Sadhguru Sannidhi: सद्गुरु सन्निधि: बेंगलुरु में काशी के 7 पुजारी सप्त ऋषि आवाहनम का संचालन करेंगे
Sadhguru Sannidhi: 18 मार्च 2023 को काशी के 7 पुजारी सद्गुरु सन्निधि में सप्त ऋषि आवाहनम करेंगे. हर साल शीतलाकीन संक्रांति पर वे ईशा योग क्रेंद कोयम्बटूर में भी आवाहनम करते हैं.
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Sadhguru Sannidhi, Sapta Rishi Avahanam: शनिवार 18 मार्च 2023 को सद्गुरु के प्रति समर्पण को लेकर काशी के सात पुजारियों द्वारा बेंगलुरू में योगेश्वर लिंग पर आवाहनम किया जाएगा. हर साल शीतकालीन संक्रांति पर वे ईशा योग केंद्र, कोयम्बटूर में भी आवाहनम करते हैं. यह एकमात्र ऐसा अवसर है जब काशी विश्वनाथ मंदिर के बाहर आवाहनम अर्पण किया जाता है.
काशी के सात पुजारी शनिवार 18 मार्च 2023 को शाम 6 बजे से लेकर रात के 10 बजे तक सद्गुरु सन्निधि में सप्त ऋषि आवाहनम करेंगे. भक्त भी इस आरती को ऑनलाइन देख सकेंगे. आवाहनम को लेकर सद्गुरु ने कहा कि-"यह एक तकनीक है. 45 मिनट से 1 घंटे में वे इस मंदिर में जो ऊर्जा पैदा करते हैं वह अभूतपूर्व है. कहीं भी मैंने पुजारियों द्वारा संचालित ऐसा कुछ नहीं देखा है.”
कैसे हुई सप्त ऋषि आवाहनम की उत्पत्ति
शिव ने परम तक पहुंचने के 112 तरीकों का अपने सात शिष्यों में संचार किया था, जिन्हें बाद में पूजनीय सप्तमऋषियों के रूप में जाना गया. आवाहनम की उत्पत्ति को बताते हुए, सद्गुरु कहते हैं- ‘जब सप्त ऋषियों को दुनिया के विभिन्न हिस्सों में जाकर योग विज्ञान को प्रदान करना था तो उन्होंने उनसे पूछा, "हम आपकी उपस्थिति को अपने साथ कैसे ले जा सकते हैं?" तो उन्होंने एक सरल प्रक्रिया सिखाई, जो आज सप्त ऋषि आवाहनम के रूप में विद्यमान है.’
आदियोगी ने सबसे पहले इन्हें सौंपी थी आरती
वाराणसी के प्रसिद्ध काशी विश्वनाथ मंदिर में सदियों से सप्त ऋषि आरती हो रही है. लेकिन 2017 के बाद से इसे हर साल आदियोगी में आयोजित किया जाता है और वर्तमान में काशी विश्वनाथ मंदिर के बाहर एकमात्र ऐसा स्थान है जहां सप्तऋषि आरती की जाती है. इस आरती को लेकर ऐसा कहा जाता है कि आदियोगी ने स्वयं अपने पहले सात शिष्यों को सप्त ऋषि की आरती सौंपी थी.
कैसे किया जाता है शिव का आह्वान
सात पुजारी बेंगलरू के योगेश्वर लिंग के चारों ओर बैठकर शिव का आह्वान करते हैं. प्रक्रिया शुरू करने से पहले वे लिंग को चंदन के लेप, पवित्र जल, बेलपत्र और फूल-मालाओं से सजाते हैं. इसके बाद मंत्रों के जाप के साथ चरणबद्ध तरीके से आयोजित प्रक्रिया की शुरुआत होती है, जिससे एक बहुत ही शक्तिशाली वातावरण बनाया जाता है, जिसमें भक्त पवित्र मंत्रों के जाप और धुन में शामिल होते हैं. आरती के बाद आदियोगी दिव्य दर्शन होती है और इसके बाद शयन आरती होती है.
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