Ramcharitmanas: साक्षात आंखों के सामने प्रकट हो जाते प्रभु श्रीराम, जब पढ़ते हैं बालकांड की ये चौपाई और दोहा
Ramcharitmanas: बालकाण्ड वाल्मीकि द्वारा रचित रामायण और तुलसीदास कृत रामचरितमानस का एक भाग है. इसके प्रथम भाग को बालकाण्ड (Bala Kanda) कहा जाता है.जानें रामचरितमानस के बालकाण्ड 203 से 205 में क्या है.
Ramcharitmanas Ramayana Bala Kanda: सनातन संस्कृति से जुड़ी कई पौराणिक कथाएं. ग्रंथ, वेद और पुराण हैं. इन्हीं में एक है 'श्रीरामचरितमानस' (Ramcharitmanas) जोकि हिंदू धर्म का पवित्र ग्रंथ है. इसे आदिकाव्य कहा जाता है. यह महाकाव्य रामायण की दिलचस्प यात्रा की नींव के रूप में कार्य करता है. वाल्मीकि रामायण के बालकाण्ड (Ramayana Bala Kanda) में प्रथम सर्ग ‘मूलरामायण’ के नाम से जाना जाता है. बालकाण्ड में 77 सर्ग और 2280 श्लोक मिलते हैं.
बालकाण्ड के प्रथम सर्ग में रामायण, रामायण की रचना और लव कुश प्रसंग का वर्णन मिलता है. इसके साथ ही इसमें दशरथ का यज्ञ, पुत्र (राम, लक्ष्मण, भरत और शत्रुघ्न) के जन्म, राम-लक्ष्मण की शिक्षा, असुरों का वध, राम-सीता विवाह को विस्तारपूर्वक वर्णन किया गया है.
बालकाण्ड पढ़ने के क्या लाभ हैं-
बालकाण्डे तु सर्गाणां कथिता सप्तसप्तति:।
श्लोकानां द्वे सहस्त्रे च साशीति शतकद्वयम्॥
रामायण की संपूर्ण कहानी की रूपरेखा की शुरुआत यहीं से होती है. धार्मिक दृष्टि से रामायण के बालकाण्ड बहुत महत्वपूर्ण है. बृहद्धर्मपुराण (Brihaddharma Purana) के अनुसार, बालकाण्ड का पाठ करने से अनावृष्टि, महापीड़ा और ग्रहपीड़ा से मुक्ति मिलती है. यानी सभी दुख, दोष और पीड़ा मुक्त हो जाते हैं. इसलिए बालकाण्ड का पारायण प्रचलित है.
बालकाण्ड में प्रभु श्रीराम के जन्म से लेकर विवाह तक के संपूर्ण घटनाक्रम के विवरण आते हैं. लेकिन बालकाण्ड के 203-205 दोहा में विशेषकर प्रभु श्रीराम की बाल लीलाओं को दर्शाया गया है. यहां हम जानेंगे रामचरितमानस के बालकाण्ड के 203 से 205 में प्रभु श्रीराम के बारे में किन-किन घटनाओं का वर्णन किया गया है-
दोहा:
भोजन करत चपल चित इत उत अवसरु पाइ।
भाजि चले किलकत मुख दधि ओदन लपटाइ॥203॥
अर्थ है- भोजन करते हैं, पर चित चंचल है. अवसर पाकर मुंह में दही-भात लपटाए किलकारी मारते हुए इधर-उधर भाग चले.
चौपाई:
बालचरित अति सरल सुहाए। सारद सेष संभु श्रुति गाए॥
जिन्ह कर मन इन्ह सन नहिं राता। ते जन बंचित किए बिधाता॥1॥
अर्थ है: श्री रामचंद्रजी की भोली और सुंदर बाल लीलाओं का सरस्वती, शेषजी, शिवजी और वेदों ने गान किया है. जिनका मन इन लीलाओं में अनुरक्त नहीं हुआ, विधाता ने उन मनुष्यों को वंचित कर दिया यानी नितांत भाग्यहीन बनाया॥1॥
चौपाई:
भए कुमार जबहिं सब भ्राता। दीन्ह जनेऊ गुरु पितु माता॥
गुरगृहँ गए पढ़न रघुराई। अलप काल बिद्या सब आई॥2॥
अर्थ है:- ज्यों ही सब भाई कुमारावस्था के हुए, त्यों ही गुरु, पिता और माता ने उनका यज्ञोपवीत संस्कार कर दिया. श्री रघुनाथजी (भाइयों सहित) गुरु के घर में विद्या पढ़ने गए और थोड़े ही समय में उनको सब विद्याएं आ गईं॥2॥
चौपाई:
जाकी सहज स्वास श्रुति चारी। सो हरि पढ़ यह कौतुक भारी॥
बिद्या बिनय निपुन गुन सीला। खेलहिंखेल सकल नृपलीला॥3॥
अर्थ है:- चारों वेद जिनके स्वाभाविक श्वास हैं, वे भगवान पढ़ें, यह बड़ा अचरज है. चारों भाई विद्या, विनय, गुण और शील में (बड़े) निपुण हैं और सब राजाओं की लीलाओं के ही खेल खेलते हैं॥3॥
चौपाई:
करतल बान धनुष अति सोहा। देखत रूप चराचर मोहा॥
जिन्ह बीथिन्ह बिहरहिं सब भाई। थकित होहिं सब लोग लुगाई॥4॥
अर्थ है:- हाथों में बाण और धनुष बहुत ही शोभा देते हैं. रूप देखते ही जड़-चेतन मोहित हो जाते हैं. वे सब भाई जिन गलियों में खेलते हैं, उन गलियों के सभी स्त्री-पुरुष उनको देखकर स्नेह से शिथिल हो जाते हैं यानी ठिठककर रह जाते हैं॥4॥
दोहा:
कोसलपुर बासी नर नारि बृद्ध अरु बाल।
प्रानहु ते प्रिय लागत सब कहुँ राम कृपाल॥204॥
अर्थ है:- कोसलपुर के रहने वाले स्त्री, पुरुष, व्यस्क और बालक सभी को कृपालु रामचंद्रजी प्राणों से भी बढ़कर प्रिय लगते हैं.
