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जानिए- क्या होता है सुंदरकांड का पाठ, अगर आप परेशान हैं तो करें अपने कष्ट दूर
सुंदरकांड तुलसी दास द्वारा रचित रामचरित मानस का एक हिस्सा है. जिसमें राम भक्त हनुमान की लंका यात्रा का वर्णन किया गया. उन्होंने अपनी बुद्धि और बल से सीता माता की खोज की.
नई दिल्ली: आम आदमी पार्टी के विधायक सौरभ भारद्वाज द्वारा कराए गए सुंदरकांड पाठ के बाद राजनीतिक गलियारों में इसकी काफी चर्चा है. सुंदरकांड महाकवि तुलसी दास द्वारा रचित रामचरित मानस का एक हिस्सा है. जिसमें भगवान राम के अनन्य भक्त हनुमान द्वारा माता सीता की खोज के लिए लंका जाने की यात्रा का वर्णन किया गया है.
दरअसल सुंदरकांड संस्कृत भाषा में लिखी वाल्मीकि रामायण से लिया गया है. तुलसी दास ने रामचरित मानस को आम लोगों के लिए अवधी भाषा में लिखा है. सुंदरकांड रामायण का सबसे चर्चित 5वां हिस्सा है. इसमें हनुमान जी के यश का गुणगान किया गया है. ऐसा माना जाता है कि सुंदरकांड का पाक करने से लोगों की परेशानियों का अंत हो जाता है.
माता सीता की खोज के लिए हनुमान ने की थी लंका यात्रा
रामायण के इस हिस्से में हनुमान की लंका यात्रा के दौरान आई दिक्कतों को दर्शाया गया है. हनुमान द्वारा अपनी बुद्धि और शक्ति से माता सीता की खोज की. लंका की अशोक वाटिका में उनकी मुलाकात माता सीता से हुई. इस मुलाकात के सुंदर वर्णन होने के वजह से इसको सुंदरकांड कहा जाता है.
जात पवनसुत देवन्ह देखा। जानैं कहुँ बल बुद्धि बिसेषा।।
सुरसा नाम अहिन्ह कै माता। पठइन्हि आइ कही तेहिं बाता।।
आजु सुरन्ह मोहि दीन्ह अहारा। सुनत बचन कह पवनकुमारा।।
राम काजु करि फिरि मैं आवौं। सीता कइ सुधि प्रभुहि सुनावौं।।
तब तव बदन पैठिहउँ आई। सत्य कहउँ मोहि जान दे माई।।
कबनेहुँ जतन देइ नहिं जाना। ग्रससि न मोहि कहेउ हनुमाना।।
जोजन भरि तेहिं बदनु पसारा। कपि तनु कीन्ह दुगुन बिस्तारा।।
सोरह जोजन मुख तेहिं ठयऊ। तुरत पवनसुत बत्तिस भयऊ।।
जस जस सुरसा बदनु बढ़ावा। तासु दून कपि रूप देखावा।।
सत जोजन तेहिं आनन कीन्हा। अति लघु रूप पवनसुत लीन्हा।।
बदन पइठि पुनि बाहेर आवा। मागा बिदा ताहि सिरु नावा।।
मोहि सुरन्ह जेहि लागि पठावा। बुधि बल मरमु तोर मै पावा।।
दो0-राम काजु सबु करिहहु तुम्ह बल बुद्धि निधान।
आसिष देह गई सो हरषि चलेउ हनुमान।।2।।
हनुमान को माता सीता ने सुंदरा नाम से पुकारा
वहीं ऐसा भी माना जाता है कि जब माता सीता से हनुमान की मुलाकात हुई तो उन्होंने हनुमान को सुंदरा नाम से पुकारा था. इसलिए वाल्मीकि ने रामायण के इस भाग का नाम सुंदरकांड रखा. श्रद्धा भाव से सुंदरकांड का पाठ करने से लोगों का कल्याण होता है और उसे सभी प्रकार के दुखों से मुक्ति मिल जाती है.
लोग जब अपने जीवन के कठिन समय से गुजर रहे होतें हैं तो जानकार उन्हें सुंदरकांड का पाठ करने की सलाह देते हैं. इसके अलावा इससे लोगों में आत्मविश्वास भी बढ़ता है.
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