद से पूछता है कि बंदर कौन है तू. इस पर अंगद कहते हैं कि वे श्रीराम के दूत बनकर आए हैं और समझाने भी. अंगद कहते हैं कि रावण अभी भी समय है प्रभु राम से माफी मांग लो वे तुम्हें कोई सजा नहीं देंगे.


अंगद ने रावण से कहा राम से मांग लो माफी, अभी भी समय है


अंगद पुन: समझाते हैं कि रावण तुमने अच्छे कुल में जन्म लिया है. पुलस्त्य ऋषि के पौत्र हो. भगवान शिव और ब्रह्माजी की पूजा करके तुमने कई तरह के वरदान प्राप्त किए हैं. सभी राजाओं को तुमने जीत लिया है. वे कहते हैं कि तुमने माता सीता का हरण किया है. लेकिन फिर भी मैं तुम्हें सलाह देता हूं कि यदि तुम अपनी गलती स्वीकार कर लो और श्रीराम की शरण में आ जाओ तो वह तुम्हें क्षमा कर देंगे.


रावण के सारे योद्धा


इन सब बातों को रावण गंभीरता से नहीं लेता है और अंगर पर हंसता है. इस पर अंगद कहते हैं कि लंकापति अगर राज्य में कोई भी वीर है तो उनके पैर को जमीन से उठाकर दिखाए. रावण के दरवार में बैठे एक से बढ़कर एक योद्धा बारी बारी से आते गए लेकिन कोई भी उनका पैर रत्तीभर भी हिला न सका. तब रावण का पुत्र इंद्रजीत भी असफल हो जाता है. सभी को कोशिश असफल होने पर दरवार में सन्नाटा फैल जाता है. रावण को क्रोध आने लगता है.


जब रावण ने पैर पकड़े


सभी के असफल होने पर स्वयं रावण सिहांसन को छोड़कर अंगद के पैर को उठाने आता है. लेकिन जैसे ही रावण अंगद के पैरों को पकड़ने की कोशिश करता है तो अंगद रावण से कहते हैं कि तुम मेरे पांव क्यों पकड़ते हो, पकड़ना ही है तो तीनों लोकों के प्रभु श्रीराम के पैर पकड़ो.


Chanakya Niti: मनुष्य को नहीं करने चाहिए ये काम, जीवन पर आ सकता है संकट