राम को जब वनवास का आदेश मिला तो वे माता सीता और भाई लक्ष्मण के साथ वन के लिए निकल पड़े. वनवास के दौरान भगवान राम माता सीता और भाई लक्ष्मण के साथ एक कुटिया बनाकर समय व्यतीत करने लगे. एक दिन पुष्प तोड़ते हुए सीता ने सोन का हिरण देखा और भगवान राम से उस हिरण को मारने के लिए कहा. यह हिरण कोई और नहीं था बल्कि कपटी मृग मारीच था. राम मारीच को मारने के लिए उसके पीछे पीछे निकल पड़े.


सीता ने लक्ष्मण को दिया आदेश
जब काफी देर तक राम नहीं लौटे तो माता सीता को चिंता हुई और लक्ष्मण को खोच के लिए आदेश दिया. लक्ष्मण ने कहा कि वे उन्हें अकेले वन में छोड़कर नहीं जा सकते हैं. लेकिन बाद में उन्हें सीता का आदेश मानने के लिए विवश होना पड़ा.


रावण पहुुंचा भेष बदलकर
लक्ष्मण को जाते ही लंकापति रावण वहां भेष बदलकर आ गया और सीता का अपहरण लिया. बल पूर्वक रावण ने सीता को अपने पुष्पक विमान में बैठा लिया और लंका की तरफ उड़ने लगा. माता सीता विलाप करने लगीं और भगवान राम को पुकारने लगीं.


जटायु ने रोका रावण का रास्ता
रावण का विमान जब छत्तीसगढ़ के दंडकारण्य से गुजर रहा था तो माता सीता की आवाज गिद्धराज जटायु के कानों में पड़ी और जटायु ने रावण को ललकारते हुए रास्ता रोक लिया. सीता को बचाने के लिए जटायु और रावण के बीच भयंकर संषर्घ हुआ. लेकिन रावण तलवार से जटायु के पंख काट दिए. जिससे वह मरणासन्न स्थिति में जमीन पर आ गिरे. रावण सीता को लेकर लंका की तरफ रवाना हो गया.


जब लक्ष्मण को हुई गलतफहमी
जटायु भगवान राम को जानते थे उनकी पहली मुलाकात पंचवटी के पास हुई थी जो नासिक के पास मौजूद है. सीता की खोज करते हुए जब राम और लक्ष्मण दंडकारण्य वन तरफ बढ़े तो उन्हें रास्ते में घायल जटायु दिखाई दिए. पहले तो लक्ष्मण ने समझा इस विशालकाय जटायु ने ही सीता को खा लिया है. लक्ष्मण ने अपना धनुष उतारा और उस पर बाण चढ़ा लिया, लेकिन तभी राम ने उन्हें रोक दिया. क्योंकि जटायु कुछ बताना चाह रहे थे.


राम की गोद में निकले प्राण
जटायु ने राम को आर्शीवाद दिया और कहा कि अच्छा हुआ तुम आ गए. जटायु ने राम को बताया कि रावण सीता का हरण कर दक्षिण दिशा की ओर ले गया है. सीता को बचाने में रावण ने उनके पंख काट दिए. उन्होंने संषर्घ के दौरान टूटे हुए रावण के तीर भी दिखाए. जटायु ने बताया कि रावण विश्रवा का पुत्र और कुबेर का भाई है. अंत में जटायु ने कहा कि प्रभु आपके दर्श हो गए मेरा जीवन सफल हो गया अब मुझे मुक्ति प्रदान करें और जटायु ने भगवान राम की गोद में प्राण त्याग दिए. भगवान राम की आंखें नम हो गईं. बाद में भगवान राम ने जटायु का अंतिम संस्कार और पिंडदान किया.


जटायु कौन था
पौराणिक कथाओं के अनुसार गृध्रराज जटायु ऋषि ताक्षर्य कश्यप और विनीता के पुत्र थे. त्रेतायुग में सम्पाती और जटायु नाम के दो गरूड़ हुए. ये दोनों देव पक्षी अरुण के पुत्र थे. दरअसल, प्रजापति कश्यप की पत्नी विनता के दो पुत्र हुए गरूड़ और अरुण. गरूड़जी भगवान विष्णु की सवारी बने और अरुण सूर्य के सारथी बने. सम्पाती और जटायु अरुण के पुत्र थे.


Chanakya Niti: इन गुणों के बिना जीवन में नहीं मिलती है सफलता