ऋषियों से राज्य कर के रूप में मिले रक्त से जन्मीं थीं सीता, लंकापति रावण से ये है रिश्ता
रावण ने ऋषियों से राज्य कर वसूलने का प्रयास किया. इस पर ऋषियों ने अपने रक्त भरा घड़ा रावण को दे दिया. इस घड़े को लंकापति ने चुपके से मिथिला नरेश राजा जनक की सीमा में गड़वा दिया.
रावण अपने राज्य के सन्यासियों से राज्य कर चाहता था. सन्यासियों के पास देने को कुछ नहीं था. उन्होंने रावण के इस अत्याचार का विरोध किया. रावण ने व्यवस्था दी कि राज्य कर तो देना पड़ेगा. अगर कुछ नहीं है तो अपना रक्त ही राज्य कर के रूप में दें. सभी सन्यासियों को राज्य कर के रूप में रक्त देना पड़ा. सन्यासी महात्माओं ने उसे श्राप दिया कि यही रक्त उसके मृत्यु का कारण बनेगा. जब रक्त से भरा घड़ा रावण के पास पहुँचा और श्राप का उसे पता चला तो उस घड़े में उसने अपना रक्त भी मिला दिया. घड़े को राज्य की सीमा से पार विरोधी राजा जनक के राज्य में गड़वा दिया. राजा जनक के राज्य में भीषण अकाल पड़ने पर ज्योतिषियों के कहने पर जनक ने हल जोता. इस अनुष्ठान के समय जनक का हल एक घड़े से टकराया. उसमें एक बच्ची अंदर खेलती मिली. यही सीता होती हैं.
चूंकि उस घड़े में रावण का भी रक्त था इसलिए सीता रावण की भी पुत्री मानी गईं. यह बात रावण को पता थी उसने सीता का कभी अनादर नहीं किया.
वाल्मीकि रामायण में, सीता के बारे में कहा जाता है कि वह एक हल जुते खेत में भूमी में पाई गई थीं, स्थान वर्तमान बिहार के मिथिला क्षेत्र में सीतामढ़ी माना जाता है, और इस कारण से उसे भू देवी की बेटी माना जाता है (देवी पृथ्वी)। मिथिला के राजा जनक और उनकी पत्नी सुनैना द्वारा उन्हें खोजा, अपनाया और लाया गया.