जिस तरह पति की लंबी उम्र के लिए करवा चौथ का व्रत रखा जाता है ठीक उसी तरह संतान के बेहतर स्वास्थ्य और दीर्घायु का आशीर्वाद प्राप्त करने के लिए किया जाता है अहोई अष्टमी का व्रत. जो इस बार 8 नवंबर को है.
कार्तिक मास के कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि को किया जाने वाला ये पर्व विवाहित महिलाएं रखती हैं और अहोई माता से अपनी संतान की उन्नति व खुशहाली की कामना की जाती है.
तारा देखकर खोला जाता है व्रत
जिस तरह करवा चौथ का व्रत चंद्र देव के दर्शन और अर्घ्य देने के बाद ही खोला जाता है, वहीं अहोई अष्टमी का व्रत तारे देखकर पूरा होता है. दिन भर महिलाएं निर्जल व्रत रखती हैं और माता पार्वती व भगवान शिव की उपासना की जाती है. वहीं करवा चौथ की तरह ही अहोई अष्टमी व्रत की भी कथा है. इस दिन व्रती महिलाएं इस कथा को ज़रुर पढ़ती हैं. चलिए बताते हैं आपको अहोई आठे की व्रत कथा.
अहोई अष्टमी व्रत कथा
कथा के अनुसार एक बार साहूकार की बेटी जंगल में जिस जगह पर मिट्टी काट रही थी, उस जगह पर स्याहु यानि साही अपने 7 बेटों से साथ रहती थी. जब वह लड़की मिट्टी काट रही थी तो गलती से उसकी खुरपी की चोट से स्याहु का एक बच्चा मर गया. जिससे स्याहु क्रोधित हो गई और कहा कि मैं तुम्हारी कोख बांधूंगी। जब स्याहु के ऐसे वचन साहूकार की बेटी ने सुने तो अपनी सातों भाभियों से एक-एक कर उसने विनती की कि कोई एक भाभी उसके बदले अपनी कोख बंधवा लें. वहीं सबसे छोटी भाभी अपनी कोख बंधवाने के लिए तैयार हो जाती है. जिसके बाद छोटी भाभी के जो भी बच्चे होते हैं, वे सात दिन बाद ही मर जाते हैं. इस तरह उसके सात पुत्रों की मौत होती है. तब वह पंडित को बुलवाकर इसका उपाय पूछती है.
सुरही गाय की सेवा की दी सलाह
वहीं पंडित उसे सुरही गाय की सेवा करने की सलाह देता है. जिसके बाद छोटी बहू सुरही गाय की खूब सेवा करती है. जिससे प्रसन्न होकर सुरही गाय कहती है कि तू किसलिए मेरी इतनी सेवा कर रही है और वह उससे क्या चाहती है? तब वो बताती है कि स्याहु माता ने मेरी कोख बांध दी है जिससे मेरे बच्चे नहीं बचते हैं. यदि आप मेरी कोख खुलवा दे तो मैं आपका उपकार मानूंगी. वो सुरही गाय उसकी बात मान लेती है और उसे साथ लेकर स्याहु माता के पास जाती है. चूंकि रास्ते में दोनों थक जाते हैं तो दोनों आराम करते हैं. लेकिन अचानक साहूकार की छोटी बहू देखती है कि एक सांप गरूड़ पंखनी के बच्चे को डंसने जा रहा है तभी वह सांप को मार देती है. तभी वहां गरूड़ पंखनी आ जाती है और खून देखकर उसे लगता है कि छोटी बहू ने उसके बच्चे को मार दिया है जिससे गुस्सा होकर वह छोटी बहू को चोंच मारना शुरू कर देती है। लेकिन जब उसे पता चलता है कि उसने तो उसके बच्चे की जान बचाई है तो गरूड़ पंखनी इस पर खुश होती है और सुरही सहित उन्हें स्याहु के पास पहुंचा देती है।
छोटी बहू को मिलता है आशीर्वाद
वहां पहुंचकर छोटी बहू स्याहु की भी खूब सेवा करती है. जिससे प्रसन्न होकर स्याहु उसे सात बेटे और सात बहू होने का आशीर्वाद देती है.और बताती है कि घर जाने पर तू अहोई माता का उद्यापन करना। सात-सात अहोई बनाकर सात कड़ाही देना। जब वह घर लौटी तो उसे अपना घर सात बेटे और सात बहुओं से भरा हुआ मिला. जिसके बाद उसने अहोई माता का उद्यापन किया।