रामायण का एक प्रमुख प्रसंग है लंका तक पहुंचने के लिए भगवान श्रीराम की वानर सेना द्वारा समुद्र पर सेतु का निर्माण करना. इस कार्य को दो वानर योद्धाओं नल और नील की मार्ग निर्देशन में पूरा किया गया था.


पौराणिक मान्याताओं के अनुसार नल और नील भगवान विश्वकर्मा के वानर पुत्र माने गए हैं. प्रचलित कथा के मुताबिक इन दोनों को ऋषियों ने श्राप दिया था यही श्राप आगे चलकर इनके लिए वरदान साबित हुआ.


प्रचलित कथाओं में कहा गया है कि नल और नील जब छोटे थे तो ऋषि-मुनियों को बहुत परेशान करते थे और अक्सर उनकी चीजों को समुद्र में फेंक देते थे. इन दोनों बच्चों से परेशान ऋषि-मुनियों ने तंग आकर इन्हें श्राप दिया था कि जो भी चीज यह पानी में फेकेंगे वह डूबेगी नहीं.


कैसे बना सेतु 
भगवान श्रीराम जब अपनी वानर सेना के साथ समुद्र किनारे पहुंच गए और उन्होंने समुद्र से उन्हें रास्ता देने के लिए प्रार्थना की लेकिन सागर ने भगावन श्रीराम की नहीं सुनी. श्रीराम ने तब सागर को सूखाने के लिए धनुष पर बाण चढ़ा लिया यह देखकर भगवान समुद्र डर गया और श्रीराम के सामने प्रस्तुत हुआ. समुद्र ने श्रीराम को बताया कि आपकी सेना में नल-नील नाम के वानर हैं। वे जिस चीज को हाथ लगाते हैं, वह पानी में डुबती नहीं है। आप समुद्र पर सेतु बनाने के लिए इन दोनों की मदद ले सकते हैं.


इसके बाद नल और नील की मदद से वानर सेना समुद्र पर लंका तक सेतु बना लेते हैं. इसी सेतु की मदद से श्रीराम और उनकी वानर सेना लंका तक पहुंच जाती है.


हालांकि रामायण से जुड़ी कुछ कथाओं में सिर्फ नल का ही जिक्र आता है लेकिन तुलसीदास द्वारा लिखी रामचरित मानस के सुंदरकांड में सेतु निर्माण का वर्णन है जिसमें नल और नील दोनों का जिक्र आता है.


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