Ravana Updesh in Hindi: रावण भले ही बहुत ताकतवर था लेकिन माता सीता का छलपूर्वक हरण करने और उन्हें बंदी बनाकर रखने के अपराध के कारण ही उसका अंत भगवान राम द्वारा किया गया. लेकिन भगवान राम भी यह मानते थे कि, रावण के जैसा महाज्ञानी और विद्वान संसार में कोई नहीं. इसलिए तो उन्होंने लक्ष्मण को रावण से ज्ञान प्राप्त करने का आदेश दिया.


लंकापति रावण राक्षस कुल के राजा थे. लेकिन इस बात से इंकार नहीं किया जा सकता है कि, रावण की तरह दूसरा कोई व्यक्ति नहीं था. लंकाधिपति दशानन रावण बलशाली, महापराक्रमी योद्धा, परम शिव भक्त, वेदों के ज्ञाता और महापंडित थे.



इन गुणों के बावजूद भी रावण को माता सीता के हरण की सजा मिली और भगवान राम के हाथों उसका अंत हुआ. रावण जब मृत्यु शैय्या पर था, तब भगवान राम ने लक्ष्मण को आदेश दिए कि, वह रावण के अंतिम समय में उनसे जीवन के अहम ज्ञान को प्राप्त करे, जो रावण के अलावा और कोई नहीं दे सकता है.


 राम के कहने पर रावण से शिक्षा प्राप्त करने पहुंचे लक्ष्मण


राम ने लक्ष्मण से कहा, तुम रावण के पास जाओ और उससे जीवन की अहम शिक्षाएं प्राप्त करो. भगवान राम के आदेश पर लक्ष्मण भी मरणासन्न अवस्था में पड़े रावण के सिर के पास जाकर खड़े हो गए. लेकिन रावण ने लक्ष्मण से कुछ भी नहीं कहा.


लक्ष्मण राम के पास आकर बोले, प्रभु! मैं बहुत देर तक रावण के पास खड़ा रहा. लेकिन उसने कुछ भी नहीं कहा. भगवान राम ने लक्ष्मण से कहा, किसी से ज्ञान प्राप्त करने के लिए उसके सिर नहीं बल्कि चरणों के पास रहना चाहिए. तब लक्ष्मण रावण के चरणों के पास जाकर बैठ हो गए. इसके बाद रावण ने लक्ष्मण को अंतिम समय में जीवन से जुड़े गूढ़ उपदेश दिए. रावण द्वारा बताई इन बातों का महत्व आज भी है और हर किसी को इसे जरूर जानना चाहिए.


मरणासन्न अवस्था में रावण ने दिए ये उपदेश



  • रावण लक्ष्मण से कहते हैं कि, किसी शुभ या अच्छे काम को करने में कभी भी देर नहीं करनी चाहिए. लेकिन बुरे या अशुभ काम के प्रति जितना हो सके मोह वश में करे या उसे टालने का प्रयास करे.

  • व्यक्ति को कभी भी अपनी शक्ति और पराक्रम का घमंड नहीं करना. इतना अंहकार कभी नहीं होना चाहिए कि उसे अपना शत्रु और रोग तुच्छ लगने लगे. क्योंकि छोटे से छोटा रोग भी प्राणघातक हो सकता है और कमजोर शत्रु भी खतरनाक हो सकता है. मेरे लिए राम और उसकी वानर सेना को तुच्छ मानना ही सबसे बड़ी भूल थी, जोक मेरी मृत्यु का कारण बनी और आज में मैं तुम्हारे सामने मरणासन्न अवस्था में पड़ा हूं.

  • रावण ने तीसरा उपदेश देते हुए लक्ष्मण को ज्ञान की बातें बताते हुए कहा कि, व्यक्ति को शत्रु और मित्र के बीच पहचान करने की परख होनी चाहिए. हमारी सबसे बड़ी भूल यह होती है कि हम अपने शत्रु को मित्र समझ लेते हैं, जोकि बाद में हमारे शत्रु साबित होते हैं. वहीं जिसे हम शत्रु समझकर पराया कर देते हैं वही हमारे असली मित्र होते हैं.

  • रावण ने लक्ष्मण को ज्ञान देते हुए कहा कि, अपने जीवन के गुप्त रहस्यों कभी किसी को भी नहीं बताना चाहिए. फिर चाहे कोई कितना भी सगा क्यों न हो. लंका में रहते हुए विभीषण मेरा शुभेच्छु था और मैंने उसे अपने सारे गुप्त राज बताए थे. लेकिन जब वह राम की शरण में गया तो मेरे विनाश का कारण बन गया.


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