Ramayana: रामायण महाकाव्य की मूल रचना ऋषि वाल्मीकि द्वारा की गई है. लेकिन अन्य संत, वेद और पंडितों जैसे तुलसीदास, संत एकनाथ आदि द्वारा भी इसके अन्य संस्करणों की रचना की गई. ऐसे में प्रत्येक संस्करणों में अलग-अलग तरीके से रामायण की कहानी का वर्णन मिलता है.
रामायण से जुड़े प्रचलित किस्सों से सभी लोग परिचित हैं और रामायण के मूल चरित्रों के बारे में भी सभी लोग जानते हैं. भगवान श्रीराम से जुड़े हर किस्से को भी लोग जानते हैं. जैसे कि भगवान राम राजा दशरथ और देवी कौशल्या के पुत्र थे. भगवान राम के तीन भाई थे, जिनका नाम लक्ष्मण, भरत और शत्रुघ्न था. लेकिन इस बारे में बहुत कम लोग जानते हैं कि, श्रीराम जी की एक बहन भी थी, जिसका नाम शांता था और शांता सभी भाईयों में सबसे बड़ी थी.
रामायण में क्यों देवी शांता का जिक्र नहीं
रामायण महाकाव्य में देवी शांता का जिक्र बहुत कम ही सुनने को मिलता है. इसलिए बहुत कम लोगों को पता है कि, रामजी की एक बड़ी बहन भी थी. देवी शांता राजा दशरथ और देवी कौशल्या की बेटी थी. लेकिन उन्होंने अपनी बेटी को गोद दिया. इसलिए रामायण में देवी शांता का जिक्र कम ही सुनने को मिलता है और रामजी समेत अन्य भाईयों की चर्चा अधिक है.
क्यों शांता के माता-पिता नहीं बने दशरथ और कौशल्या
देवी शांता को लेकर अलग-अलग मान्यताएं और कथाएं प्रचलित है. लेकिन एक मान्यता के अनुसार, ऐसा कहा जाता है कि, एक बार अंगदेश के राजा रोमपद अपनी पत्नी रानी वर्षिणी के साथअयोध्या आए हुए थे. राजा रोमपद और वर्षिणी को कोई संतान नहीं थी. बातचीत के दौरान जब राजा दशरथ को इस बात का पता चला तो उन्होंने कहा, आप मेरी पुत्री शांता को संतान के रूप गोद ले लीजिए. राजा दशरथ की यह बात सुनकर रोमपद और वर्षिणी बहुत खुश हो गए. उन्होंने शांता को गोद लेकर बहुत ही स्नेहपूर्वक उसका पालन-पोषण किया और माता-पिता के सारे कर्तव्य निभाए.
एक दिन राजा रोमपद अपनी पुत्री शांता से कुछ बात कर रहे थे. तभी उनके द्वार पर एक ब्राह्मण आए. ब्राह्मण ने राजा रोमपद से प्रार्थना करते हुए कहा कि, वर्षा के दिनों में वे खेतों की जुताई में राज दरबार की ओर से कुछ मदद करने की कृपा करें. लेकिन राजा शांता के साथ बातचीत में इतने व्यस्त थे कि उन्होंने ब्राह्मण की बात नहीं सुनी. ऐसे में द्वार पर आए हुए जरूरतमंद ब्राह्मण की याचना न सुनने पर उसे बहुत दुख हुआ. वह ब्राह्मण राजा रोमपद का राज्य छोड़कर चला गया. वह ब्राह्मण इंद्रदेव का भक्त था. इंद्रदेव अपने भक्त का दुख देख राजा रोमपद पर क्रोधित हो गए और उन्होंने उनके राज्य में पर्याप्त वर्षा नहीं की. इससे खेतों में खड़ी फसलें मुरझा गई.
ऋष्यशृंग ऋषि से हुआ देवी शांता का विवाह
इस संकट की समस्या के लिए राजा रोमपद ऋष्यशृंग ऋषि के पास गए और उनसे उपाय पूछा. तब ऋषि ने बताया कि, उन्हें इन्द्रदेव को प्रसन्न करने के लिए यज्ञ कराना चाहिए. इसके बाद राजा रोमपद ने ऋष्यशृंग ऋषि से यज्ञ कराया और इसके बाद राज्य के खेत-खलिहान पानी से भर गए. राजा रोमपद ने ऋष्यशृंग ऋषि के साथ अपनी पुत्री शांता का विवाह कराया और इसके बाद दोनों सुखपूर्वक दांपत्य जीवन बिताने लगे.
पौराणिक कथाओं के अनुसार ऋष्यशृंग ऋषि ने ही राजा दशरथ को वंश चलाने के लिए पुत्रकामेष्टि यज्ञ कराने का आदेश दिया था. इस यज्ञ के बाद राम, भरत और जुड़वां लक्ष्मण और शत्रुघ्न का जन्म हुआ. कहा जाता है कि अयोध्या से लगभग 39 कि.मी. पूर्व में आज भी ऋष्यशृंग ऋषि आश्रम है और यहां उनकी और देवी शांता की समाधी है. हिमाचल में कुल्लू से करीब 50 किलोमीटर दूर देवी शांता एक प्राचीन मंदिर है, जहां नियमित रूप से उनकी पूजा होती है.
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