Sawan 2021 : भगवान शिव के भक्तों में देव, दानव और मानव हर कोई शामिल है. इसमें में कहा जाता है कि महादेव का सबसे बड़ा भक्त राक्षस राज रावण था. मगर उसकी यही भक्ति, तपस्या खुद महादेव के लिए कठिनाई खड़ी कर देती. पौराणिक कथाओं के अनुसार एक बार रावण भाई कुबेर से छीने पुष्पक विमान से कहीं जा रहा था, इसी दौरान वह एक वन क्षेत्र से गुजरा तो क्षेत्र के एक पहाड़ पर शिवजी ध्यानमग्न थे. शिव गण नंदी ने रावण को रोकते हुए कहा कि भगवान तप में मग्न हैं, इधर से गुजरना सभी के लिए प्रतिबंधित है. इतना सुनकर महाशक्तिशाली रावण क्रोधित हो गया और उसने वहीं पुष्पक विमान उतार कर नंदी को खूब अपमानित किया.


उसने कहा कि देखो नंदी मैं अब किस तरह भोलेनाथ समेत पूरे पर्वत को उखाड़कर लंका ले जा रहा हूं. ऐसा कहते हुए वह पूरा पर्वत उठाने लगा. यह देखकर शिव ने अपने अंगूठे से पर्वत को दबा दिया, जिसके कारण रावण का हाथ दब गया. पूरे पर्वत का भार हाथ पर आ जा जाने से रावण कराह उठा और उसे गलती का अहसास हो गया. वह भगवान से प्रार्थना करने लगा कि मुझे मुक्त कर दें. वह क्षमा मांगते हुए कहने लगा- 'शंकर-शंकर', क्षमा करिए, क्षमा करिए. उसकी शिवजी से रक्षा करने की स्तुति और क्षमा याचना ही 'शिव तांडव स्तोत्र' कहलाया.


शिवलिंग को अंगूठे से दबाकर बना दिया गौकर्ण
एक बार रावण ने मनोकामना पूरी करने के लिए शिवजी की घोर तपस्या की और एक-एक सिर काटकर हवन में चढ़ाने लगा, दसवां सिर काटने लगा तो शिवजी ने हाथ पकड़ लिया और सभी सिर फिर जोड़कर वरादान मांगने के लिए कहा. इस पर रावण ने उनसे शिवलिंग स्वरूप को लंका में स्थापित करने की छूट मांगी. तब शिवजी ने उसे शिवलिंग स्वरूप दो चिह्न दिए दिए, साथ की चेताया कि इन्हें भूमि पर मत रखना, वरना यह वहीं स्थापित हो जाएंगे. रावण दोनों शिवलिंग लेकर चला, रास्ते में गौकर्ण क्षेत्र में एक जगह लघुशंका लगी तो उसने बैजु गड़रिये को शिवलिंग पकड़ने को कहा और हिदायत दी कि इसे किसी भी जमीन पर बिल्कुल नहीं रखना. इस बीच शिवजी ने माया से शिवलिंगों का वजन बढ़ा दिया, जिससे थक कर गड़रिये को उन्हें रखना पड़ा, जिससे दोनों शिवलिंग वहीं स्थापित हो गए. मगर रावण को महादेव की चालाकी समझ आ गई तो वह बहुत क्रोधित हुआ, उसने अपने अंगूठे से एक शिवलिंग दबा दिया, जिससे उसमें गाय के कान (गौ-कर्ण) का निशान बन गया.


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