Ramayan ki Ram Katha: हिंदू धर्म ग्रंथों के अनुसार, त्रेतायुग में भगवान श्रीराम जब माता सीता के हरण के बाद व्याकुल होकर इधर-उधर माता सीता की खोज कर रहे थे, तब शंकर भगवान राम को देख मग्न हो रहे थे तथा सच्चिदानंद का मन ही मन जयकार कर रहे थे, लेकिन सती को यह विश्वास नहीं हो रहा था कि भगवान श्रीराम परमात्मा ही है. भगवान भोलेनाथ के बहुत समझाने के बाद भी सती जी का भ्रम नहीं गया तो उन्हें परीक्षा लेने के लिए कह दिया. साथ ही भगवान शिवजी ने मन ही मन विचार करने लगे कि :-
होहि सोइ जो राम रचि राखा, को करि सके बढ़ावहि साखा.
परीक्षा के निकल पड़ी माता सती
सती जी ने सीता का वेश बनाकर भगवान श्रीराम की परीक्षा लेने के लिए निकल पड़ी. जब सती जी ने भगवान राम के सामने पहुंची तो मर्यादा पुरुषोत्तम ने सती जी को तुरंत पहचान लिया और भगवान भोलेनाथ का समाचार पूंछा. तब सती जी लज्जित होकर भगवान शिव जी के पास वापस चली आई. जब शिवजी ने पूंछा तो माता सती झूठ बोल गई और कहा कि हे स्वामी मैने कोई परीक्षा ही नहीं ली और वहां जाकर आपकी तरह मैंने भी प्रणाम किया, साथ सती जी ने यह भी कहा कि हे नाथ आपने जो भी कहा वह झूठ नहीं हो सकता है. ऐसे में परीक्षा लेने का कोई औचित्य नहीं होता.
भगवान शिवजी ने ध्यान में सबकुछ जान लेते हैं. वे ध्यान में सती को माता सीता जी के रूप में देख लेते हैं और सती जी का झूठ भी जान लेते हैं. यह देखकर भगवान शिवजी को बड़ा दुःख होता है. इस कारण से शिवजी ने सती को अपनी पत्नी के रूप में परित्याग करने का प्राण कर लेते है.
धार्मिक ग्रंथों में वर्णित कथा के अनुसार इस प्रकार से शिवजी का सती को पत्नी रूप में परित्याग, सती का शरीर त्याग, पार्वती के रूप में पुनर्जन्म तथा उनकी कठोर तपस्या. कामदेव द्वारा शिवजी का ध्यान भंग करना, कामदेव का भस्म होना, अंत में पार्वती जी का शिवजी के साथ विवाह होने की घटना घटती है.
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