दस सिरों वाला रावण जिसे वेदों का ज्ञान था. इसीलिए वो अत्यंत विद्वान था. जिसमें अपार शक्ति, अपार साहस था यही कारण था कि उसने शिव के निवास स्थान कैलाश पर्वत तक को उठा लिया था और अपनी शक्ति का प्रदर्शन कर भगवान शिव से विशेष वरदान हासिल किया. लेकिन अक्सर यह सवाल मन में उठता है कि इतना बलवान होने के बाद भी वह कैसे माता सीता के स्वयंवर में एक धनुष को हिला तक ना सका, जबकि वह उसके लिए बेहद ही मामूली सी बात थी. 


इसी कारण से नहीं उठा सका था धनुष 


कहा जाता है कि यह धनुष भगवान शिव का ही था. जो बहुत ही शक्तिशाली था. इसीलिए इस धनुष को उठाना तो दूर बल्कि हिलाना भी आम इंसान के लिए संभव नहीं था. इस धनुष की एक टंकार से पर्वत भी हिलने लगते थे. लेकिन रावण तो बहुत ही बलशाली व विद्वानी था और वो कोई आम इंसान नहीं था. उसके लिए इस धनुष को उठाना संभव था लेकिन फिर भी वो ये ना कर सका. दरअसल, इसके पीछे एक कारण था. इसकी वजह को श्रीराम चरितमानस में लिखित एक चौपाई से समझा जा सकता है -


"उठहु राम भंजहु भव चापा, मेटहु तात जनक परितापाI"


इसका अर्थ है -  हे पुत्र श्रीराम उठो और "भव सागर रुपी" इस धनुष को तोड़कर, जनक की पीड़ा का हरण करो." राजा जनक जो अपनी पुत्री सीता के विवाह को लेकर काफी चिंतित थे. इस चौपाई में  'भव चापा' शब्द का अर्थ है धनुष को उठाने के लिए शक्ति की नहीं बल्कि प्रेम की जरुरत है. इसके मुताबिक जो अहंकार से कोसों दूर हो, दयालु हो, मृदभाषी व कृपालु हो. ऐसे ही सद्गुणों से युक्त व्यक्ति इस धनुष को उठा सकता था. लेकिन रावण एक अहंकारी राजा था. उसमें घमंड कूट कूट कर भरा था. वह हर वस्तु शक्ति से पाना चाहता था. इसी कारण स्वंयवर में वो इस धनुष का हिला तक ना सका.  


 प्रभु श्री रान ने एक ही प्रयास में तोड़ दिया था धनुष


रामायण के अनुसार जब इस स्वयंवर में प्रभु श्री राम की बारी आई तो उन्होंने भगवान शिव के इस धनुष को बड़े ही सम्मान से प्रणाम किया. उसकी परिक्रमा की. और जब उन्होंने इसे उठाने का प्रयास किया तो एक ही बार में वो सफल हो गए उन्होंने उसकी प्रत्यंचा चढ़ाई और उसे तोड़ दिया. ये सब भगवान श्रीराम के स्नेह, विनयशीलता और निर्मलता के कारण संपन्न हुआ.