हनुमान जी कलियुग में धरती पर मौजूद एक मात्र ईश्वर अवतार हैं. भगवान भोलेनाथ के अंशावतार पवनपुत्र हनुमान की श्रीराम के प्रति अनन्य भक्ति ही उनका सबसे बड़ा गुण है. इससे ही उन्होंने वह सब कर दिखाया जो श्रीराम से मिलने से पहले उनके लिए असंभव सा था. भक्त हनुमान की राम में इतनी आस्था था कि उनके हृदय में हर समय श्रीराम और जानकी ही विराजित रहते थे.


राम के ध्यान में सहज भाव से वे लंका गमन कर पाए. सीताजी का पता कर पाए. और लंका को अग्नि स्नान कराने में सफल रहे. वर्तमान में हम इस सबसे बड़े गुण को व्यवहार में देखें तो वह हमें बच्चों में नजर आता है. बच्चे अपने माता-पिता और गुरुजनों की आज्ञा में वह सब भी सहजता से कर जाते हैं जिन पर बड़े संकोच कर जाएं.


भक्ति का गुण था कि मीरा बाई विषपान कर के भी जीवित रहीं. भक्त प्रह्लाद हिरण्यकश्यपु से अड़ पाया.


सही मायने में बुद्धि और तर्क वहीं तक हैं जहां तक इनकी पहुंच है. लेकिन भक्ति में मन बलवान होता है. और प्रबंधन की किताबों में मनोबल को सर्वाेच्च दर्जा हासिल है. समाज में मोटिवेटर और स्पीकर इसी को बढ़ाने का प्रयास करते रहते हैं जो हनुमानजी को भक्तिभाव में सहज ही हासिल हो गया. आस्था आत्मविश्वास और भक्तिभाव एक दूसरे के पर्यायवाची जैसे हैं. जैसे ही एक कम होता है दूसरा डगमगाने लगता है. भक्ति के कम होते ही आस्था प्रभावित होती है. आस्था प्रभावित होते ही आत्मविश्वास भी हिल जाता है.