शिक्षा बहुआयामी विषय है. व्यक्ति का व्यवहार इस पर अत्यधिक निर्भर करता है. बचपन से ही ज्ञान पर फोकस दिया जाता है. बच्चा सीखने और ज्ञान इकट्ठा करने में बहुत मेहनत करता है. निश्चित ही ज्ञान के बिना विषय में पारंगत नहीं हुआ जा सकता है. अनुभवों का लाभ नहीं उठाया जा सकता है.
इसी प्रकार स्किल या कहें कौशल के बगैर किसी भी ज्ञान को अमलीजामा नहीं पहनाया जा सकता है. छोटे से छोटे ज्ञान के प्रयोग के रूप में सफल बनाने के लिए कौशल का होना आवश्यक है. उदाहरण के तौर पर एक अच्छा हलवाई भोजन निर्माण का सारा ज्ञान रखने मात्र से नहीं बना जा सकता है. खाना बनाने का कौशल भी अपनाना होता है.
टाइपिंग, साइक्लिंग, स्विमिंग इत्यादि में ज्ञान से कहीं अधिक महत्ता कौशल की होती है. कई अवसरों पर तो ज्ञान से कहीं अधिक कौशल का महत्व होता है. खेलों में कौशल ही सर्वाेपरि होता है. अभिनय की दुनिया में कौशल से बड़ी उपलब्धि हासिल हो सकती है. जीवन में बात बनाने के लिए ज्ञान और कौशल को जोड़कर देखा जाना आवश्यक है.
अंधेरे में थी कठिनाई
महाभारत में कौरव-पांडवों की शिक्षा का एक प्रेरक प्रसंग ज्ञान और कौशल से गहराई से जुड़ा है. अर्जुन को अंधेरे में तीर चलाने की प्रैक्टिस में कठिनाई आती है. वे इस पर विचार कर ही रहे होते हैं कि अंधेरे में बड़े भाई भीम को भोजन करते हुए देखते हैं.
अर्जुन भीम से पूछते हैं कि भीम अंधेरे में कैसे भोजन कर लेते हैं. इस पर भीम उत्तर देते हैं कि अभ्यास से उन्हें भोजन करने में कोई परेशानी नहीं होती. अर्जुन कौशल का अर्थ समझकर अंधेरे में अभ्यास में जुट जाते हैं. याद रहे, कौशल से ही अर्जुन सर्वश्रेष्ठ धर्नुधर हुए. ज्ञान तो गुरु ने सभी को बराबर दिया था.