kavad yatra : पौराणिक कथाओं के अनुसार कावड़ यात्रा शिवजी को प्रसन्न करने के लिए शुरू की गई अध्यात्मिक परंपरा थी, मगर इसकी शुरुआत को लेकर कई किवदंतियां हैं. कुछ कथाओं के अनुसार इसे शुरू करने का श्रेय परशुराम मुनि को दिया जाता है तो कुछ जगह श्री राम को, लेकिन अधिकांश मानते हैं कि कांवड़ यात्रा की शुरुआत राक्षसराज, लंकापति रावण ने की थी.


पुराणों के अनुसार कांवड़ यात्रा की परंपरा समुद्र मंथन से जुड़ी मानी जाती है. वासुकी नाग के जरिए किए गए मंथन से निकला विष पी लेने के कारण भगवान शिव का कंठ नीला हो गया और उनका गला जलने लगा था. विष के गंभीर नकारात्मक प्रभावों ने शिवजी को असहज कर दिसा. अपने आराध्यदेव को विष के नकारात्मक प्रभावों से मुक्त कराने के लिए उनके परमभक्त रावण ने बीणा उठाया। उसने कावड़ में जल भरकर पुरामहादेव स्थित शिवमंदिर में कई बरसों तक महादेव का जलाभिषेक किया, इसके चलते शिवजी जहर के नकारात्मक प्रभावों से मुक्त हुए और उनके गले में हो रही जलन खत्म हो गई. यहीं से कावड़ यात्रा का आरंभ माना गया.


कुछ विद्वानों के मुताबिक भगवान परशुराम ने सबसे पहले यूपी के बागपत स्थित पुरा महादेव का कावड़ से गंगाजल लाकर जलाभिषेक किया था। परशुराम, जलाभिषेक के लिए गढ़मुक्तेश्वर से गंगा जल लाए थे. आज भी इसका पालन करते हुए सावन में गढ़मुक्तेश्वर से जल लाकर लाखों लोग ‘पुरा महादेव‘ में जलाभिषेक करते हैं. इनके अलावा कुछ पौराणिक कथाओं में जिक्र है कि भगवान राम पहले काविड़या थे, जिन्होंने बिहार में सुल्तानगंज से गंगाजल भरकर बाबाधाम में जलाभिषेक किया. इसके बाद वहां जल चढ़ाने की परंपरा शुरू हो गई थी.


 


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