Ramayan : महर्षि अत्रि की पत्नी सती अनुसूया त्रेता युग से आज तक सभी स्त्रियों की आदर्श हैं. रामायण कथा अनुसार वनवास के दौरान एक दिन रामजी, माता सीता और लक्ष्मण जी चित्रकूट महर्षि अत्रि के आश्रम पहुंचे तो यहां देवी अनुसूया ने सीताजी को पतिव्रत धर्म की शिक्षा दी थी. अनुसूया ने सीताजी को शिक्षा दी कि आदर्श पत्नी का पति के लिए व्यवहार कैसा होना चाहिए, उसे गृहस्थ जीवन कैसे संवारना चाहिए, आइये जानते हैं अनुसूया ने सीता जी को क्या सीख दी.


- वनवास के समय एक बार सीता जी की साड़ी फट गई, लेकिन वो जानती थीं कि रामजी साड़ी नहीं ला सकते तो उन्होंने धैर्य रखकर फटी साड़ी ही पहनी. जब सीताजी महर्षि अत्रि के आश्रम पहुंचीं तो देवी अनुसूया ने सीताजी को कपड़े दिए और पति के प्रति भाव की प्रशंसा की. सीताजी से कहा कि नारी का व्रत और धर्म एक ही है और वो है मन से पति की सेवा करना. पति पत्नी को जिस तरह रखे, उसे वैसे ही रहना चाहिए. 
-  नारी इस संसार में तपस्या और बलिदान के कारण ही पूजी जाती है, लेकिन उसके मन में कोई स्वार्थ भाव है या पति के लिए गलत विचार या फिर दूसरे पुरुष में रुचि है तो वो पूजनीय नहीं है.
- नारी जीवन त्याग का प्रतीक है. माता-पिता भाई-बहन सभी संबंध एक नारी के लिए मित्रता की तरह हैं. पति वृद्ध हो, मानसिक कमजोर हो, रोगग्रस्त हो, मूर्ख हो, धनहीन हो, अंधा हो, क्रोधी हो, बहरा हो, हर स्थिति में सम्मानीय है. ऐसे पति का अपमान मृत्यु के बाद यम की यातना का भागी बनाता है.
- स्त्री को पति के घर मन वचन कर्म से सेवा भाव के साथ जाना चाहिए. किसी भी प्रकार का द्वेष या भेद भाव बिल्कुल नहीं रखना चाहिए.
- नारी की जिम्मेदारी है कि वह परिवार को जोड़े रखे. मन में सदैव यह भाव हो कि वो जिस जगह जाए, भाग्य में जितना सुख, दुःख लिखा है वो सहन करना ही होगा. इसके लिए किसी को भी दोष नहीं देना चाहिए. कष्ट भोगने से ही कष्ट कम होते हैं.
- जिस घर में स्त्री प्रसन्न है, वहां समृद्धि का आगमन तय है, जहां स्त्री खुश नहीं, वहां कितनी भी संपत्ति हो, समृद्धि का वास नहीं होता.
- पत्नी अगर पति व्रत का पालन कर रही है तो पति का भी कर्तव्य है कि वह पत्नी को सम्मान दे और हर स्थिति में प्रसन्न रखे.


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