चौपाई:
बंधु सखा सँग लेहिं बोलाई। बन मृगया नित खेलहिं जाई॥
पावन मृग मारहिं जियँ जानी। दिन प्रति नृपहि देखावहिं आनी॥1॥
अर्थ है:- श्री रामचंद्रजी अपने भाइयों और इष्ट मित्रों को बुलाकर साथ ले लेते हैं और नित्य वन में जाकर शिकार खेलते हैं. मन में पवित्र समझकर मृगों को मारते हैं और प्रतिदिन लाकर अपने पिता राजा दशरथ को दिखलाते हैं॥1॥
चौपाई:
जे मृग राम बान के मारे। ते तनु तजि सुरलोक सिधारे॥
अनुज सखा सँग भोजन करहीं। मातु पिता अग्या अनुसरहीं॥2॥
अर्थ है:- जो मृग (हिरण) श्री रामजी के बाण से मारे जाते थे. वो शरीर त्याग देवलोक को चले जाते थे. रामचंद्रजी अपने छोटे भाइयों और सखाओं संग भोजन करते हैं और माता-पिता की आज्ञा का पालन करते हैं॥2॥
चौपाई:
जेहि बिधि सुखी होहिं पुर लोगा। करहिं कृपानिधि सोइ संजोगा॥
बेद पुरान सुनहिं मन लाई। आपु कहहिं अनुजन्ह समुझाई॥3॥
अर्थ है:- जिस तरह नगर के लोग सुखी हों, कृपानिधान श्री रामचंद्रजी वही लीला करते हैं. वे मन लगाकर वेद-पुराण सुनते हैं और फिर स्वयं छोटे भाइयों को समझाकर कहते हैं॥3॥
चौपाई:
प्रातकाल उठि कै रघुनाथा। मातु पिता गुरु नावहिं माथा॥
आयसु मागि करहिं पुर काजा। देखि चरित हरषइ मन राजा॥4॥
भावार्थ:-
श्री रघुनाथजी सुबह उठकर माता-पिता और गुरु को मस्तक नवाते हैं और आज्ञा लेकर नगर का काम करते हैं. उनका चरित्र देख राजा मन ही मन बहुत हर्षित होते हैं॥4॥
दोहा:
ब्यापक अकल अनीह अज निर्गुन नाम न रूप।
भगत हेतु नाना बिधि करत चरित्र अनूप॥205॥
भावार्थ:-
जो व्यापक, अकल (निरवयव), इच्छारहित, अजन्मा और निर्गुण है तथा जिनका न नाम है न रूप, वही भगवान भक्तों के लिए नाना प्रकार के अनुपम (अलौकिक) चरित्र करते हैं.
चौपाई:
यह सब चरित कहा मैं गाई। आगिलि कथा सुनहु मन लाई॥
बिस्वामित्र महामुनि ग्यानी। बसहिं बिपिन सुभ आश्रम जानी॥1॥
भावार्थ:-
यह सब चरित्रों को मैंने गाकर बखान किया है. अब आगे की कथा मन लगाकर सुनो. ज्ञानी महामुनि विश्वामित्रजी वन में शुभ आश्रम जानकर बसते थे॥1॥
चौपाई:
जहँ जप जग्य जोग मुनि करहीं। अति मारीच सुबाहुहि डरहीं॥
देखत जग्य निसाचर धावहिं। करहिं उपद्रव मुनि दुख पावहिं॥2॥
अर्थ है:- जहां वे मुनि जप, यज्ञ और योग करते थे. लेकिन मारीच और सुबाहु से बहुत डरते थे. यज्ञ देखते ही राक्षस दौड़ पड़ते थे और उपद्रव मचाने लगते थे, जिससे मुनि दुःख पाते थे॥2॥
चौपाई:
गाधितनय मन चिंता ब्यापी। हरि बिनु मरहिं न निसिचर पापी॥
तब मुनिबर मन कीन्ह बिचारा। प्रभु अवतरेउ हरन महि भारा॥3॥
अर्थ है: गाधि के पुत्र विश्वामित्रजी के मन में चिन्ता छा गई कि ये पापी राक्षस भगवान के मारे बिना न मरेंगे. तब श्रेष्ठ मुनि ने मन में विचार किया कि प्रभु ने पृथ्वी का भार हरने के लिए अवतार लिया है॥3॥
चौपाई:
एहूँ मिस देखौं पद जाई। करि बिनती आनौं दोउ भाई॥
ग्यान बिराग सकल गुन अयना। सो प्रभु मैं देखब भरि नयना॥4॥
अर्थ है: इसी बहाने जाकर मैं उनके चरणों का दर्शन करूं और विनती करके दोनों भाइयों को ले आऊं. जो ज्ञान, वैराग्य और सब गुणों के धाम हैं, उन प्रभु को मैं आंखे भरकर देखूंगा॥4॥
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