Premanand Ji Maharaj Vachan: प्रेमानंद जी महाराज एक महान संत और विचारक हैं जो जीवन का सच्चा अर्थ समझाते और बताते हैं. प्रेमानंद जी के अनमोल विचार जीवन को सुधारने और संतुलन बनाएं रखने में मार्गदर्शन करते हैं.
प्रेमानंद जी महाराज से जानें की कैसे धन की कमी, अस्वस्थ शरीर और पारिवारिक उलझनों के साथ भगवत प्राप्ति कैसे हो सकती है. संक महाराज जी ना मानना है कि है केवल नाम जप से ही भगवत प्राप्ति हो सकती है.
किसी को ऐसा लगता है कि धन से भगवत प्राप्ति होती है, क्या किसी को ऐसा भ्रम है कि पदार्थों से भगवत प्राप्ति होती है. भगवत प्राप्ति भगवान की चाह करने से होती है. नाम जप के बिना भगवत प्राप्ति की चाह प्रकट नहीं होती. भगवान को कोई भोग नहीं चाहिए. भगवान पूर्ण काम है अचाह हैं उनको कोई चाह नहीं है. भगवान के भक्त अचाह हो जाते हैं.
जाहि न चाहिअ कबहुँ कछु तुम्ह सन सहज सनेहु। बसहु निरंतर तासु मन सो राउर निज गेहु॥
अर्थात् जिसको कभी कुछ भी नहीं चाहिए और जिसका आपसे स्वाभाविक प्रेम है, इसीलिए भाव हमारा भगवान के पास गया और भगवान को स्वंय भूख लग जाएगी. भगवान को जो भूख लगती है वह भाव की है. भगवान केवल भाव के भूखे हैं. भाव बिना पदार्थों के भी हो सकते हैं. लेकिन अगर पदार्थ हैं और भाव नहीं तो भोग नहीं मिलेगा.
धन से भगवान को नहीं प्राप्त नहीं किया जाता है. धन से अगर भगवान को खरीदा जा सकता है तो सभी खरीद लेते, और भगवान अमीरों के घर में बैठे रहते. जैसे शरीर अस्वस्थ्य होता है तो दवा खाते हैं ऐसे ही राधा-राधा नाम का जप कर सकते हैं. इसीलिए धन की कमी, अस्वस्थ शरीर और पारिवारिक उलझनों के भगवत प्राप्ति केवल भगवान का नाम जप के साथ ही हो सकती है.
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