ऐसे राजा दशरथ के यहां भगवान राम ने लिया जन्म, महर्षि वशिष्ठ ने कराया था पुत्रेष्ठि यज्ञ
Ramayana: मर्यादा पुरषोत्तम राम का जन्म अयोध्या में राजा दशरथ के यहां हुआ था. श्रीराम भगवान विष्णु का सातवां अवतार हैं. राजा दशरथ के घर भगवान राम ने कैसे जन्म लिया इसकी कथा यहां जानें.
Ram Katha: राजा दशरथ की तीन रानियां थीं. लेकिन किसी को पुत्र प्राप्ति नहीं हुई थी. जिस कारण उत्तराधिकारी का संकट खड़ा हो गया. भगवान राम के जन्म से जुड़ी घटना का वाल्मिकी रामायण व रामचरित मानस में किया गया है.
कथा के अनुसार राजा दशरथ की तीनों पत्नियों की गोद सूनी थी. इस चिंता को दशरथ की गुरुमाता महर्षि वशिष्ठ की पत्नी ने महसूस किया और महर्षि को इस चिंता के बारे में बताया. उन्होंने कहा कि अगर राजा पुत्र विहीन रहेंगे तो भविष्य में कौन सिंहासन पर बैठेगा कैसे राजपाट चलेगा. इस प्रश्न के उत्तर में महर्षि बोले यह चिंता जायज है किन इस बारे में राजा दशरथ ने कभी जिक्र ही नहीं किया तो कैसे इस समस्या का हाल निकालें.
गुरुमाता भी महर्षि के तरह विद्वान थीं वे इसकी युक्ति निकालने लगी और एक दिन अपने पुत्र को गोद में लेकर दशरथ के महल पहुंच गईं. गोद में बालक को देख दशरथ के मन में बालक को खिलाने की जाग उठी और उन्होंने उसे गोद में लेकर खिलाना शुरू कर दिया. दशरथ बालक के साथ खेल में लीन हो गए तो गुरुमाता ने दशरथ से कहा कि महाराज आप महर्षि के शिष्य हैं लेकिन आपके कोई पुत्र नहीं है, ऐसे में इस बालक का शिष्य कौन बनेगा.
भगवान राम के अवतार की ये है कथा, विश्वामित्र के कहने पर राक्षसों का किया वध
गुरुमाता की इस बात को सुनकर दशरथ ग्लानि भर गए और पुत्र प्राप्ति के लिए महर्षि वशिष्ठ के पास पहुंचे और इस का उपाय पूछा. तब महर्षि ने दशरथ को बताया कि आपको पुत्र प्राप्ति हो सकती है लेकिन इसके लिए आपको पुत्रेष्ठि यज्ञ करना होगा.
दशरथ ने कहा कि गुरुवर इस यज्ञ के लिए वे तैयार हैं, यज्ञ आरंभ किया जाए. इस बार महर्षि बोले कि यह यज्ञ इतना आसान नहीं है. दशरथ ने इसका उपाय पूछा तो महर्षि ने बताया कि जो भी इस पुत्रेष्ठि यज्ञ को करेगा उसे जीवन भर की तपस्या की आहुति यज्ञ में देनी होगी. इस पर दशरथ ने महर्षि से पूछा कि ऐसा कौन है जो इस कार्य को करने के लिए तैयार होगा. इस बार महर्षि ने उन्हें बताया कि आपकी पुत्री शांता जिन्हेें रोमपाद नाम के राजा को गोद दे दिया था.
रोमपाद ने बाद में शांता का विवाह ऋंग ऋषि से कर दिया था. ऋंग ऋषि ही इस यज्ञ को कर सकते हैं. दशरथ ने ऋंग ऋषि को इस यज्ञ के लिए तैयार किया और बदले में उनकी संतान के भरण-पोषण के लिये जीवन पर्यंत साधन उपलब्ध कराए. यज्ञ आरंभ हुआ और यज्ञ से जो खीर प्राप्त हुई उसे तीनों रानियों को खाने के लिए दी गई. खीर का सेवन करने से रानियों को गर्भधारण हुआ. चैत्र मास के शुक्ल पक्ष की नवमी तिथि को माता कौशल्या के गर्भ से भगवान राम ने जन्म लिया. अन्य रानियों को भी पुत्र की प्राप्ति हुई जिनका नामकरण महर्षि वशिष्ठ ने किया.
पढ़ें, भगवान राम के जन्म की कथा, बालकांड में तुलसीदास ने किया है खूबसूरत वर्णन